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बडनेरा में नरकासुर का दहन

85 वर्षो की परंपरा

* हजारों की उपस्थिति, आयोजन को आयाम
अमरावती/दि. 14– अमरावती के नेहरु मैदान में वर्षो पूर्व होते रामलीला और दशहरे पर रावण दहन को देखकर शुरु हुई जूनीबस्ती बडनेरा की नरकासुर दहन परंपरा साढे आठ दशक से अनवरत है. अमरावती की परंपरा बरसो पहले खंडित हो गई तो अब तक शुरु नहीं हो पाई. बडनेरा में सावता युवक मंडल व्दारा संचालित सार्वजनिक श्रीराम विजय महोत्सव व नरकासुर दहन कार्यक्रम संचालन समिति के प्रयासों से परंपरा सोमवार शाम कायम रही. जब हजारों की उपस्थिति में 60 फीट उंचे नरकासुर का दहन सावता मैदान पर किया गया. इस समय मनपा उपायुक्त मेघना वासनकर, समाजसेवी नितिन कदम, थानेदार नितिन मगर, छाया अंबाडकर, फुले बैंक के अध्यक्ष राजेंद्र आंडे, प्रा. दिलीप काले, गंगा अंभोरे, भाजपा नेता व स्वागताध्यक्ष जयंत डेहनकर, आयोजन समिति के अध्यक्ष विनायकराव ढोले, कार्याध्यक्ष सागर पवार, उपाध्यक्ष रामेश्वर टवलारे, हर्षल बोबडे आदि अनेक की उपस्थिति रही.
उल्लेखनीय है कि आयोजन समिति में स्वागताध्यंक्ष मधुकरराव श्रीखंडे, महासचिव-प्रा. विजय नागपुरे, सहसचिव गजेंद्र तर्‍हेकर, महेश येते, कोषाध्यंक्ष रविंद्र बोटके, मनिष कुथे, श्रीकांत राजबिंडे, आकाश वाठ, प्रसिद्धी प्रमुख- संजय जोशी,सुजय पवार, सदस्य- शुभम मोरे, वैभव निचत, पवनजी तायडे, स्वप्निल वाठ, शुभम नागपुरे, अंकुश पवार, सागर यावले, गौरव चिंचमलातपुरे, बालू साबले, उमेश बेदुरकर,सागर निबंर्त,श्रीहरी नागपुरे, महेश व-हेकर, संजय लांबे, सुरज निमकर, फटाका समिती प्रमुख सागर पवार, प्रशांत मालपेसर, सुरेशभाऊ वाठ, नरकासुर प्रतिमाप्रमुख वामनराव पवार, चंद्रप्रकाश वर्मा, नितीन नागपुरे ,नरेंद्र कुबडे, संजय तिखे, भूषण बोरकर, वैभव काले, अनुप वांगे, वैभव यावले, वैभव कुकडे, सल्लागार समिती- दिगंबरराव तायडे, नीलकंठराव कात्रे, उत्तमराव भैसने, रवि बारापात्रे, रवींद्र तहेकर, सुर्दशन गांग, प्रभाकरराव केने, प्राचार्य दिलीप काले ,प्रभाकर केणेसर, अरुणभाऊ निमकर ,शालिग्राम मालपे सुरेषपंत वाठ, दत्ताभाऊ राहाटगावकर, डॉ.हेमंत देव, माणिकराव वडनेरकर, हरि कहाले, देविदास लांडे, ज्ञानेश्वर बांन्ते, भास्करराव गणोरकर,मोहन गाडे, योगानंद जोशी, रामकृष्ण लांडोरे, विनूभाऊ घीमे, शिवा निबंतेॅ, नितीन अंबाडकर, डॉ.राजेश शिंदे, विजय इंगोले, गजानन सुने,गौरव बांन्ते, किशोर अंबाडकर, डॉ.किरण वसंतराव अंबाडकर, देविदास बांडाबुचे, सुभाष कातोरे, संतोष वाके,अरविंद वहेकर, शरदराव ठोसरे, राजूजाधव, बाबू सिंघई, शैलेश शिरभाते,आनंद पवार, शरद बाळापुरे, प्रा.नरेंद्र गाडे,मनोज शेणमारे, चंद्रकांत वाठ, छोटेलाल ठाकूर, राज मासोदकर, कैलास हातागले, योगेश निमकर बालू ठवकर, रवि वानखडे, रवींद्र कडु, अरुण दुधे, ह.भ.प.रामकुमार पांडे, रमेश सपाटे,प्रकाश वहेकर,विनोद कानतोडे, सुरेश मावदे , संतोष किंदरले, बाबु राऊत, गणेशराव उसरे. रामकृष्ण लांडोरे, त्रिदीप वानखडे संजय पंडया, अन्न शर्मा, महेश कथलकर, गणेश वासनिक ,संजय पांडे उर्फ सहत्रभोजने, जीवन राऊत, प्रेमदास वाडकर, गजेंद्र बडनेरकर, निशिकांत राजबिंदे, मंगेश चव्हाण, बंडू मेहरे, रवि वानखेडे व अन्य की उपस्थिति रही.
* ऐसे हुई शुरुआत
नरकासुर दहन के पीछे की कथा रोचक है. कोई 85 बरस पहले अमरावती के नेहरु मैदान पर रावण दहन देखने बडनेरा जूनीबस्ती के लोग आते थे. बैल गाडियों से उनका आना-जाना होता. कई लोगों के पास साधन नहीं होने से वे नहीं आ पाते, ऐसे में शास्त्री महाराज, भुसारी महाराज, महाजन महाराज, ह. भ. प. मसालेवाले आदि ने बडनेरा में ही रावण दहन की सोची. पंडलिकराव ने देवी के मंदिर के सामने डेढ फीट के रावण दहन से शुरुआत कर दी. कालंतर में परिसर के लोगों ने कमान संभाली और आयोजन बडा होकर सावता मैदान पर रावण दहन होने लगा.
* 2008 में बदली परंपरा
रावण दहन का रिवाज अनेक वर्षो तक चालू रहा. 2008 में उसमें खलल पडा, जब एक मोर्चा धमका. वे रावण पूजक थे. उन्होंने रावण दहन का विरोध किया. उस समय थानेदार दिवसे ने दोनों पक्षों को समझाया. आयोजन समिति ने किसी के प्रति विरोध की भावना न होने से रावण दहन को नरकासुर दहन में परिवर्तित कर दिया. तब से यह रुढी कायम है. राम के राज्याभिषेक की खुशी जूनीबस्ती बडनेरा में मनाई जाती है. नवरात्री की अष्टमी से रामलीला शुरु हो जाती है. अब यह पर्व जूनीबस्ती का अपना त्यौहार बन गया है. यहां से बाहरगांव ब्याही गई युवतियां भी नरकासुर दहन के दिन मायके आ जाती है और भाईदूज मनाकर ही लौटती है. आयोजन को नया आयाम देते हुए स्वच्छता दूत और गुणवत्ता प्राप्त विद्यार्थियों का सत्कार भी किया जाता है.

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