व्यवसायाभिमुख तकनीकी शिक्षा मौजूदा दौर की जरूरत
विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. नितीन धांडे का कथन
* क्षेत्र के समग्र विकास को लेकर साझा किये अपने विचार
अमरावती/दि.10– अमरावती जिले के साथ-साथ विदर्भ क्षेत्र को सर्वसामान्य तौर पर विकास के लक्ष्य को साधने हेतु सरकारों द्वारा कुछ क्रांतिकारी कदम उठाये जाने की जरूरत है. जिसके तहत तकनीकी शिक्षा को अधिक से अधिक व्यवसायाभिमुख बनाया जाना मौजूदा दौर की सबसे बडी मांग है, ताकि महाविद्यालयों से अपनी पढाई-लिखाई पूरी कर निकलनेवाले विद्यार्थियों के पास रोजगार के अवसर उपलब्ध हो. ऐसे में समग्र और संतुलित विकास को साधने के लिए सबसे पहले पूरी प्राथमिकता के साथ शिक्षा क्षेत्र, विशेष तौर पर तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र पर ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है. इस आशय के विचार विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. नितीन धांडे द्वारा व्यक्त किये गये है.
विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के जरिये संचालित किये जानेवाले स्कूलों व कॉलेजों के जरिये हमेशा ही वैदर्भिय छात्र-छात्राओं को गुणवत्ता पूर्ण शैक्षणिक सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा अमरावती शहर व जिले सहित समूचे विदर्भ क्षेत्र का शैक्षणिक स्तर उंचा रखने हेतु प्रयासरत रहनेवाले डॉ. नितीन धांडे ने विदर्भ क्षेत्र के शैक्षणिक विकास के साथ-साथ इस अंचल के समग्र विकास को लेकर दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत की. जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा कि, शैक्षणिक विकास के बिना किसी भी तरह के विकास की कल्पना ही नहीं की जा सकती. ऐसे में यदि हमें सामाजिक और आर्थिक स्तर पर विकास अपेक्षित है, तो सबसे पहले शैक्षणिक विकास पर ध्यान देना होगा. साथ ही शैक्षणिक विकास को लेकर नीतिया तय करते समय मौजूदा दौर के साथ-साथ भविष्य की जरूरतों और अपेक्षित लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना होगा.
विदर्भ क्षेत्र केे पिछडेपन पर अपनी चिंता जताते हुए डॉ. नितीन धांडे ने कहा कि, उद्योगों को हमेशा ही अलग-अलग स्तर पर कुशल मनुष्यबल की जरूरत पडती है. किंतु चूंकि विदर्भ क्षेत्र, विशेषकर अमरावती जिले व संभाग में अब तक औद्योगिक विकास अपेक्षित तरीके से नहीं हो पाया है. ऐसे में हमारे यहां के विद्यार्थियों में औद्योगिक दृष्टिकोण समूचित ढंग से विकसित नहीं हो पाता. जिसके चलते बेहद जरूरी है कि, पढाई-लिखाई को उद्योगपूरक बनाया जाये, ताकि उससे प्रेरणा लेते हुए हमारे विद्यार्थियों का रूझान औद्योगिक क्षेत्र के साथ जुडे और उन्हें उद्योग क्षेत्र की जरूरत के लिहाज से तैयार किया जा सके. डॉ. धांडे के मुताबिक व्यवसायाभिमुख या उद्योगपूरक पाठ्यक्रमों को महत्व देने के पीछे उनका यह उद्देश्य कतई नहीं है कि, अभियांत्रिकी या तकनीकी पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद विद्यार्थियोें को बडे-बडे महानगरों की बडी-बडी कंपनियों में नौकरियां मिले, बल्कि वे चाहते है कि, ऐसे पाठ्यक्रमों की बदौलत खुद विद्यार्थियों के भीतर उद्यमशीलता का निर्माण हो और वे स्वयंरोजगार के तौर पर अपना कोई उद्योग शुरू करते हुए अन्यों को रोजगार दे पाने में सक्षम हो सके. इसके लिए विद्यार्थियों के साथ-साथ खुद हमें और सरकारों को भी परंपरागत ढांचे और सीमित दायरे से बाहर निकलकर नये आयामों के बारे में सोचना होगा तथा नये क्षितीजों की तलाश करनी होगी.
उल्लेखनीय है कि, डॉ. नितीन धांडे उच्च विद्याविभूषित चिकित्सक है और उन्होंने लंबे समय तक मेडिकल कॉलेज में बतौर प्राध्यापक पढाने का भी काम किया है. साथ ही विगत लंबे समय से वे विदर्भ क्षेत्र की दूसरी सबसे बडी शिक्षा संस्था विदर्भ यूथ वेलफेअर सोसायटी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे है, जिसकी अगुआई में 35 से अधिक शिक्षा संस्थाओं का संचालन होता है. ऐसे में डॉक्टर होने के साथ-साथ उनकी ख्याती एक शिक्षाविद् के तौर पर अधिक है और वे खुद भी अपने आप को चिकित्सक की बजाय शिक्षक कहलवाना ज्यादा पसंद करते है. साथ ही शिक्षा क्षेत्र के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते हुए हमेशा ही अमरावती जिले व संभाग सहित समूचे विदर्भ के शैक्षणिक क्षेत्र के विकास को लेकर प्रयास करते रहते है. इन्हीं तमाम बातों के मद्देनजर दैनिक अमरावती मंडल ने शिक्षा क्षेत्र को भी चिकित्सकीय व शल्य दृष्टि से देखनेवाले डॉ. नितीन धांडे से शिक्षा क्षेत्र की मौजूदा स्थिति को लेकर विशेष तौर पर बातचीत की. जिसमें डॉ. नितीन धांडे ने शिक्षा क्षेत्र को लेकर रहनेवाला अपना चिंतन व्यक्त करने के साथ ही मौजूदा दौर की जरूरतों और भविष्य के हिसाब से किये जानेवाले नियोजन के संदर्भ में खुलकर अपने विचार रखे.
डॉ. नितीन धांडे के मुताबिक सबसे पहले तो ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत किये जाने की जरूरत है. जिसके तहत ग्रामीण इलाकों की प्राथमिक व माध्यमिक शालाओं में प्रयोगशालाओं व वाचनालयों के साथ ही मौजूदा दौर की जरूरत के लिहाज से कम्प्यूटर और इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा का रहना बेहद जरूरी है. क्योंकि यह सूचना तकनीक का दौर है. ऐसे में हम पढाई-लिखाई के परंपरागत तौर-तरीकों पर ही निर्भर नहीं रह सकते. ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में विद्यार्थियों के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत व विकसित करते समय हमें उन शालाओं में कार्यरत शिक्षकों को भी बदलते समय के साथ कदमताल करने हेतु तैयार करने के लिए प्रशिक्षित करते हुए तैयार करना होगा. यद्यपि यह अपने आप में एक दीर्घकालीक प्रक्रिया है, लेकिन हमें इस पर अभी से अमल करने की शुरूआत करनी होगी, ताकि धीरे-धीरे इस प्रक्रिया के तत्कालीक परिणाम दिखाई दे सके और उन परिणामों को देखते हुए भविष्य के लिहाज से जरूरत पडने पर शैक्षणिक नीतियों व नियोजन में आवश्यक सुधार भी किया जा सके.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत प्रादेशिक भाषाओं में शिक्षा सुविधा उपलब्ध कराने के प्रस्तावित प्रावधान का पूरी तरह से समर्थन करते हुए डॉ. नितीन धांडे ने कहा कि, हर व्यक्ति का अपनी मातृभाषा के साथ बेहद गहरा जुडाव होता है और मातृभाषा में पढी अथवा सुनी गई बात ज्यादा बेहतर तरीके से समझ में आती है. ऐसे में यदि हर व्यक्ति के पास अपनी मातृभाषा में पढाई करने का अवसर उपलब्ध हो, तो इसे एक शानदार पहल कहा जा सकता है. इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक परिणामकारक तरीके से कौशल्य विकासपूरक पाठ्यक्रमों को चलाये जाने के संदर्भ में बनाई गई नीति को भी कारगर कहा जा सकता है. इसके साथ ही डॉ. नितीन धांडे के मुताबिक खेती-किसानी एवं कृषि शिक्षा क्षेत्र हमेशा ही काफी हद तक अनदेखा रहा. ऐसे में कृषि विद्यापीठों को भी कौशल्य आधारित पाठ्यक्रमों से लैस किये जाने की सख्त जरूरत है.
शिक्षा के साथ ही चिकित्सा क्षेत्र पर भी अपना पूरा ध्यान रखनेवाले डॉ. नितीन धांडे ने इस बातचीत में कहा कि, देश के सामने इस समय स्वास्थ्य कर्मियों की कमी भी एक बडी समस्या है और इस समस्या से अमरावती सहित समूचा विदर्भ क्षेत्र भी जूझ रहा है. ऐसे में नये मेडिकल व पैरामेडिकल कॉलेजों को खोलते हुए डॉक्टरों व मरीजों के अनुपात में रहनेवाले फर्क को दूर किया जा सकता है. साथ ही उन्होंने कृषि व अकृषि विद्यापीठों में इस समय सकल एनरोलमेंट अनुपात (जीईआर) के अमरावती सहित समूचे देश में कम रहने पर अपनी चिंता जताते हुए कहा कि, इसे बढाने हेतु देश में निजी विद्यापीठों और क्लस्टर विद्यापीठों को शुरू किया जाना बेहद जरूरी है, ताकि जीईआर की स्थिति में सुधार हो सके. इसके अलावा सरकारी एवं अनुदानित स्कुलों व कॉलेजों में शिक्षकों व प्राध्यापकों के रिक्त पडे पदों पर तत्काल नियुक्तियां किये जाने की भी सख्त जरूरत है, ताकि शैक्षणिक गुणवत्ता के स्तर को उंचा उठाया जा सके. अपनी इसी बात को आगे बढाते हुए डॉ. नितीन धांडे ने शिक्षा क्षेत्र में निजी सहभागिता यानी पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशीप (पीपीपी) को प्रोत्साहन दिये जाने का समर्थन किया. डॉ. धांडे के मुताबिक ऐसा करने से महाविद्यालयों के पास बेहतरीन बुनियादी ढांचा और शानदार शैक्षणिक संसाधन उपलब्ध होंगे.
इस बातचीत में डॉ. नितीन धांडे ने विशेष जोर देकर कहा कि, हमारे महाविद्यालयों में आज भी कई ऐसे पाठ्यक्रम पढाये जाते है, जिनका मौजूदा दौर में रोजगार व कौशल्य के लिहाज से कोई उपयोग ही नहीं है. ऐसे में इस तरह के पाठ्यक्रमों को कालबाह्य कहा जा सकता है. जिन्हें तत्काल खत्म किये जाने की जरूरत है. इनके स्थान पर देश की युवा पीढी को और अधिक कार्यकुशल व कार्यक्षम बनाये जाने के लिहाज से मौजूदा दौर की जरूरतों के मुताबिक व्यवसायाभिमुख व रोजगारपूरक पाठ्यक्रम पढाये जाने चाहिए.
युवा पीढी को महाविद्यालयीन जीवन से ही उद्यमशील व रोजगार सक्षम बनाने की पूरजोर वकालत करते हुए डॉ. नितीन धांडे ने कहा कि, उच्च शिक्षा हासिल करते समय कमाओ और पढो, यानी अर्न एन्ड लर्न के सिध्दांत को अनिवार्य तौर पर लागू किया जाना चाहिए. जिसके तहत अभियांत्रिकी शिक्षा संस्थानों सहित सभी तरह के शिक्षा संस्थानों में ‘फैब लैब’ जैसी संकल्पना को साकार किया जाना चाहिए, ताकि वहां पर विद्यार्थी अपनी रूची व कौशल के हिसाब से काम करते हुए अपनी क्षमताओं को बढा सके. साथ ही साथ पढाई पर होनेवाले खर्च में अपनी ओर से भी कुछ योगदान दे सके. ऐसा होने पर विद्यार्थियों को महाविद्यालयीन जीवन से ही पैसों व रोजगार का महत्व पता चलेगा तथा महाविद्यालयीन जीवन से ही वे अपनी जिम्मेदारियों के प्रति और अधिक जिम्मेदार बनेंगे. जिसका आगे चलकर निश्चित तौर पर देश व समाज को ही फायदा होगा. इसके अलावा उन्होंने इंक्यूबेशन सेंटरों को प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत भी प्रतिपादित की, ताकि अधिक से अधिक विद्यार्थियों को स्टार्टअप् सेक्टर के साथ जोडने हेतु प्रेरित किया जा सके. वहीं उन्होंने सायन्स एवं तकनीकी शिक्षा संस्थानों में मौजूदा दौर की जरूरत को देखते हुए आर्टिफिशियल इंटेलीजन्स मशीन लर्निंग को शुरू किये जाने की जरूरत भी प्रतिपादीत की और आर्टिफिशियल इंटेलीजन्स को मौजूदा दौर की सबसे बडी जरूरत बताते हुए कहा कि, इस जरिये देश सहित दुनिया में अब तक कई क्रांतिकारी बदलाव लाये जा चुके है और आगे भी इसकी बडे पैमाने पर जरूरत पडेगी. अत: इसकी ओर बेहद गंभीरतापूर्वक ध्यान दिये जाने की सख्त जरूरत है.
इसके साथ ही डॉ. नितीन धांडे ने संभाग सहित विदर्भ क्षेत्र के छात्रों को लेकर कहा कि, हमारे यहां के छात्रों ने भी वक्त में हो रहे बदलावों को देखते हुए अपने आप को वैश्विक चुनौतियों और मौजूदा दौर की प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना चाहिए. जिस तरह मेडिकल, डेंटल, इंजीनिअरींग, टेक्नॉलॉजी, फार्मसी, लॉ व आर्किटेक्चर जैसे पाठ्यक्रमों में रोजगार की असीम संभावनाएं है. उसी तरह आर्टस्, सायन्स, कॉमर्स, फाईन आर्टस्, परफॉरमिंग आर्टस् तथा सामाजिक विज्ञान जैसे पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद भी अच्छे-खासे रोजगार प्राप्त किये जा सकते है, लेकिन इसके लिए बेहद जरूरी है कि, विद्यार्थियों द्वारा केवल अंक हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान को आत्मसात करने के लिए पढाई की जाये, तभी महाविद्यालय से निकलने के बाद उनके विषय से संबंधित क्षेत्र में उनकी पूछ-परख रहेगी और वे अपना सुनहरा भविष्य बना सकेंगे.