अमरावती

निषेध में कल जुड़वाशहर का व्यापार बंद रहेंगा

डॉ कमल अग्रवाल पर एट्रोसिटी का मामला

  • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आव्हान को आल ट्रेडर्स सहित सभी संस्थाओं का समर्थन

परतवाड़ा/अचलपुर दी २३ -: स्थानीय डॉ कमल अग्रवाल (Dr. Kamal Aggarwal) के खिलाफ पूर्व सैनिक अनिल मोहोड़ द्वारा दी गई शिकायत के आधार पर पुलिस ने अनुसूचित जाति-जमती अत्याचार प्रतिबंध अधीनियम 1998 के तहत मामला दर्ज किए जाने को लेकर शहर में चहुं ओर इसका तीव्र विरोध किया जा रहा है. पुलिस प्रशासन की अपनी मर्यादा होती है और आदेश का पालन कर कानून और व्यवस्था बनाये रखना उनकी जिम्मेदारी है.संविधान में  पिछड़ा और शोषित वर्ग की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक जो संशोधन किए गए, उसमें एट्रोसिटी एक प्रमुख हथियार है. कमल अग्रवाल जैसे चिकित्सक इसके दुरुपयोग का शिकार होंने की बात मीडिया को बताई जा रही है. पिछले 30 वर्षों में यह पहला मौका है जब प्रतिष्ठित कही जाती आयएमए ( Indian Medical Association ) संस्था ने अचलपुर -परतवाड़ा पूर्णतः बंद रखने का आव्हान किया है.कहा जा सकता है कि शहर के डॉक्टर्स मरीजो की सुरक्षा के साथ-साथ ही सभी नागरिको की संवैधानिक सुरक्षा के भी पक्षधर हो चुके है. यह एक अच्छा संकेत है.
स्थानीय ऑल ट्रेडर्स एसोसिएशन के साथ ही अचलपुर सराफा, संकल्प सेवा, रोटरी क्लब, लायंस, जेसीआय, पत्रकार संघ, वकील संघ आदि सभी ने कल गुरुवार के उक्त बंद को अपना पूर्ण समर्थन घोषित किया है.व्यापारी नेताओ और आयएमए के पदाधिकारियों की ओर से सोशल मीडिया पर लगातार कल के बंद को सफल बनाने का आव्हान किया जा रहा है.
उक्त दुर्भाग्यपूर्ण  घटना 1 सितंबर को घटित हुई.17 वर्षों तक भारतीय फौज में अपनी सेवाये देकर लौटे अनिल मोहोड़ की रपट पर 19 सितंबर को परतवाड़ा पुलिस ने कमल अग्रवाल को नामजद किया.संजीवनी अस्पताल में जो गुंडागर्दी हुई उसकी शिकायत डॉ अग्रवाल ने दी थी, उस आधार पर पुलिस ने अनिल मोहोड़ पर अपराध दर्ज कर दिया था.यह अपराध 2 सितंबर को ही दर्ज किया गया. पूर्व सैनिक अनिल पर दर्ज अपराध भी गंभीर स्वरूप का है, पुलिस ने महाराष्ट्र वैधकीय सेवा संस्था हानि/नुकसान अधीनियम की कलम 4 के तहत अनिल को आरोपित किया.इसलिए अनिल को प्रकरण में 10 सितंबर को अग्रिम और कंडीशनल बेल प्राप्त हुई.पहली घटना के 18 दिन बाद अनिल ने शिकायत दी और कमल पर शोषित वर्ग पर अत्याचार का मामला बनाया गया.
जुड़वाशहर में हर वर्ग, समुदाय और जाति के डॉक्टर्स है और नागरिको को किसी भी डॉ से कोई शिकायत सुनने को नही मिलती.जब इस प्रकार कुछ लीक से हटकर होता है तो उससे आपसी समन्वय दूषित होने की संभावना बढ़ जाती है.यहा सिर्फ डॉ कमल अग्रवाल के बचाव या उनकी व्यक्तिगत अच्छाई की बात नही की जा सकती है.जहां भी व्यापार अथवा व्यवसाय (प्रोफेशन) को लेकर कोई व्यक्ति खड़ा रहता है तो वो किसी भी समुदाय विशेष का हो, उसका प्रयत्न होता है कि वो आपने प्रांगण में आये ग्राहक, मरीज, पक्षकार का पूरा समाधान करे.कोई ऑटो रिक्शा वाला भी अपने पैसेंजर को उसकी जात नही पूछता, होटल, किराणा, मेडिकल, कपड़ा, बियर-बार, आदि कही भी जात के आधार पर कोई भेदभाव किया जाता हो, ऐसा कभी देखने-सुनने को नही मिलता है.इसका प्रमुख कारण यह है कि हर व्यवसायी अपने ग्राहक को खुश रखना चाहता है.ग्राहक, पेशंट वो बंदा है कि जो संबंधित सेवा आपूर्ति करते व्यक्ति की फुकट में पब्लिसिटी करता है कि फलाना-ढिमकाना व्यक्ति बहोत अच्छी सेवा देता है इसी पब्लिसिटी पर हर व्यक्ति की डिमांड और प्रतिष्ठा बढ़ती ही रहती है. इसलिये यह कहना कि डॉ कमल अग्रवाल ने छूट गालियां दी यह अतिशयोक्तिपूर्ण होंगा.आजकल सीसीटीवी कैमरे हर अस्पताल और संस्थानों में होते है.शायद पुलिस को इससे मदत मिले. घटना के वक्त सिर्फ पूर्व फौजी अनिल ही अस्पताल में मौजूद नही था बल्कि अन्य पेशंट भी नंबर लगाकर बुलावे की प्रतीक्षा में बैठे थे एट्रोसिटी के मामले की पूरी तहकीकात स्वयं पुलिस उपाधीक्षक करेंगे सो, वो इस प्रकरण में सभी चश्मदीद गवाहों से भी रूबरू होंगे तब जाकर दूध का दूध, पानी का पानी होंगा.किंतु आज पहली नजर में यह मामला द्वेषपूर्ण और बदले की भावना की प्रतिक्रिया ही नजर आता है.
शोषितों-वंचितों को केंद्र सरकार ने एट्रोसिटी का अधिकार दिया है, इसका सदुपयोग भी होना अत्यंत जरूरी है.वंचितों को संविधान से एट्रोसिटी के रूप में परमाणु बम दिया गया है, यदि कोई बंदा इसका किसी हिरोशिमा-नागासाकी पर दुरुपयोग करता है तो प्रतिपक्ष को कुछ समय तकलीफ जरूर होंगी,  लेकिन जब वह तकलीफ से उबरेगा तो फिर पूरे विश्व पर जापान समान उभर भी जायेगा. इसलिए समझदार लोग बिल्कुल आपातकाल में ऐसे संविधान प्रदत्त हथियार का इस्तेमाल करते है.
जुड़वाशहर के लोग रोजाना सुशांत-रिया ड्रग्स  केस में इलेट्रॉनिक मीडिया की ट्रायल और हो-हल्ला सुनकर पक चुके है.जब टीवी कुछ नामालूम लोगो के लिए दिन-रात न्यूज़ चला सकता है तो फिर जुड़वाशहर के अखबारनवीसों ने भी फौजी वर्सेस डॉक्टर मामले में इनपुट- आउटपुट देते रहना चाहिए. ‘अमरावती मंडल‘ कमल अग्रवाल के केस में हर मुमकिन जानकारी अपने पाठकों को देता रहेंगा. हमारा पूर्व फौजी अनिल मोहोड़ से संपर्क नही हो पाया है अन्यथा हम रिया, जया बच्चन और अनुराग कश्यप समान उनका पक्ष भी जरूर रखेंगे.पत्रकारो का भी यह दायित्व है कि वो दोनों पक्षो को सामने रखे.
अब डॉ कमल अग्रवाल पर एट्रोसिटी के मामले से शहर में एक नई सतर्कता का जन्म हुआ और प्रत्येक व्यवसायी इस सतर्कता के साथ अपने व्यवहार को अमलीजामा पहनायेंगा, तब जो होंगा उसकी शिकायत कही भी दर्ज नही की जा सकेंगी. इसलिए मिथ्या एट्रोसिटी की शिकायत का कोई भी समुदाय का नागरिक कभी समर्थन नही करेंगा.यह फर्जीवाड़ा सामाजिक वातावरण को दूषित करता हैऔर इसी के परिणामस्वरूप फिर ‘मीठा बहिष्कार’ शुरू कर दिया जाता है.
अब पूरे केस की प्रत्यक्ष जांच पड़ताल एसडीपीओ पोपटराव अब्दागिरे करेंगे.वो घटनास्थल यानी अस्पताल का भी मुआयना कर सकते है.फिर्यादि अनिल को उस पर हुए जुल्म को सिद्ध करने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष गवाहों की जरूरत होंगी, पूर्व में एट्रोसिटी मामले में सामान्य जाती के गवाह होना आवश्यक था, अब इसमें गवाह की दरकार होती है अथवा नही ..यह भी हमे जांच के दौरान देखने को मिल सकता है.पूर्व सैनिक ने अपनी शिकायत में घटना का समय 1 सितंबर दोपहर 4 से 6 के बीच का बताया है. डॉ कमल ने नगदी 1 लाख रुपये जमा करने को कहां, नही खनवे पर गालियां दी तुम को फ्री का खाने को होना , पैसे पूरे और एडवांस में लगेंगे इस प्रकार के गंभीर आरोप लगाए है.उसके बाद अनिल ने यह भी आरोप लगाया है कि पूरे विदर्भ में जहाँ-जहाँ भी वो अपने पिताश्री को उपचार हेतु ले गया , वहा हर डॉ ने इलाज करने से मना कर दिया.अनिल के आरोप की सत्यता पर मोहर लगाने के लिए एसडीपीओ को सभी डॉक्टरों के बयान भी लेने होंगे संजीवनी का स्टाफ, वहा इलाज को आये मरीज, अस्पताल में लगे सीसीटीवी के फुटेज, 60 हजार का इंजेक्शन, नागोराव को संजीवनी में भरती करना जरूरी था क्या, डॉ कमल यह पैरालिसिस का भी इलाज करते है क्या ? डॉ कमल की ओर से पेशंट नागोराव मोहोड़ के स्वास्थ्य जांच की जो परीक्षण रिपोर्ट तैयार की गई आदि सभी की जांच होने के बाद ‘ शिकायत योग्य ‘ पाये जाने पर केस न्याय प्रविष्ट किया जायेगा.अन्यथा सक्षम पुलिस अधिकारी अपने अधिकार का प्रयोग कर मिथ्या मामले को फ़ाइल भी कर सकता है.
हम इस मामले में अनिल की पीड़ा भी लिखना चाहते है, किंतु संपर्क नही हो पाया. वो जब भी इस अत्याचार पर स्वयं की भूमिका रखेंगे तो उसे भी सम्मान दिया जायेगा.
शहर के सभी समुदाय के, जाति के चिकित्सकों ने इस एट्रोसिटी प्रकरण का तीखे शब्दो मे निषेध किया और पहली बार आयएमए की जानिब से बंद भी पुकारा गया है.राज्य व केंद्र की कमान संभाल रहे नेताओ तक बंद की यह गूंज पहुंचने की अपेक्षा की जा रही है.
21 वी सदी के सबसे भीषण प्रकृतिक -कृत्रिम कोरोना महामारी संकट से, निपटने के लिए धनवंतरी के उपासकों से पंगा लेना शर्मनाक है.आज पूरे देश मे जो लोग कोरोना से बचकर अपने परिवार संग जीवन व्यतीत कर रहे, उन्हें सकुशल घर लौटाने में इन्ही वैधकीय जमात का योगदान निहित है.भीषण संक्रमणकाल में डॉक्टर को आरोपित करना,  यह सिर्फ वातावरण को दूषित करने की आक्रमकता ही दर्शाता है.धर्मनिरपेक्ष, गंगा-जमुनी तहजीब के अचलपुर-परतवाड़ा में हम सभी को इस मुद्दे पर चिंतन-मनन करना होंगा.

 

  • आयएमए से पीड़ित मरीजो का अनुरोध

डॉ कमल अग्रवाल पर दर्ज किए गए एट्रोसिटी मामले  को लेकर पहली मर्तबा डॉक्टरों की संस्था ने बंद पुकारा है.इसी परिप्रेक्ष्य में बंद को समर्थन देते हुए कई मरीजो ने भी अपनी व्यथा सुनाई और अनुरोध किया कि जुड़वाशहर के सभी डॉक्टर व आयएमए मरीजो की इस पीड़ा को जरूर हर लेंगे.
अनेक भुक्तभोगी मरीज, उनके परिजन और नागरिको ने बताया कि शहर के अधिकांश अस्पताल में डॉक्टर अपने मरीज को जो औषधि का नुस्खा (चिट्ठी, प्रेस्क्रिबशन) लिखकर देता है, वो दवा/गोली, टैबलेट, इंजेक्शन आदि कोई भी साहित्य एक तो उस मेडिकल में मिलता है जो अस्पताल में ही है अन्यथा फिर उसे सीधे निर्माता फैक्ट्री से ही खरीदा जा सकता है. ऐसा क्यों.?
अचलपुर-परतवाड़ा में अभी तक मरीजो की कोई संघटना नही बनी है और ना ही भविष्य में इसके कोई चांस है. पीड़ित , दुखी मरीजो का कहना है कि कोई भी डॉक्टर ऐसी दवा लिखकर दे जो किसी भी दुकान पर आसानी से मिले. आजकल दवा दुकानों में भी स्पर्धा है, इसका फायदा पेशंट को मिलना चाहिए. हर व्यक्ति की किसी दवा दुकानदार से पहचान होती जहाँ उसे उधार की सुविधा मिल जाती है. देखने मे यह आया कि कुछ अस्पतालों में मरीज के परिजनों को सिर्फ अस्पताल की दुकान से ही दवा खरीदना पड़ता है. ऐसे दवाखानों में लोगो को दिखाने बोर्ड लगे है कि आप दवा कही से भी खरीद सकते लेकिन हकीकत में वो दवा अन्य जगह नही मिलती है. आयएमए के पदाधिकारी यदि अपने सभी साथी सदस्यों को यह करने को कहे तो शहर के मरीजो को बड़ी सुविधा उपलब्ध होंगी. सामान्य और मध्यमवर्गीय पेशंट को उसकी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रख सस्ती दवाएं लिखकर देना अपेक्षित होता है.एक पेशंट ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि वो एक चर्मरोग (त्वचा) विशेषज्ञ डॉक्टर के पास इलाज को गया.डॉक्टर साहेब ने जांच की फीस सिर्फ 200 रुपये ही ली, लेकिन दवा सिर्फ एक हजार रुपये की लिखकर दे दी. यह पीड़ित बंदा पूरे शहर का चक्कर लगाकर लौट आया, आखिर में उसे दवा अस्पताल में स्थित दुकान से ही खरीदनी पड़ी. जुड़वाशहर के नागरिक, मरीज, दुकानदार, वकील, पत्रकार यदि आयएमए के बंद को समर्थन दे रहे तो कम से कम आयएमए सर्वत्र उपलब्ध दवाओं का इंतजाम तो कर ही सकता है. शहर के लोगो का ‘आर्थिक स्वास्थ्य’ सचारु रहे, उन पर कर्ज न हो इसलिए सस्ती व सभी जगह उपलब्ध दवाएं प्रिस्क्राइब करने की अपेक्षा व्यक्त की जा रही है.

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