राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के विचार आत्मसात कर समाज व राष्ट्र की प्रगति के वाहक बने
अखिल भारतीय गुरुदेव सेवा मंडल के स्वास्थ विश्वस्थ प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम पालेकर का कथन
गुरुकुंज मोझरी/दि. 17 – आज राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के विचारों को समझने की सही मायने में आवश्यकता है. इंटरनेट, मोबाइल के युग में सभी का वाचन कम हुआ है. राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने अपने साहित्य संपदा में विद्यार्थियों को जीवन में सफल होने का मार्ग दिखाया है. वकृत्व स्पर्धा में विद्यार्थियों की विचारधारा मजबूत होने में सहायता होती है. महाविद्यालयीन युवकों ने राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के विचारों से प्रेरणा लेकर और विचार आत्मसात कर समाज व राष्ट्र की प्रगति के वाहक बनने का प्रतिपादन अखिल भारतीय श्रीगुरुदेव सेवा मंडल के स्वास्थ विश्वस्त प्रमुख व महाराष्ट्र मेडीकल कौन्सिल के पूर्वाध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम पालेकर ने किया.
डॉ. पुरुषोत्तम पालेकर राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज के 56 वीं पुण्यतिथि महोत्सव निमित्त श्रीगुरुदेव आयुर्वेद महाविद्यालय अंतर्गत राष्ट्रीय सेवा योजना की तरफ से आयोजित की गई राज्यस्तरीय आंतर महाविद्यालयीन वकृत्व स्पर्धा कार्यक्रम की अध्यक्षता पद से वे बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि, वर्ष 1989 में नागपुर विद्यापीठ के तत्कालीन कुलगुरु डॉ. दादासाहेब कालमेघ ने राष्ट्रसंत के पुण्यतिथि महोत्सव में वकृत्व स्पर्धा का समावेश रहने की संकल्पना रखी थी. तब से यानी 35 साल से आंतर महाविद्यालयीन वकृत्व स्पर्धा लगातार जारी है. इस बात की उन्हें काफी खुशी है. इस अवसर पर कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि शिवाजी कला व वाणिज्य महाविद्यालय आकोट के प्राचार्य डॉ. रामेश्वर भिसे ने कहा कि, वकृत्व स्पर्धा में हार और जीत महत्व की नहीं है. नेतृत्व गुणों के विकास के लिए पुण्यतिथि महोत्सव में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज का मंच मिलना ही बडी बात है. वर्तमान समय में वक्ता मिलना आसान है. लेकिन श्रोता मिलना कठिन है. राष्ट्रसंत साहित्य यह अक्षर वाङमय है. इसमें युगधर्म यानी क्या? यह कहा गया है. वास्तविक परिस्थिति का भान देनेवाला साहित्य राष्ट्रसंत द्वारा लिखे जाने से इस साहित्य का अभ्यास युवकों ने करना चाहिए. लेकिन इसके लिए आचरण महत्व का है. आचरण के बगैर विचारों का महत्व लोगों को आप बता नहीं सकते.
कार्यक्रम में मंच पर श्रीगुरुदेव आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मुरलीधर खारोडे, राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. लक्ष्मीकांत पायमल्ले, सहायक कार्यक्रम अधिकारी मंगेश कोल्हटकर, डॉ. नंदकिशोर काले, पुरस्कार दाता रमेश बोबडे, डॉ. राजेश बोबडे, डॉ. मंगला देशमुख, डॉ. चारुता पार्लेवार, डॉ. जनसेवक जयस्वाल उपस्थित थे. इस राज्यस्तरीय आंतर महाविद्यालयीन वकृत्व स्पर्धा में संपूर्ण महाराष्ट्र से स्पर्धक शामिल हुए. इंदुताई अजाबराव देशमुख स्मृति प्रित्यर्थ प्रथम पुरस्कार श्रीगुरुदेव आयुर्वेद महाविद्यालय की छात्रा प्रतीक्षा शिंदे को, स्व. शांताबाई श्यामराव बोबडे की स्मृति में द्वितीय पुरस्कार विवेक नारंगे (यशवंत महाविद्यालय वर्धा), डॉ. अनिल गंधे की स्मृति में तृतीय पुरस्कार अभय आलसी (विग वझे महाविद्यालय मुलुंड, मुंबई) को, स्व. रमेश लकडे की स्मृति में चतुर्थ पुरस्कार प्रथमेश धायगुडे (केएसी महाविद्यालय, खोपोली) व आदित्य टोले को डॉ. अशोक कोठारी की तरफ से पांचवां पुरस्कार दिया गया. सभी सहभागी स्पर्धकों को स्मृतिचिन्ह, प्रशस्ती पत्र व डॉ. जनसेवक जयस्वाल की तरफ से ग्रामगीता प्रदान की गई. परीक्षक के रुप में अरविंद राठोड व सुषमा सोनारे ने काम संभाला. कार्यक्रम का संचालन सहानिका इंगोले व श्रद्धा वाभले ने किया.