अमरावती

केकडा, राधे, टॉम एण्ड जेरी, मोदी, स्पायडरमेन की बिक्री अधिक

मकर संक्रांत के अवसर पर लोग लेते हैं पतंगबाजी का लुफ्त

* साबनपुरा व्यवसायी जावेद अहमद जमील अहमद के यहां बढी पतंगो की बिक्री
अमरावती/दि.14- मकर संक्रांत का पर्व आते ही सभी तरफ पतंगबाजी की धूम रहती है. पिछले तीन दिनों से आसमान में पतंगों की भरमार दिखाई दे रही है. शनिवार और रविवार दो दिन अवकाश के आने से पतंगो की बिक्री बढ गई है. युवक स्पायडरमेन, केकडा, राधे, टॉम एण्ड जेरी, नरेंद्र मोदी, टीपू सुल्तान, चांद तारा को अधिक पसंद कर रहे है.
शहर के साबनपुरा स्थित पतंग व्यवसायी हाजी जमील अहमद पिछली चार पीढीयों से पतंग बनाने का व्यवसाय करते आ रहे है. उनका कहना है कि, पतंग बनाना सादा काम नहीं है. एक पतंग 7 लोगों के हाथ से तैयार की जाती है. इसे बनाने का काम अलग-अलग रहता है. कटिंग करना, जोडना, कमान लगाना, खडी कमछी लगाना, धागा बांधना, पट्टी लगाना आदि प्रक्रिया पूर्ण करने के बाद पतंग तैयार होती है. एक कारागीर पूरे दिन में 1 हजार पतंग बना सकता है. पिछले एक सप्ताह से पतंगो की बिक्री बढी है. अनेक लोग जगह-जगह पतंगोत्सव का कार्यक्रम भी लेते है. ऐसे समय पतंगो की बिक्री बढ जाती है. साथ ही अवकाश के अवसर पर युवक पतंगो की खरीदी अधिक करते है. इस बार मकर संक्रांति के अवसर पर शनिवार और रविवार रहने से पतंगो की बिक्री बढी है. हाजी जमील अहमद ने बताया कि वर्तमान में युवकों की पसंद केकडा, स्पायडरमेन, चांद तारा, नरेंद्र मोदी, टॉम एण्ड जेरी, पुष्पा, राधे, टीपू सुल्तान आदि पतंग है.

* अन्य जिलों में भी जाती है पतंग
हाजी जमील अहमद ने बताया कि, अमरावती में बनाई जाने वाली पतंग अतरावती जिले के विभिन्न तहसीलों के अलावा अकोला, नागपुर, मध्यप्रदेश के छिंदवाडा भी पतंग व्यवसायी बिक्री के लिए ले जाते है. वर्षो से यह परंपरा कायम है.

* बरेली के कॉटन मांजे की मांग
चायना मांजा पर शासन व्दारा पाबंदी लगाई गई है और इसकी अवैध रुप से बिक्री करने वालो पर पुलिस प्रशासन व्दारा कार्रवाई की जा रही है. हाजी जमील अहमद के मुताबिक बरेली के कॉटन मांजे की मांग अधिक है. बरेली का मांजा बिक्री के लिए काफी आता है इसके अलावा पतंग तैयार करने का कागज मुंबई से और बांस आसाम से लाया जाता है.

* पहले की तुलना मेें व्यवसाय कम
हाजी जमील अहमद ने बताया कि, पहले पतंग का व्यवसाय पोले से लेकर मकर संक्रांति तक चलता था. लेकिन अब बडी मुश्किल से 20 से 25 दिन तक यह व्यवसाय रहता है. बच्चों के पास मोबाइल आने और मनोरंजन के अन्य साधन उपलब्ध रहने से पतंगबाजी की तरफ रुची कम हो गई है. केवल मकर संक्रांति के अवसर पर कुछ दिनों तक यह व्यवसाय चलता है.

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