सामूहिक दुराचार के आरोपी को सजा में छूट दी जा सकती है क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा सवाल
नागपुर/दि.14– 12 वर्ष से कम आयु वाली अल्पवयीन बच्ची पर सामूहिक दुराचार करने वाले आरोपी को आजन्म कारावास की सजा में कोई छूट दी जा सकती है क्या, इस आशय का सवाल गत रोज सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार से पूछा.
उल्लेखनीय है कि, 12 वर्ष से कम आयु वाली किसी भी नाबालिग बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार करने वाले आरोपी को कम से कम आजन्म कारावास की सजा सुनाए जाने का प्रावधान है. साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी) (बी) में यह प्रावधान किया गया है कि, ऐसे आरोपी को किसी भी तरह से सजा में कोई छूट न दी जाए. निर्भया मामले के बाद केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में कानून में दुरुस्ती करते हुए इस प्रावधान का समावेश किया था. इस तरह के अपराध में फांसी अथवा कम से कम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. जिसके खिलाफ बुलढाणा जिले के चिखली निवासी निखिल शिवाजी गोलाइत (35) नामक आरोपी ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है. जिस पर न्यायमूर्तिद्बय अभय ओक व पंकज मिथल की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई. जिसके दौरान अदालत में केंद्र सरकार से उपरोक्त सवाल पूछा. जिस पर अटर्नी जनरल आर. व्यंकटरामानी ने बताया कि, केंद्र सरकार ने नई दंड संहिता बनाई है. जिस पर संसद में चर्चा होने वाली है. अत: तब तक इस मामले पर सुनवाई को स्थगित रखा जाए. जिसके पश्चात अदालत ने इस मामले पर विस्तृत विचार मंथन आवश्यक रहने की बात कहते हुए इस मामले में अगली सुनवाई आगामी 5 दिसंबर को करना निश्चित किया.
* जीने के अधिकार की अनदेखी करने वाला प्रावधान
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए एड. गौरव अग्रवाल व एड. मनन डागा ने कहा कि, नाबालिग बच्ची पर बलात्कार कर उसकी हत्या करने वाले कई मामलों में आरोपी की फांसी की सजा को रद्द करते हुए ऐसे अपराधियों को 20, 25 अथवा 30 के कारावास की सजा सुनवाई गई है. इसके अलावा 12 वर्ष से कम उम्र वाली बच्ची पर बलात्कार होने पर अपराधी को धारा 376 (ए) (बी) के तहत कम से कम 20 वर्ष के कारावास की सजा देने का प्रावधान है. लेकिन इसके बावजूद इस मामले में 12 वर्ष से कम आयु वाली बच्ची पर सामूहिक बलात्कार करने वाले आरोपियों को आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई है, जो भेदभावजनक है तथा याचिकाकर्ता के जीने के अधिकार की अनदेखी करता है.