* उम्मीदवार से नाराजगी, पार्टी की बगावत, मविआ का नया चेहरा
अमरावती/दि.3- नाम भले ही रणजीत हो, किंतु इस बार चुनावी रण में पराजीत होने वाले भाजपा प्रत्याशी डॉ. रणजीत पाटिल की हार के अनेक कारण बताए जा रहे है. जिसमें भाजपाई भले ही रद्द वोटो की संख्या की ओर इशारा कर रहे. किंतु अकोला से लेकर सभी पांच जिलों में पाटिल के प्रति मतदाताओं की नाराजगी उसी प्रकार बगावत और महाविकास आघाडी व्दारा नया चेहरा मैदान में उतारना भी पाटिल की हार की वजह बताया जा रहा हैं. विशलेषक अपने-अपने अंदाज और एंगल से बात कर रहे हैं. सच यही है कि बी.टी.देशमुख जैसे दिग्गज को पराभूत करनेवाले रणजीत पाटिल अपनी विजय की तिकडी से चूक गए हैं.
* पांच जिलों में फैला
अमरावती स्नातक निर्वाचन क्षेत्र पांच जिलोें अमरावती, अकोला, बुलढाणा, वाशिम, यवतमाल में विस्तृत है. प्रतिष्ठापूर्ण स्थान हेतु 23 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे. जिनमें दो महिलाएं भी थी. कुल 206172 वोटर्स रहने पर भी केवल 102403 वोटर्स ने मतदान किया. इसमें 8387 वोट रद्द माने गए. 94200 वोट ही वैध रहे. प्रथम फेरी का विजय का कोटा 47101 तय कियाा गया. यह कोटा कोई भी प्राप्त नहीं कर सका. जिसके कारण दूसरी पसंद के वोट गिनने पडे. महाविकास के घीरज लिंगाडे 46344 और रणजीत पाटिल को 42962 वोट प्राप्त हुए. शेष उम्मीदवारों ने बडे प्रमाण में वोट लेने से उसका खामियाजा पाटिल को सहना पडा. लिंगाडे 3382 वोटो से बाजी मार गए.
* मतदान का टक्का घटा
स्नातक चुनाव में पिछली बार की तुलना में 13 प्रतिशत वोटिंग कम हुआ है. इस बार संभाग में 49.67 प्रतिशत ही वोटिंग हुआ. जबकि 2017 में 63.50 प्रतिशत मतदान हुआ. इस कम वोटिंग का भी असर रणजीत पाटिल की संभावना पर होने की बात जानकार कर रहे हैं. वे समझाते है कि संभाग में सर्वाधिक 58.87 प्रतिशत यवतमाल जिले में हुआ. बुलढाणा में 53, वाशिम में 54.80 और अमरावती में केवल 43.37 प्रतिशत मतदान हुआ.
* 2 नंबर ने किया घात
स्नातक निर्वाचन चुनाव क्षेत्र में बडे प्रमाण में वोट अवैध हुए. उसमें अवैध मतदान का सर्वाधिक असर रणजीत पाटिल को ही लगा. लगभग 6 हजार वोट में मतदाताओं ने रणजीत पाटिल के नाम के सामने ‘दो’ आंकडा लिखने का निरीक्षण चुनाव निरीक्षकों ने दर्ज किया है. रणजीत पाटिल बैलेट पेपर पर दूसरे नंबर पर थे. अधिकांश मतदाताओं ने उनके नाम के आगे 2 यह संख्या लिखी. पहली व अन्य कोई पसंद मतदाताओं ने उस बैलेट पेपर पर दर्ज नहीं की. अधिकांश बैलेट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. पाटिल के सामने दो का अंक लिखा था. इसके कारण लगभग 6 हजार वोट चुनाव से दूर हो गए.
* कई चुनौतियां सामने रही
रणजीत पाटिल ने पहले 2010 के चुनाव में बी.टी.देशमुख जैसे धुरंधर को हराया था. 2017 में भी उन्होंने आसान जीत दर्ज की थी. इस बार उनके सामने अनेक चुनौतियां रही. जिसमें महाविकास आघाडी ने विविध ंसंगठनों को साथ लेकर लिंगाडे को मैदान में उतारा. महाराष्ट्र राज्य जूनी पेंशन संगठन और अन्य का समर्थन लिंगाडे के लिए जुटाया. शिक्षक व कर्मचारी संगठनों की भूमिका का चुनाव परिणाम पर असर साफ नजर आया.
* नाराजगी भारी पडी
रणजीत पाटिल ने 12 वर्ष के विधान परिषद कार्यकाल में स्नातकों की समस्याओं की अनदेखी की. ऐसे ही उनके गृह जिले अकोला में ही भाजपा पदाधिकारियों में उनके प्रति नाराजगी स्पष्ट दिखाई दे रही थी. कहा जा रहा है कि अकोला के पालकमंत्री के रुप में काम करते समय उन्होंने कई पदाधिकारियों को नाराज कर दिया था. ऐसे ही धोत्रे गुट और अन्य उनसे फासला बनाकर चलने लगे थे. पाटिल ने पालकमंत्री रहते हुए जिले में पक्ष संगठन मजबूत करने कोई विशेष पहल नहीं की थी. वोटर्स की नाराजगी, शिक्षक और कर्मचारी संघो व्दारा ऐन चुनाव के समय ली गई भूमिका पाटिल को भारी पडी.