
अमरावती/दि.18– मंत्रालय में जलापूर्ति व स्वच्छता विभाग में सहायक कक्ष अधिकारी पद पर कार्यरत अश्विनी अर्जुनराव पोतलवाड नामक महिला अधिकारी का ‘मन्नेरवारलू’ यह अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र रद्द कर उसे जब्त किया गया है. अब उसी परिवार की निकिता लक्ष्मण पोतलवाड व सचिन भीमराव पोतलवाड का भी ‘मन्नेरवारलू’ यह अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र रद्द व जब्त किया गया है.
निकिता पोतलवाड ने नांदेड जिले के देगलुर के उपविभागीय अधिकारी कार्यालय से ‘मन्नेरवारलू’ यह जनजाति का जाति प्रमाणपत्र प्राप्त किया था. किनवट समिति ने यह कास्ट वैलिडिटी रद्द व जब्त की. समितिस्तर पर जमात दावा जांच की कार्रवाई शुरु रहते उसने उच्च न्यायालय मुंबई, खंडपीठ औरंगाबाद ने रिट याचिका दायर की. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने उसका जमात दावा निश्चित समय मर्यादा में जांच करने के आदेश समिति को दिये थे. सचिन भिमराव पोतलवाड ने भी देगलुर उपविभागीय कार्यालय से 84 क्रमांक का ‘मन्नेरवारलू’ जनजाति का प्रमाणपत्र 30 मार्च 2017 को प्राप्त किया था. निकिता, अश्विनी और सचिन एक ही परिवार के सदस्य रहने से उनके प्रकरण में एकत्रित जमात दावा जांच का निर्णय समिति ने लिया था.
* कार्रवाई की जिम्मेदारी किस पर?
– निकिता पोतलवाड पर कार्रवाई करने के लिए प्राचार्य सेवादास माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय वसंत नगर (कोटग्याल) तहसील मुखेड, जि. नांदेड पर जिम्मेदारी सौंपी है.
– जबकि सचिन पोतलवार पर कार्रवाई करने के लिए प्रबंधक, विश्वकर्मा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी 666, अपर इंदिरा नगर बिबवेवाडी पुणे पर जिम्मेदारी सौंपी गई है.
* फर्जी प्रमाणपत्र लेने वालों पर कडी कार्रवाई हो
राज्य सरकार द्वारा जाति जांच के कानून 2000, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय 6 जुलाई 2017 पर प्रभावी रुप से अमल कर फर्जी जाति प्रमाणपत्र लेने वाले और देने वालों पर कडी कार्रवाई करनी चाहिए. प्रभावी रुप से अमल न होने के कारण राज्य में कानून की धज्जियां उड रही है. आदिवासियों के शिक्षा और नौकरी के आरक्षण की लूट हो रही है.
– बालकृष्ण मते,
राज्य उपाध्यक्ष, ट्रायब फोरम,
महाराष्ट्र.