अमरावती

इल्लियों का सोयाबीन की फसल पर प्रकोप

किसानों की चिंता बढ़ी

फोटो- लोकमत
* चौलाई, तुअर, मूंगफली, मिर्ची, करेला फसलों को भी फटका
अमरावती/दि.13– सोयाबीन तो कुछ स्थानों पर फल्लियां भरने की अवस्था में है. ऐसे समय कीड़ों का प्रादुर्भाव बडने से फसलों का नुकसान हो रहा है. समय रहते व्यवस्थापन न करने से बड़ा नुकसान होने की संभावना है.
इस कीड़े का प्रादुर्भाव बुआई के बाद 20 से 30 दिनों की कालावधि में होता है. सोयाबीन का तना उकेरने वाले कीड़े है. चक्री भुंगे के प्रादुर्भाव के कारण 35 प्रतिशत तक नुकसान होता है. सोयाबीन के अतिरिक्त चौलाई, तुअर, मूंगफल्ली, मिर्ची, करेला आदि फसलों पर भी चक्री भुंगे का प्रादुर्भाव होता है.
प्रौढ भूंगा व इल्ली ये दोनों अवस्था सोयाबीन फसल का नुकसान करते हैं. प्रौढ भुंगा पत्तियों के मुख्य छोर या खोड को कुरेदता है. जिससे सोयाबीन का अधिक नुकसान नहीं होता. लेकिन इस कीड़े की इल्ली अवस्था के कारण ही मुख्य रुप से फसलों का नुकसान होता है. मादी भुंगा पत्तियों के तने पर दो समांतर गैप करता है व निचली गैप के पास अंडे डालने के लिए तीन छेद करता है. तने पर गैप करने पर 2 से 3 दिनों में ऊपरी भाग सूखने की शुरुआत होती है. पत्तों पर गैप करने पर पत्ते सूख जाते हैं.
फसल उगने के बाद 15 से 20 दिनों में चक्री भुंगे का प्रादुर्भाव होने पर अधिक पैमाने पर नुकसान होता है. अंडे से इल्ली निकलने के बाद वह पत्तों पर, तने को कुरेदते हुए जमीन की ओर जाती है. कीड़ों के प्रादुर्भाव से फल्ली कम लगती है तथा पौधों की संख्या भी कम होकर नुकसान होता है.
* इस तरह करें कीड़ों का व्यवस्थापन
आर्थिक नुकसान स्तर पार करने पर क्लोरेनट्रेनीलीप्रोल 18.5 एस 3 मिली या इमामेक्टीन बेन्झोएट 1.90 ईसी 9 मिली या प्रोफेनोफोस 50 ई सी 20 मिली या टेट्रेंलीप्रोल 18.18 एससी 5-6 मिली या बीटा सायफ्लूथ्रीन 8.49 प्रतिशत अधिक इमीडेक्लोप्रीड 19.8 प्रतिशत ओडी 7 मिली या थायमिथॉक्झाम 12.6 प्रतिशत लेम्बडा-सायलोथ्रिन 9.50 झेडसी 2.5 मिली या क्लोरेनट्रेनीलीप्रोल 9.30 लेम्बडा-सायलोथ्रिन 4.60 झेड सी 4 मिली प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर फवारणी करें.

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