ने खा लिया गोरखाओं का रोजगार
अमरावती/दि.21– सुरक्षा के लिए पहले निजी आस्थापनाओं में गोरखा नियुक्त किए जाते थे. चौकीदार के रुप में तैनात यह गोरखा रात को खुद आवाज लगाते थे. महिने की शुरुआत में वह बदले में चंदा मांगते थे. इससे उनका गुजारा चलता था. लेकिन सीसीटीवी कैमरे लगे तब से गोरखाओं का यह रोजगार भी हाथ से चला गया है.
* शहर में गिनती के गोरखे
पहले गोरखा गश्त लगाता था. निजी स्थानों पर यह गश्त विशेष रुपसे दिखाई देती थी. रात के समय शीटी बजानेवाले गोरखे नए तकनीकी ज्ञान के कारण कम हो गए है.
* शहर में रात की गश्त कौन करता है?
शहर में रात के समय पुलिस गश्त लगाई जाती है. पेट्रोलिंग पुलिस दल उनके वाहन के साथ अनेक इलाकों में रात के समय घूमते दिखाई देते है. बीट मार्शल, डीबी दल भी है.
* गोरखा रहे नाममात्र
पहले निजी एजेंसी में गोरखा नौकरी करते थे. इन एजेंसियों पर अनेक बंधन आ गए. उन्हें गृहविभाग का लाईसेंस, मंजूरीप्राप्त लाईसेंस चाहिए. ऐसे लाईसेंस गिनती की एजेंसियों के पास रहने से गोरखा नाममात्र ही बचे है.
* सीसीटीवी ने रोजगार छिना
करीबन 10 वर्ष पूर्व निजी रहे अथवा सरकारी इन सभी आस्थापना में सुरक्षा रक्षक रहते थे. अब वह संख्या कम हो गई है और सभी तरफ सीसीटीवी लग गए है. वहीं दूसरी तरफ बडे-बडे अपार्टमेंट और निजी आस्थापना भी गोरखा की बजाए एजेंसी के जरिए सुरक्षा रक्षक लेने पर जोर दे रही है.
* होटल पर काम करता हूं
पहले राजापेठ परिसर में गश्त लगाता था. काफी कम पैसे मिलते थे. इस कारण अब होटल पर काम करता हूं.
– गोरखा.
* सीसीटीवी कैमरे लगाने ही चाहिए
अपार्टमेंट धारक व बडी आस्थापना द्वारा सीसीटीवी कैमरे लगाने चाहिए. केवल गोरखा पर अवलंबित नहीं रहना चाहिए. हमारी गश्त पूरी रात रहती है.
– मनोहर कोटनाके, थानेदार, कोतवाली.