20 से 22 तक महानुभाव आश्रम का शतकपूर्ति समारोह
रोट उपहार महोत्सव से होगा आयोजन का प्रारंभ
* संग प्रमुख मोहन भागवत व योगी आदित्यनाथ भी रहेंगे उपस्थित
* राज्य के नवनियुक्त सीएम व डेप्यूटी सीएम की भी रहेगी उपस्थिति
* कंवर नगर व भानखेडा के आश्रमों में जमकर चल रही तैयारियां
* भव्य शोभायात्रा, संन्यास दीक्षा व धर्मसभा का भी होगा आयोजन
अमरावती /दि.3- स्थानीय कंवर नगर परिसर स्थित महानुभाव आश्रम की स्थापना हुए आगामी 20 नवंबर को 100 वर्ष पूरे होने जा रहे है. जिसके चलते स्थानीय महानुभाव संप्रदाय द्वारा आगामी 20 से 22 दिसंबर तक महानुभाव आश्रम का शतकपूर्ति महोत्सव आयोजित किया जा रहा है. तीन दिनों तक चलने वाले इस शतकपूर्ति महोत्सव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत सहित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उपस्थित रहने वाले है. इसके अलावा इस महोत्सव में राज्य के नवनियुक्त मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री को भी आमंत्रित किया जाएगा. साथ ही इस आयोजन के दौरान विशाल शोभायात्रा, संन्यास दीक्षा व धर्मसभा का आयोजन भी होगा.
इस संदर्भ में जानकारी देते हुए स्थानीय महानुभाव आश्रम के सूत्रों द्वारा बताया गया कि, इस शतकपूर्ति महोत्सव का शुभारंभ 20 दिसंबर को सुबह 9 बजे कंवर नगर परिसर स्थित महानुभाव आश्रम में ध्वजारोहण व रोट उपहार महोत्सव से होगा. जिसके उपरान्त दोपहर 3 बजे सायंस्कोर मैदान से भव्य दिव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी. जिसमें बैन्जों पथक व बैंड पथक के साथ ही घोडे व उंट का समावेश रहेगा. यह शोभायात्रा सायंस्कोर मैदान से निकलकर राजकमल व राजापेठ होते हुए कंवर नगर परिसर स्थित महानुभाव आश्रम पहुंचेगी. जहां पर इस शोभायात्रा का समापन होगा. इसके उपरान्त 21 व 22 दिसंबर को आयोजित होने वाले कार्यक्रमों का आयोजन भानखेड स्थित महानुभाव आश्रम में किया जाएगा. जिसके तहत 21 नवंबर को सुबह 9 से 11 बजे तक संन्यास दीक्षा विधि का आयोजन होगा. जिसमें 5 से 7 महानुभावों द्वारा संन्यास की दीक्षा ली जाएगी. साथ ही दोपहर 3 से 5 बजे तक आयोजित धर्मसभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का व्याख्यान होगा. इस समय राज्य के नवनियुक्त मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री सहित जिले के सभी सांसद व विधायक भी उपस्थित रहेंगे. इसके पश्चात रात 9 बजे महंत कलमकर बाबा गाडे जलगांवकर का कीर्तन होगा. वहीं आयोजन के अंतिम दिन 22 दिसंबर को सुबह 9 बजे भानखेड स्थित महानुभाव आश्रम में ध्वजारोहण करने के साथ ही धार्मिक कार्यक्रमों की विधि प्रारंभ होगी. जिसके उपरान्त सुबह 10 बजे सरसंघचालक मोहन भागवत के हाथों दीप प्रज्वलन करते हुए सार्थ सप्त काव्य ग्रंथ का प्रकाशन एवं शतकपूर्ति समारोह की स्मरणिका का विमोचन किया जाएगा. साथ ही इस समय आयोजित धर्मसभा को सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा संबोधित भी किया जाएगा. इसके पश्चात पंचावतार उपहार व महाप्रसाद का आयोजन करते हुए इस तीन दिवसीय शतकपूर्ति समारोह का समापन होगा.
* 700 वर्षों से चली आ रही कारंजेकर परंपरा
महानुभाव आश्रम के तृतीय आचार्य कविश्वर व्यास यानि भास्कर भट बोरीकर को कारंजेकर परंपरा का मूल पुरुष कहा जाता है. जिनके प्रमुख शिष्यों में धाडी नागाइसा, परशुराम व्यास व रामेश्वर व्यास का समावेश था. इसमें से धाडी नागाइसा का वंश विस्तार ही कारंजेकर शाखा है. धाडी का अर्थ होता है भतीजी. कविश्वर व्यास की शिष्या होने के साथ ही नागाइसा उनकी भतीजी यानि धाडी भी थी. अत: उनकी पहचान धाडी नागाइसा के तौर पर रही. जिन्हें कविश्वर कुलाचार्य पद का सम्मान भी दिया गया. आगे चलकर उन्हें नांदेड में मुनीव्यास देशपांडे नामक शिष्य मिले और उनकी परंपरा को आगे चलकर उनके शिष्य यानि बिदर के बादशाह के दिवान रहने वाले कमलाकर ब्राह्मण (हाकीम) ने कायम रखा. कमलाकर ब्राह्मण मूल रुप से कारंजा के निवासी थे और संन्यास दीक्षा के बाद वे कमलाकर मुनी कारंजेकर के नाम से पहचाने गये. साथ ही उनसे ही ‘श्री कारंजेकर’ की नामना प्रचलित हुई और विगत 700 वर्षों से ‘श्री कारंजेकर’ की नामना प्रचलित चली आ रही है. जिसके तहत आज तक अनेकों मान्यवर आचार्य श्री कारंजेकर महानुभाव हुए है. जिन्होंने ज्ञान, भक्ति व वैराग्यपूर्ति करते हुए ईश्वर प्राप्त करने में परम साध्य पथ को प्रदर्शित किया.
* ऐसा रहा अमरावती में महानुभाव आश्रम का शतकीय इतिहास
700 वर्षों से चली आ रही प्रदीर्घ परंपरा के तहत करीब 100 वर्ष पूर्व कविश्वर कुलाचार्य श्री मुरलीधर कारंजेकर बाबा ने अपने साधूसंघ सहित अमरावती आकर यहां अपना आश्रम स्थापित किया था. उस समय अमरावती शहर में दादासाहब खापर्डे व पद्मनाप दंडे दो बडे प्रतिष्ठित नागरिक रहने के साथ ही आपस में रिश्तेदार भी थे. जिसमें से दंडे परिवार कई पीढियों से महानुभाव संप्रदाय के अनुग्रहित रहे और पद्मनाप वामन दंडे की माताजी श्रीमती राधाबाई दंडे ने ही श्री मुरलीधर कारंजेकर बाबा को चातुर्मास हेतु अमरावती में आमंत्रित किया था और अपने संतरा बाग में (मौजूदा दंडे प्लॉट के निकट) साधूसंघ के रुखने की व्यवस्था की थी. उसी स्थान पर सन 1924 में कविश्वर कुलाचार्य श्री मुरलीधर बाबा कारंजेकर ने अपना आश्रम स्थापित किया था. जिसे आज हम कंवर नगर परिसर में स्थापित महानुभाव आश्रम के तौर पर जानते है. मुरलीधर बाबा के उपरान्त कविश्वर कुलाचार्य श्री बालकृष्ण बाबा कारंजेकर ने गुरु परंपरा की विरासत को आगे बढाया और बालकृष्ण बाबा के उपरान्त उनके शिष्य गोविंदराज बाबा कविश्वर कुलाचार्य श्री कारंजेकर बाबा की गद्दी पर बैठे. विशेष उल्लेखनीय है कि, यह तीनों महंत पंजाबी भाषीक रहे. परंतु बालभिक्षु रहने के चलते उनका मराठी भाषा पर जबर्दस्त प्रभुत्व रहा और महानुभावों की ज्ञान भाषा मराठी रहने के चलते वह प्रत्येक महानुभाव को अवगत होना आवश्यक भी होता है. लोकमान्य तिलक के साथ चर्चा करने वाले आचार्य विद्धवांस बाबा के शिष्य मुरलीधर बाबा थे. यानि साहजिक तौर पर महानुभाव तत्वज्ञान व मराठी भाषा पर प्रभुत्व रहने के चलते ही महानुभाव संप्रदाय का नेतृत्व किया जा सकता है. आगे चलकर महानुभाव संप्रदाय के अध्ययन व अध्यापन केंद्र भी विकसित हुए और इस विद्यापीठ से शास्त्र परंगत होकर अनेकों आचार्य निर्मित हुए और यहां पर अनेकों साहित्यकारों को मार्गदर्शन भी मिला. इसी आश्रम के श्रीकृष्णदास महानुभाव ने महानुभाव मासिक व अमृतवाणी नामक नियतकालीकों की शुरुआत की. खास बात यह रही कि, अब तक तीनों महंत पंजाबी भाषिक व उत्तर भारतीय रहे. वहीं अब तीन पीढी पश्चात वर्तमान काल में श्री मोहनराज दादा जैसे मराठी महंत के पास कविश्वर कुलाचार्य श्री कारंजेकर बाबा की गादी सेवा आयी है और वे पूरी विनम्रता के साथ सेवारत रहते हुए इस विरासत को आगे लेकर बढ रहे है.
* कौन है मौजूदा कारंजेकर बाबा
अमरावती जिले के एसुर्णा निवासी पडोले परिवार में जन्मे मोहन दादा को बचपन में ही उनके परिजनों ने कंवर नगर परिसर स्थित महानुभाव आश्रम के सुपुर्द कर दिया था. जहां पर अपनी पढाई लिखाई करने के बाद मोहन दादा ने संन्यास दीक्षा ली और वे महानुभाव आश्रम में ही स्थायी हो गये. साथ ही आज वे अपने वकृत्व, कतृत्व व नेतृत्व जैसे गुणों के चलते वे कंवर नगर परिसर स्थित महानुभाव आश्रम में कारंजेकर गादी पर विराजमान हुए. पहले मोहन पडोले, फिर मोहनदादा अमृतें और अब कविश्वर कुलाचार्य मोहनराज बाबा कारंजेकर के तौर पर पहचान रखने वाले मौजूदा महंत मोहनराज बाबा के समाज के सभी घटकों व राजनेताओं के साथ प्रगाढ संबंध भी है और वे ज्ञान, भक्ति व वैराग्यपूर्ति के साथ ही धर्म जागरण के कार्य हेतु भी समर्पित है.