अमरावती

वन क्षेत्र की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार की पहल

कम्पाउंड से बंदिस्त किया जाएगा क्षेत्र, स्वतंत्र निधि होंगी उपलब्ध

अमरावती / दि. ७– शहरी क्षेत्र से सटकर वनक्षेत्र में अतिक्रमण और धार्मिक स्थलों की निर्मिती यह गंभीर समस्या निर्माण होने की पृष्ठभूमि पर केंद्र सरकार ने ऐसे वनक्षेत्रों की सुरक्षा के लिए पहल की है. शहर से सटे वनक्षेत्र की सीमा निश्चित कर उस क्षेत्र की सुरक्षा कम्पाउंड से बंदिस्त की जाएगी. इसके लिए केंद्र सरकार का वन व पर्यावरण मंत्रालय स्वतंत्र निधि उपलब्ध करेगा. वनक्षेत्र में अतिक्रमण करनेवाला गिरोह सक्रीय हो गया है. वनभूमि पर अतिक्रमण करना, उसे बेचने का काम कुछ स्थानों पर चल रहा है. इतनाही नहीं तो शहर से सटी वनक्षेत्र की जमीन हडपने के लिए बिल्डर्स लॉबी भी कार्यरत हुई है. प्रशासन से हाथ मिलाकर वनजमीन हडपने का काम किया जा रहा है. इसलिए शहर से सटे वनक्षेत्र रिकार्ड पर अलग ही दर्शाया जाता है. जबकि हकिकत में इस वनक्षेत्र पर अतिक्रमण, धार्मिक स्थलों का कब्जा है. लेकिन वन व पर्यावरण मंत्रालय ने १ दिसंबर २०२२ को राज्य सरकार को पत्र भेजकर शहर से सटे वनक्षेत्र की सुरक्षा के लिए उपाय योजना करने के निर्देश दिए है. शहर से सटकर वनभूमि कितनी है, इसका प्रारूप तैयार किया जाएगा. इसके बाद उपलब्ध वनक्षेत्र की संख्या के अनुसार इस वनभूमि पर जीपीएस प्रणाली की सहायता से तार का कम्पाउंड, सुरक्षा का दीवार अथवा सीमेंट पोल लगाकर वनक्षेत्र की निश्चिती की जाएगी.
* इन वनक्षेत्र में समस्या
नंदुरबार, ठाणे, नाशिक, अमरावती, यवतमाल, जलगांव, ध्ाुलिया, वर्धा, भंडारा, चंद्रपुर और नागपुर इन शहर से सटे वनक्षेत्र पर निवासी अतिक्रमण, धार्मिक स्थल निर्माणाधीन है.

रोपवन, गार्डन साकार करने का प्रस्ताव
राज्य में शहर से सटे वनक्षेत्र पर अतिक्रमण होने से करीब पांच हजार हेक्टेयर जमीन हडपने की जानकारी है. लेकिन शहर से सटकर वनक्षेत्र की सीमा तय करते हुए उस पर रोपवन, गार्डन अथवा कर्मचारी वसाहत साकार करने का प्रस्ताव है.

वरिष्ठ अधिकारियों ने अनदेखी
वनक्षेत्र में अतिक्रमण के लिए वन अधिकारी जिम्मेदार है. राज्य में कोई भी शहर हो वनभूमि पर अतिक्रमण के लिए संबंधित वनअधिकारी को ही जिम्मेदार माना जाता है. शहर से सटे वनक्षेत्र पर अतिक्रमण अथवा धार्मिक स्थलों की निर्मिती होने पर उसे तत्कार हटाया नहीं जाता. जिसके कारण अतिक्रमण करनेवालों के हौसलें बुलंद होते है. इसलिए वनक्षेत्र में अतिक्रमण, धर्मिक स्थल आज भी कायम है. वरिष्ठ वन अधिकारी तीन वर्ष के लिए कर्तव्य निभाने आते है. किंतु किसी भी अधिकारी ने वनक्षेत्र के अतिक्रमण की समस्या हल नहीं की.

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