‘चकाचका चांदणी वो गोवारीयो बिनो’……..
विदर्भ में पांच हजार गांवों में ढाल पूजन उत्सव की परंपरा
* दिवाली के पर्व पर पाडवा को मनाया जाएगा उत्सव
* पूर्व विदर्भ में तैयारियां आरंभ
अमरावती/29-विदर्भ के पांच हजार गांवों में ढाल पूजन उत्सव मनाने की परंपरा आज भी कायम है. ‘चकाचका चांदणी वो गोवारीयो बिनो, गायनेसे कोटा भरे, घरघर देबो आशीष गा’… ऐसे दादरा की गूंज में व गोहला-गोहली का नृत्य करने के लिए विदर्भ के पांच हजार गांव ढाल पूजन के लिए तैयार हुए है. दिवाली में आने वाले पाडवा को ढाल पूजन उत्सव पारंपरिक पद्धति से मनाया जाएगा. पूर्व विदर्भ के गांव में रात के समय पूर्व तैयारी और प्रैक्टिस के लिए पूरी रात जागकर रंगीत तालीम की जाती है.
आदिवासी गोवारी समाज के लिए दिवाली का पाडवा खास होता है. इस बार पांच हजार गांवों में ढाल पूजन उत्सव मनाया जाएगा. गांव के पशुओं के चराई के लिए ले जाना, यह मुख्य व्यवसाय गोवारी जनजाति का है. दिवाली का पाडवा साल का सबसे बडा दिन इस जनजाति के लिए होता है. गांव के गोवारी समाज के लोग एकत्रित होकर त्योहार मनाते है.
* गोवारी नृत्य की ऐसी होती है शुरुआत
पाडवा के दिन आतिषबाजी के साथ सभी पशुओं को गांव में घुमाया जाता है. इसके पूर्व दो बांसे पर कपडा बांध कर पुरुष ढाल यानी गोहला, तो महिला ढाल यानी गोहली तैयार कर स्थापित की जाती है. दोपहर को सर्वप्रथम सुतार के घर पानी पिने के लिए ढाली को ले जाया जाता है. इसके बाद आदिवासी गोवारी नृत्य शुरु होता है. उत्सव में हर ग्रामवासी सहभागी होता है.
* अर्जुन के सारथी के रूप में गोवारी की पहचान
आज गोवारी समाज की तीन पीढियां न्याय अधिकार की लडाई के लिए संघर्ष कर रही है. आर्थिक स्थिति खराब है, परंतु महाभारत में अर्जुन के सारथी रहने वाले श्रीकृष्ण के मित्र व गोपालन करनेवाला के रूप में गोवारी समाज की पहचान है. आज के विज्ञान के युग में गोवारी समाज की युवा पीढी ढाल पूजन की परंपरा का निर्वहन कर रही है.