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चंद्रयान वैज्ञानिकों की धर्म आस्था सराहनीय

युवा कथाकार नरेशभाई राज्यगुुरु का प्रतिपादन

* अमरावती मंडल से विशेष बातचीत
अमरावती/दि.26-युवा भागवताचार्य नरेशभाई राज्यगुरु ने कहा कि हमारे चंद्रयान के वैज्ञानिकों द्वारा यान को चंद्रमा पर प्रस्थान करने से पूर्व की गई तिरुपति बालाजी और अन्य मंदिरों की दर्शन यात्रा सराहनीय है. इसकी आलोचना करने वालों को वे यहीं कहना चाहते हैं कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के अभिन्न है. आचरण भी धर्म की पंक्ति में आता है. अध्यात्म, धर्म के बगैर विज्ञान सृजन की बजाय विध्वंस की ओर भी ले जा सकता है.
युवा कथाकार आज दोपहर अमरावती मंडल से विशेष भेंट वार्ता में बोल रहे थे. यह मुलाकात शहर के प्रसिद्ध कारोबारी दिनेशभाई सेठिया के एकनाथपुरम स्थित निवास ‘शिवालय’ में हुई. इस समय श्री नरेशभाई के बड़े भ्राता हरिगुण गायक हरेशभाई राज्यगुरु, दिनेशभाई, मयूरीबेन सेठिया, गौरव सेठिया, हर्षिता सेठिया भी उपस्थित थे. बता दें कि नरेशभाई राज्यगुरु अमरावती में श्री लोहाणा विदर्भ महिला विभाग, अमरावती लोहाणा महिला मंडल द्वारा महेश भवन में अधिक श्रावण मास उपलक्ष्य आयोजित श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ पारायण हेतु पधारे हैं. उनकी कथा का आज से ही मंगलारंभ हो रहा है. यह नरेशभाई की 210 वीं कथा है.
* कथाकार के लिए भी कथा महत्वपूर्ण
नरेशभाई ने कहा कि अनेकानेक कथा आयोजनों को लेकर वे कहना चाहते हैं कि व्यासपीठ के लिए भी कथा आयोजन महत्वपूर्ण है. क्योंकि वह समाज का मुखिया होता है. किसी भी समुदाय का मंच हो, उसे टॉवर क्लॉक की तरह सदैव चलते रहना पड़ेगा, तभी समाज और देश सही मार्ग पर चलेगा. उन्होंने बहुतेरे आयोजनों की आवश्यकता बताई.
* समभाव से पहले सद्भाव पर रहें बल
गुजरात के प्रसिद्ध तीर्थ द्वारिका के पास जामसंबालिया में विश्वनाथ वेद पाठशाला का गत सात वर्षों से राज्यगुरु परिवार संचालन कर रहा है. नरेशभाई ने कहा कि आज के वातावरण में समभाव की बजाय सदभाव की प्रवृत्ति बढ़नी चाहिए. उन्होंने कहा कि सदभाव एक कदम आगे की वृत्ति है, उसी प्रकार धर्म प्रेमी सतोगुणी का मन विचलित नहीं होता. अपने इष्ट का नित्य चिंतन करने से सत्व गुण में वृद्धि होती है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि बहुत अधिक पूजा-पाठ न करते हुए भी हम धर्म का आचरण सहजता से कर सकते हैं.
* राम राज्य यानि स्वीकार

युवा कथाकार ने राम राज्य की परिभाषा बतलाई कि स्वीकार की वृत्ति बढ़े, वह रामराज्य होगा. जहां तक कथाओं के सतत आयोजनों के बावजूद समाज में बढ़ती दुष्प्रवृत्तियों और अघटित घटनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि पाप है तो पुण्य है. दिन है तो रात है. त्रेता में राम हुए तो रावण भी तो थे. द्वापर में कृष्ण हुए तो कंस भी थे ही. ऐसे ही सुख-दुख, पाप-पुण्य का संतुलन रखना ही कदाचित आवश्यक है. उन्होंने कहा कि जगत का दूसरा नाम ही द्वंद है. अभी कनिकाल का प्रथम चरण चल रहा है. चौथे चरण में भगवान अवतरित होंगे. अधर्म का विनाश करेंगे. उन्होंने समाज माध्यम के इस दौर में धर्म की आलोचना, निंदा करने वालों को यथा समय उत्तर देने का आवाहन भी किया.

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