अमरावती

चांदुर बाजार नप व्दारा एसबीआई के पास की 84 दुकानों को दिया जा रहा अभयदान

नियमित टैक्स अदा करनेवाले पर दबाव

* 16 वर्षो में 1 करोड से अधिक किराया और संपत्ति कर डूबने का अनुमान
चांदुर बाजार/दि.27– शहर की नगर परिषद की दुकानें और खुली जगह का इस्तेमाल करनेवाले दुकानदारों से नप प्रशासन दिसंबर माह से किराया और संपत्ति कर वसूल करता है. नियमित किराया और संपत्ति कर का भुगतान करने के बावजूद चालू माह का किराया बकाया रहने पर संबंधितों पर कार्रवाई की जाती है. हाल ही में इसी वजह से तीन दुकानों को सिल किया गया. लेकिन एसबीआई के सामने की 84 दुकानों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इस कारण व्यवसायियों में चर्चा हो रही है कि इन दुकानदारों को अभयदान क्यों दिया जा रहा है.
जानकारी के मुताबिक चांदुर बाजार नगर परिषद प्रशासन ने इन दुकानों की लीज 16 वर्षो से रद्द कर दी है. लेकिन लीज रद्द करने के बावजूद यह दुकानें संबंधित दुकानदार चला रहे है और लाखों रुपए कमा रहे है. साथ ही उसकी परस्पर बिक्री भी की जा रही है. पिछले 16 वर्षो से पालिका का 1 करोड से अधिक किराया और संपत्ति कर डूबने का अनुमान है. इसके बावजूद प्रशासक और पालिका प्रशासन चुप बैठा है. नियमित भुगतान करने वाले प्रशासन के इस रवैये से तीव्र असंतोष व्याप्त है. शहर में नप की 195 दुकानें और 275 खुली जगह है. इसमें उन विवादित 84 दुकानों का समावेश नहीं है. इन 195 दुकानों और 275 खुली जगहों पर बकाया राशि 1 करोड 53 लाख 91 हजार 673 रुपए और कर विभाग की बकाया राशि 1 करोड 25 लाख 72 हजार 612 रुपए है. जनवरी के पहले सप्ताह तक इसमें से 15 प्रतिशत वसूली हुई है. लेकिन उन 84 दुकानों का इसमें सीधा उल्लेख भी नहीं किया गया है.

* 20वर्ष पूर्व मिले थे 52 लाख
वर्ष 2003 में सरकार ने सडक, मार्केट और कल्याण मंडपम के निर्माण के लिए 52 लाख रुपए नप को दिए थे. उस निधि से 84 दुकानों की जगह पर मार्केट बनाने का प्रस्ताव रखा गया था. इसका संबंधित दुकानदारों ने विरोध किया. इस कारण मार्केट का प्रस्ताव छोडकर उस निधि से शहर के कांक्रीट रोड का काम किया गया. इसके अलावा कल्याण मंडपम की निधि अन्य विकास कार्यो में खर्च की गई.

* 16 वर्षो में करोडों का राजस्व डूबा
पिछले 16 वर्षो से विवादित अतिक्रमित जगह पर 84 दुकानदार व्यवसाय कर रहे है. अन्य दुकानदारों के किराए में प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत बढोतरी कर किराया और टैक्स वसूल किया जाता है. बकाया रहने पर सालाना 24 प्रतिशत ब्याज वसूला जाता है. इसी अनुपात में इन 84 दुकानों का किराया, प्रॉपर्टी टैक्स और ब्याज की रकम के हिसाब से करोडों रुपए का राजस्व डूबा है. इसके लिए जिम्मेदार कौन? ऐसा सवाल भी नागरिक उपस्थित कर रहे है.

 

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