स्त्री मुक्ति के लिए प्रतिकार का परिवर्तक आकलन आवश्यक
चर्चासत्र में प्रा. देवेंद्र इंगले का प्रतिपादन
अमरावती/दि.29– सामाजिक संबंध, सामाजिक संस्था व विचारधारा तथा विचारव्युह में एक अनुबंध रहता है. स्त्रीदास्य संदर्भ में ब्राह्मणी पितृसत्ता का विचारव्युह इस दृष्टि से समझना जरुरी है. भारत में स्त्री मुक्ति की दिशा में जरुरी ज्ञान निर्मिति की दृष्टि से डॉ. उमेश बगाडे ने अपने पुस्तक में लिखान किया है. भारतीय स्त्रीदास्य की अनन्यता ध्यान में रखकर उसके खिलाफ प्रतिकार का परिवर्तक आकलन उमेश बगाडे ने किया है. यह लिखान केवल ज्ञान निर्मिति तक सिमित नहीं है. स्त्रीदास्य मुक्ति का उद्देश्य उसके पीछे है. ऐसा प्रतिपादन अभ्यासक प्रा. देवेंद्र इंगले ने किया. डॉ. उमेश बगाडे लिखित पुस्तक पर आयोजित चर्चासत्र में वह बोल रहे थे.
अक्षरगाथा नांदेड व तक्षशिला महाविद्यालय अमरावती के संयुक्त तत्वावधान में महाविद्यालय के सभागार में डॉ. उमेश बगाडे लिखित ब्राह्मणी पितृ सत्तेचा विचारव्युह इस पुस्तक पर चर्चात्मक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. दादासाहेब गवई चैरिटेबल ट्रस्ट के सचिव पी.आर.एस. राव की अध्यक्षता में आयोजित इस चर्चासत्र में लेखक डॉ. उमेश बगाडे, मुंबई विद्यापीठ के मराठी विभाग प्रमुख डॉ. वंदना महाजन, महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मल्लु पडवाल, अक्षरगाथा के संपादक डॉ. जाधव आदि प्रमुख रुप से उपस्थित थे.
* ताराबाई शिंदे के विचारों से प्रभावित- डॉ. बगाडे
डॉ. उमेश बगाडे ने कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि, ताराबाई शिंदे द्बारा लिखित स्त्री-पुरुष तुलना यह किताब उन्हें प्रभावित कर गई. ताराबाई शिंदे की अंतरदृष्टि के आधार पर महिलाओं के समस्याओं पर प्रकाश डालने का विचार मन में आया. उस अनुसार प्राचिन से आधुनिक काल की घटनाओं को जोडकर उसे प्रस्तुत करने का प्रयास किताब से किया गया है. किताब मेें शामिल तीनों लेख विभिन्न निमित्त से लिखे गये है, लेकिन उनमें एकसूत्रता रखने का प्रयास किया गया है. ब्राह्मणी यह संकल्पना जातिवाचक नहीं, तो भारतीय समाज के पितृ सत्ताक समर्थक प्रवृत्ति का दर्शन है. ऐसी प्रवृत्तियां किसी भी जाती में हो सकती है. यह प्रवृत्तियां समता आधारित समाजरचना के लिए घातक है. उसका खात्मा करने के उद्देश्य से किताब में लेखन किया गया है.