नागपुर /दि.3– किसी महिला का पीछा करते हुए उसके साथ गालीगलौज व धक्कामुक्की करना उस महिला के लिए चिढने वाली बात तो हो सकती है, लेकिन इसे किसी महिला का विनयभंग नहीं जहा जा सकता. इस आशय का विचार व्यक्त करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने विनयभंग मामले के आरोपी को राहत देते हुए उसे बाइज्जत बरी कर दिया.
वर्धा स्थित प्रथम श्रेणी न्यायदंडाधिकारी ने 7 वर्ष पहले एक व्यक्ति को विनयभंग के मामले में दोषी ठहराते हुए उसे सजा सुनाई थी. यह 36 वर्षीय पुरुष पेशे से मजदूर है तथा वर्धा का निवासी है. जिस पर एक महाविद्यालयीन युवती का विनयभंग करने का आरोप था. पीडित युवती ने शिकायत दर्ज कराई थी कि, जब वह बाजार से जा रही थी, तो आरोपी ने साइकिल से उसका पीछा किया और उसे साइकिल से धक्का मारकर उसके साथ गालीगलौज की थी. इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ विनयभंग का मामला दर्ज करते हुए प्रथम श्रेणी न्यायदंडाधिकारी की अदालत में चार्जशीट पेश की थी तथा प्रथम श्रेणी न्यायदंडाधिकारी ने आरोपी को दोषी करार देते हुए उसे सजा सुनाई थी. जिसे आगे चलकर सत्र न्यायालय ने भी कायम रखा था.
अपनी इस सजा को आरोपी द्वारा मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में चुनौती दी गई थी. जिस पर न्या. अनिल पानसरे के समक्ष सुनवाई हुई और न्या. पानसरे ने कहा कि, इस मामले में निश्चित तौर पर याचिकाकर्ता द्वारा युवती के मन में लज्जा पैदा होने लायक कृति की है. ऐसा नहीं कहा जा सकता. साथ ही याचिकाकर्ता द्वारा उक्त युवती को अयोग्य तरीके से स्पर्श करने अथवा उसके शरीर के विशिष्ट अंगों को धक्का देने की बात भी साबित नहीं हुई है. युवती ने अपनी शिकायत में साफ तौर पर यह नहीं बताया कि, उसके शरीर के किस हिस्से से याचिकाकर्ता का स्पर्श अथवा संपर्क हुआ, बल्कि शिकायत मेें केवल इतना ही कहा गया कि, साइकिल से आये याचिकाकर्ता ने उसे धकेल दिया. जिसके चलते भले ही इस कृत्य से कुछ हद तक चिढ पैदा हो सकती है, लेकिन इस कृत्य के चलते उक्त युवती का विनयभंग ही हुआ, ऐसा नहीं कहा जा सकता.
इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का भी हवाला दिया. जिसके मुताबिक विनयभंग के मामले की पडताल करते समय कृत्य को ध्यान में रखना बेहद जरुरी है. किसी महिला की लज्जा अथवा शिलता को धक्का पहुंचाने वाले कृत्य को ही विनयभंग के अंतिम मानक के तौर पर ग्राह्य माना जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय के उक्त मत के अनुसार संबंधित मामले मेें पुरुष द्वारा किये गये कृत्य को विनयभंग वाली कृति नहीं कहा जा सकता, ऐसा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है.
* हाईकोर्ट का निरीक्षण
पीछा करना व गालीगलौज करना तकलीफदेह साबित हो सकता है. परंतु इससे किसी महिला के शील को हानि पहुंची, ऐसा नहीं कहा जा सकता.
– याचिकाकर्ता द्वारा प्रतिवादी युवती को अयोग्य तरीके से स्पर्श किये जाने की बात साबित नहीं हुई.
– याचिकाकर्ता पुरुष द्वारा अपने शरीर के किसी विशिष्ट हिस्से पर धक्का दिये जाने की वजह से खुद के लज्जास्पद स्थिति में आने के बाद पीडित युवती द्वारा अपनी शिकायत में नहीं कही गई.
– पीडित युवती के शरीर को याचिककर्ता की वजह से धक्का लगा, यह बात भी साफ तौर पर साबित नहीं हो पायी.