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भाजपा की राजनीति में कितने ‘फिट’ हो पायेंगे चेतन पवार

कांग्रेस, राकांपा व बसपा से होते हुए अब पवार ने ढूंढा है नया ठिकाना

* राजनीतिक विश्लेषण
अमरावती/दि.30- मनपा की राजनीति में विगत 20 वर्षों से सक्रिय रहनेवाले पूर्व पार्षद चेतन पवार ने अब बसपा छोडकर भाजपा में प्रवेश कर लिया है और यहां से भाजपा शहर उपाध्यक्ष के तौर पर उनकी नई पारी शुरू हो रही है. लेकिन यह पारी कितनी लंबी और कितनी सफल रहेगी, यह फिलहाल अनिश्चित है. ऐसे में इसे लेकर कुछ कहना जल्दबाजी होगा.
उल्लेखनीय है कि, गत रोज भाजपा में प्रवेश करते समय चेतन पवार ने खुद पर बचपन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों का प्रभाव रहने की बात कही और खुद को वर्ष 1992 से भाजपा के साथ जुडा हुआ बताया. लेकिन हकीकत यह है कि, चेतन पवार ने विलास इंगोले की उंगली पकडकर किसी समय राजनीति में प्रवेश किया था और यदि उनके 20 वर्ष के राजनीतिक सफर को देखा जाये, तो चेतन पवार कभी किसी एक राजनीतिक दल या राजनेता के प्रति समर्पित अथवा एकनिष्ठ होकर नहीं रहे, बल्कि बदलते वक्त में अपने लिए सुविधाजनक मौके खोजकर वे अपनी राजनीतिक भूमिका को बदलते रहे. पूर्व महापौर विलास इंगोले की उंगली पकडकर कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करनेवाले चेतन पवार ने आगे चलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस में प्रवेश किया और किसी समय उन्हें राकांपा नेता संजय खोडके का कट्टर समर्थक माना जाता था. साथ ही संजय खोडके ने ही उन्हें मनपा चुनाव में राकांपा का टिकट दिलाने के साथ ही स्थायी समिती सभापति व उपमहापौर जैसे पदों पर मौका दिया. लेकिन जैसे ही राजनीति में संजय खोडके का बुरा दौर शुरू हुआ, वैसे ही चेतन पवार ने खोडके का साथ छोड दिया और वे बसपा में चले गये. बसपा की टिकट पर मनपा का चुनाव जीतने के बाद चेतन पवार मनपा में बसपा के गुट नेता भी रहे. साथ ही बसपा ने उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण व प्रमुख पद भी दिया. लेकिन अब बदली हुई राजनीतिक स्थितियों को देखते हुए चेतन पवार ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक भूमिका को बदल दिया और अब वे बसपा को ‘जय भीम’ कहते हुए ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाकर भारतीय जनता पार्टी में आ गये है और भाजपा ने भी उनका पार्टी प्रवेश होते ही उन्हें शहर उपाध्यक्ष भी बना दिया है. इस तरह से बसपा में प्रदेश उपाध्यक्ष रहनेवाले चेतन पवार भाजपा में शहर उपाध्यक्ष बनकर खुश भी दिखाई दे रहे है.
लेकिन यहां पर इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि, अन्य राजनीतिक दलों व भाजपा में संगठनात्मक रूप से कामकाज के तरीके में काफी फर्क होता है. भाजपा में व्यक्ति नहीं, बल्कि पार्टी के विचार और संगठन की नीतियां ज्यादा महत्वपूर्ण होते है. परंतु जहां तक चेतन पवार का सवाल है, तो वे हमेशा अपने आप को केंद्रबिंदू में रखकर और खुद को महत्वपूर्ण मानकर ‘एकला चलो’ की नीति पर अब तक काम करते आये है. साथ ही वे अब तक जिन-जिन राजनीतिक दलों में रहे है, वहां उन्होंने अपने हिसाब से काम करने का काफी हद तक प्रयास किया. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि, चेतन पवार खुद भाजपा के हिसाब से चलते है, या फिर विचारों को महत्वपूर्ण माननेवाली भाजपा की शहर इकाई को अपने हिसाब से चलाने का प्रयास करते है. सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि, खुद भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं द्वारा इस बात को लेकर आश्चर्य जताया जा रहा है कि, अब तक एक अलग ही तरह के ‘स्वैग’ को लेकर चलनेवाले चेतन पवार ने आखिर भाजपा का दामन कैसे थाम लिया और पार्टी ने भी इतनी आसानी से चेतन पवार को पार्टी में प्रवेश देते हुए उन्हें सीधे शहर उपाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति कैसे दे दी. इस समय इस बात को लोकर भी कानाफूसी हो रही है कि, कहीं चेतन पवार को भाजपा द्वारा मौखिक रूप से अगले चुनाव पश्चात महापौर पद के संदर्भ में कोई वादा तो नहीं किया गया. जिसके चलते विगत लंबे समय से अमरावती शहर का प्रथम नागरिक बनने के इच्छुक चेतन पवार ने भाजपा का दामन थामा. हकीकत क्या है, यह आनेवाले दिनों में बहुत जल्द स्पष्ट हो ही जायेगी. लेकिन इसके बावजूद भी मुख्य सवाल अपनी जगह पर बना रहेगा कि, आखिर चेतन पवार अपने आप को भाजपा के विचारों व सिध्दांतों के बीच किस तरह समायोजीत कर पायेेंगे और उनके अब तक के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए पार्टी भी उन पर किस हद तक भरोसा रखते हुए अपने अगले दांव खेलेगी.

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