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पिंगलाई गढ पर लगा वस्त्रसंहिता का बोर्ड

अंबादेवी में कल से, एकवीरादेवी में नहीं

* अमरावती में भी मंदिरों में डे्रसकोड!
अमरावती/दि.31- जिले के प्रमुख देवालय अंबादेवी, बालाजी मंदिर, काली माता, पिंगलाई गढ, अचलपुर देवली के लक्ष्मीनारायण देवस्थान, दर्यापुर का आशा मनीषा देवी, परतवाडा का शैतुतबाग हनुमान मंदिर सहित आठ प्रमुख देवस्थानों में दर्शनार्थियों के लिए डे्रसकोड लागू करने की घोषणा पश्चात नेर पिंगलाई गढ पर देवी के मंदिर परिसर में वस्त्रसंहिता का बोर्ड लग गया और आज से ही यहां भाविकों को पहन-ओढकर दर्शन की अनुमति दी जारही है. उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के संयोजक सुनील घनवट, अंबादेवी संस्थान के प्रतिनिधि एड. राजेंद्र पांडे, काली माता के शाक्ति महाराज बालाजी मंदिर से राजेश हेडा, संतोषी माता मंदिर के जयेश भाई राजा, नेरपिंगलाई के अध्यक्ष विनित पाखोडे, देवस्थान सेवा समिति के अनूप जायस्वाल, दुर्गामाता मंदिर वैष्णवधाम के नंदकिशोर दुबे, हिंदू जनजागृति समिति के विदर्भ संयोजक श्रीकांत पिसोलकर, जिला संयोजक नीलेश टवलारे आदि ने 8 मंदिरों में वस्त्रसंहिता की घोषणा की थी. ऐसे ही शीघ्र दो दर्जन से अधिक देवालयों में ड्रेस कोड रहने की भी घोषणा की थी. बहरहाल अंबादेवी संस्थान में आज दोपहर तक ऐसी घोषणा नहीं हुई थी. कल 1 तारीख से वहां वस्त्रसंहिता लागू होने की संभावना है. उसी प्रकार आज दोपहर तक एकवीरा देवी संस्थान ने ऐसी किसी घोषणा से अपने आपको अलग रखा था.
* वस्त्र संहिता होगी लागू
सुनील घनवट ने तर्क दिया कि देश के अनेक मंदिरों, गुरुव्दारा, चर्च, मस्जिद और अन्य प्रार्थनास्थल, शाला, निजी प्रतिष्ठान, न्यायालय, पुलिस आदि क्षेत्र में वस्त्र संहिता लागू है. इसलिए मंदिरों में भी वस्त्र संहिता लागू करने का निर्णय किया गया है. उन्होंने कहा कि, अमरावती के उपरोक्त मंदिरों से इस विषय में चर्चा हो गई है. मंदिरों में ओढनी और अन्य वस्त्र रखे जाएंगे ताकि दर्शनार्थी को दर्शन हेतु उपलब्ध कराए जा सके. सात्विक वस्त्र संहिता लागू की जा रही है. जिन्स पेंट, टी-शर्ट, भडकिले रंगों के अथवा नक्शी काम के वस्त्र और स्लीपर के उपयोग पर पहले ही सरकार अपने अधिकारी व कर्मचारियों पर बैन लगा चुकी है. ऐसे में पूरे विदर्भ के मंदिरों में भी ऐसी वस्त्र संहिता लागू करने का प्रयत्न है.
भाविकों ने किया स्वागत
इस बारे में अमरावती मंडल ने श्रध्दालुओं की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो कहा गया कि ड्रेस कोड रहने में हर्ज नहीं है. वहीं कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया. इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विरूध्द बतलाया. कुछ ने कहा कि ड्रेस कोड की परंपरा विदेश से आयी है. जहां अंतिम यात्रा और कुछ प्रकार के खास समारोहों में खास वस्त्र परिधान कर जाना पडता है.

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