अमरावती

किराणा दुकान में धडल्ले से बिक रही सर्दी-खांसी की दवाईयां

ग्रामीण क्षेत्रों में होती है खुलेआम बिक्री

* अनधिकृत विक्री पर औषध प्रशासन का ध्यान नहीं
अमरावती/दि.3 – अमूमन किसी भी तरह की दवाई व औषधयुक्त गोली की विक्री मेडिकल स्टोअर से ही की जानी चाहिए. लेकिन अमरावती शहर सहित जिले के ग्रामीण इलाकों मेें कई स्थानों पर सर्दी-खांसी व बुखार की गोलियां बडे धडल्ले के साथ किराणा दुकानों में भी बेची जाती है. जो कि पूरी तरह से नियमबाह्य है. लेकिन इसके बावजूद इस अनधिकृत विक्री की ओर औषधी प्रशासन विभाग का कोई ध्यान नहीं है.
उल्लेखनी है कि, कई बार लोगबाग बीमार पडने पर डॉक्टर के पास जाने की बजाय सीधे मेडिकल स्टोअर पर पहुंचकर अपने मन से या मेडिकल स्टोअर वाले की सलाह से दवाईयां-गोलियां खरीदते है और उनका सेवन करते है. अभी औषधी प्रशासन विभाग मनमाने तरीके और प्रिस्क्रीप्शन के बिना होने वाली दवा विक्री पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगा पाया है. वहीं अब किराणा दुकानों में भी सर्दी-खांसी व बुखार की दवाईयां व गोलियां बिकने का मामला सामने आया है.
उल्लेखनीय है कि, अमूमन मौसम में किसी भी तरह का बदलाव होने पर सिरदर्द, बदनदर्द, सर्दी-खांसी व हल्के बुखार के लक्षण दिखाई देते है. ऐसे समय किसी भी पेनक्विलर का सेवन करने के उपरान्त कुछ ही समय में दर्द व तकलीफ गायब हो जाते है. इसके लिए पैरासिटामॉल नामक गोली का सबसे अधिक प्रयोग होता है और इस गोली का नाम सभी की जुबान पर चढा हुआ है. अमूमन शहरी क्षेत्र में अथवा मेडिकल स्टोअर पर यह गोली एक रुपए में मिल जाती है. परंतु दूर-दराज के गांवों में पैरासिटामॉल की यहीं गोली 2 से 5 रुपए प्रति नग की दर पर बिकती है. इस जरिए किराणा दुकानदारों द्बारा दोगुना-तीनगुना फायदा कमाया जाता है.
* छोटे गांवों में नहीं होते मेडिकल स्टोअर
उल्लेखनीय है कि, ग्रामीण क्षेत्रों में मेडिकल स्टोअर की उपलब्धता व सुविधा काफी कम होती है. साथ ही छोटे-छोटे गांवों मेें तो मेडिकल स्टोअर होते ही नहीं ऐसे समय सर्दी-खांसी व बुखार के लिए पैरासिटामॉल की गोलियां किराणा दुकानों में बेची जाती है. हालांकि ऐसा करना सीधे सीधे नियमों का उल्लंघन होता है और ऐसी किराणा दुकानों के संचालकों पर दबाव की अनधिकृत विक्री के लिए कार्रवाई की जा सकती है. साथ ही साथ जिन मेडिकल स्टोअर धारकों द्बारा किराणा दुकानदारों को विक्री हेतु दवाईयां व गोलियां उपलब्ध कराई जाती है, उन मेडिकल स्टोअर के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है. परंतु जिले में अब कहीं पर भी ऐसी कार्रवाई होती दिखाई नहीं दे रही.
* दवाई का रिएक्शन होने पर जबाबदार कौन?
अमूमन एक आम धारणा के तहत छोटे बच्चों को आधी गोली व बडे व्यक्ति को पूरी गोली दवा के तौर पर दी जाती है. परंतु उक्त गोली कितने एमजी या कितनी पॉवर की है, यह बात किराणा दुकानदार नहीं बता सकता और आम व्यक्ति भी नहीं समझ सकता. ऐसे में यदि ज्यादा पॉवर या अधिक एमजी की गोली का सेवन करने से साइड इफेक्ट के तौर पर कोई दुष्परिणाम सामने आता है, तो इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए, यह अपने आप में सबसे बडा सवाल है.
* अपने मन से दवाई अथवा गोली लेना खतरनाक
डॉक्टर के सलाह के बिना किसी भी तरह की दवाई अथवा गोली लेना खतरनाक साबित हो सकता है. क्योंकि डॉक्टरों द्बारा बीमारी के तमाम लक्षणों एवं मरीज शारीरिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए दवाई का प्रिस्क्रीप्शन लिखा जाता है. वहीं दुसरी ओर कई लोग अपने मन से ही मेडिकल स्टोअर अथवा घर के पास ही स्थित किराणा दुकान से दवाई अथवा पेनक्विलर खरीदकर उसका सेवन करते है. अमूमन ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगबाग 5-10 रुपए की दवाई के लिए तहसील मुख्यालय वाले शहर जाने से कतराते है. साथ ही पैसा बचाने के लिए डॉक्टर के पास भी नहीं जाते. यहीं वजह है कि, ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों की जरुरत और स्वभाव को देखते हुए गांवों की किराणा दुकानों में धडल्ले के साथ दवाईयों की विक्री होती है.

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