विद्यापीठ में कुछ नहीं करने के लिए ‘समिती पे समिति’
अग्रिम रकम आहरण का मामला ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास
अमरावती/दि.1– संत गाडगे बाबा के नाम पर स्थापित अमरावती विद्यापीठ द्वारा कर्मयोगी संत गाडगे बाबा का नाम लेने के साथ ही उनकी प्रतिमा का भी हमेशा प्रयोग किया जाता है. साथ ही बाबा द्वारा बताई गई दशसूत्री को लेकर भी जमकर गाजा-बाजा किया जाता है. परंतु वहीं दूसरी ओर संत गाडगे बाबा के नाम पर स्थापित इस विद्यापीठ में कई ऐसे कारनामे भी होते रहते है. जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि, इन लोगों का संत गाडगे बाबा के निष्काम करने वाले सिद्धांत व विचार से कोई लेना-देना नहीं है. साथ ही जिन लोगों के हाथ में विद्यापीठ की पूर्ण सत्ता है, वे शायद विद्यापीठ को लूटने का काम करने वाले लोगों को नियंत्रण में रखने हेतु गाडगे बाबा के हाथ में रहने वाले लाठी के प्रयोग को जानबूझकर अनदेखा कर रहे है. ताकि हर कोई विद्यापीठ में चलने वाली लूट की गंगा में अपने हाथ धो सके. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि, संगाबा अमरावती विवि मेें यदि किसी को आशिये पर ढकेलना है, तो किसी भी मामले की जांच हेतु गठित समिति द्वारा प्रशासन के हिसाब से पूरे जोश के साथ काम किया जाता है. वहीं अगर किसी को हर हाल में बचाना है, तो फिर विद्यापीठ में कुछ नहीं करने के लिए ‘समिती पे समिती’ का खेल चलता है.
बता दें कि, संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ में 20 वर्ष पहले जब कम्प्यूटर नये-नये आये थे, तो संगणक प्रमुख द्वारा किया गया कम्प्यूटर घोटाला काफी जबर्दस्त चर्चित हुआ था. जिसके बाद संगणक केंद्र प्रमुख पद पर रहने वाले व्यक्ति का तत्काल तबादला कर दिया गया था. इसके पश्चात एक-एक महिना करते हुए कई साल गुजर गये, लेकिन संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. इससे उलट इस घोटाले में शामिल रहने वाले संदेहित व्यक्ति को तत्कालीन कुलगुरु द्वारा अश्चर्यजनक तरीके से पदोन्नति भी दी गई. इसी तरह 10 वर्ष पहले नैक मेें अनाप-शनाप खरीदी का मुद्दा भी डॉ. संतोष ठाकरे ने उठाया था. जिसे लेकर तमाम सबूत और साक्ष भी दिये गये थे. जिसके चलते हाईलेवल कमिटी की घोषणा हुई. आगे चलकर सिनेट की मुदत भी खत्म हो गई. लेकिन इस मामले में कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि जिन्होने सभी नियमों की अनेदखी करते हुए खरीदी की थी. उनकी हिम्मत और भी अधिक बढ गई. इसी तरह 25 वर्ष पहले एक कर्मचारी ने विधि स्नातक की परीक्षा में खुद ही अपने अंक बढा लिये थे. जिसकी शिकायत होने पर समिति गठित की गई और संबंधित कर्मचारी को हलकी-फुलती सजा दी गई. पश्चात वह कर्मचारी एक बार फिर विधि शाखा की परीक्षा देकर एलएलबी की पदवी प्राप्त कर गया. लेकिन उस पर कभी किसी ने कोई आवाज नहीं उठाई.
बता दें कि, डॉ. राजेश बुरंगे पर विद्यापीठ की सर्वसाधारण निधि से करोडों रुपयों का एडवॉन्स लेकर हिसाब पेश नहीं करने का आरोप है. पहले एडवॉन्स लो, फिर ऐश करों और काम हो जाने पर पैसे वापिस करों, इस तरह से यह पूरा व्यवहार चल रहा था. इस मुद्दे को लेकर अभी दो माह पहले भी सिनेट की सभा में जमकर हंगामा मचा था. जबकि उसी दौरान राजेश बुरंगे ने लेखा संहिता का भंग करते हुए बिना कोई निविदा निकाले मथुरा स्थित मे. भाग्योदय सन्स नामक कंपनी से करीब 2 वर्ष पहले लगभग 4 लाख 27 हजार रुपयों के डायरी, बैजेस व प्रमाणपत्र जैसे साहित्य खरीदे थे. जिसे लेकर खुद ऑडिट विभाग ने नियमों का हवाला दिया और तत्कालीन कुलगुरु ने इस व्यवहार को मान्य भी किया. वहीं अब आपूर्तिकर्ता द्वारा अपने बिल की अदायगी हेतु विद्यापीठ के पास तगादा लगाया जा रहा है, ऐसे में जवाबदारी तय करने हेतु परसों हुई मैनेजमेंट कमिटी की बैठक में इस मुद्दे को रखा गया और नियमबाह्य खरीदी करने वाला व्यक्ति ही जिम्मेदार रहने के बावजूद मामले की जांच के लिए फिर एक बार एक समिति गठित कर दी गई है.
ज्ञात रहे कि, हाल ही में रसायनशास्त्र विभाग प्रमुख डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर हुई कार्रवाई कोे उसका ताजा उदाहरण कहा जा सकता है. जब आनन-फानन में डॉ. राजेंद्र प्रसाद सहित उनके समर्थन में रहने वाली दो महिला प्राध्यापकों को विद्यापीठ प्रशासन द्वारा तुरंत ही विद्यापीठ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वहीं दूसरी ओर विद्यापीठ की साधारण निधि से करोडों रुपयों की लूट करने वाले रासेयो के पूर्व संचालक डॉ. राजेश बुरंगे का मामला कई बार सिनेट की सभा में गुंजने के बावजूद भी डॉ. बुरंगे को बचाने का हमेशा ही प्रयास किया जाता रहा. इसमें सिनेट के वरिष्ठ सदस्य ने तो डॉ. राजेश बुरंगे का पक्ष लेते हुए यहा तक कह दिया कि, हत्या का आरोप रहने वाले व्यक्ति को भी जमानत मिल जाती है, तो डॉ. राजेश बुरंगे को इसी नियम के तहत क्यों नहीं छोडा जा रहा.
* डॉ. राजेश बुरंगे के 31 में से 4 मामले ‘क्लीयर’
डॉ. राजेश बुरंगे के खिलाफ रहने वाले 31 मामलों में से 4 मामले विगत 6 माह के दौरान पूरी तरह से ‘क्लीयर’ हो गये है. इसके साथ ही अग्रिम के समायोजन हेतु कागजी घोडे नचाना भी शुरु है. साथ ही पता चला है कि, कई नस्तियों के टिपण गायब हो गये है. इसके बावजूद ऑडिट विभाग द्वारा की गई जांच को प्रशंसनीय कहा जा सकता है. वहीं अब इस ‘बनवा-बनवी’ को कानूनी परिमाण देने हेतु एक बार फिर समिति स्थापित की गई है.
* विद्यापीठ के जनरल फंड में सेंध
जानकारी के मुताबिक विगत 4 वर्षों के दौरान डॉ. राजेश बुरंगे ने विद्यापीठ के जनरल फंड से 15 लाख 41 हजार रुपए उठाये, जिसमें से केवल पौने दो लाख रुपयों के अग्रिम का ही शोधन हुआ है. वहीं शासन निधि एवं आपत्ति व्यवस्थापन निधि से डॉ. राजेश बुरंगे ने करीब 1 करोड 19 लाख रुपए का एडवॉन्स उठाया. जिसमें से केवल 1 लाख 75 हजार रुपयों के अग्रिम का ही शोधन हुआ है. इस तरह से विद्यापीठ के जनरल फंड सहित सरकारी निधि में जमकर सेंध लगाई गई. वहीं इसके बाद हिसाब प्रस्तुत करते समय किस तरह की लीपापोती की जाती है, यह बात मैनेजमेंट के सामने प्रस्तुत आंकडों के जरिए सामने आयी है.
* गडबडी खोजने हेतु समिति गठित
जानकारी के मुताबिक इस मामले की जांच अब डॉ. आर. डी. सिकची की अध्यक्षता वाली समिति करेगी. समिति मेें डॉ. रवींद्र कडू, डॉ. वी. एच. नागरे व डॉ. प्रवीण रघुवंशी का समावेश है. डॉ. राजेश बुरंगे द्वारा अग्रिम का समायोजन करते समय किस-किस स्तर पर गलतियां हुई, इसकी जांच इस समिति द्वारा की जाएगी, ऐसे में अब इस बात को लेकर उत्सुकता देखी जा रही है कि, क्या विद्यापीठ प्रशासन द्वारा इस समिति की रिपोर्ट को आधार मानकर कोई कार्रवाई की जाती है, या फिर एक बार फिर ‘समिती पे समिति’ की तर्ज पर इस समिति की रिपोर्ट के पश्चात फिर कोई नई समिति का गठन किया जाता है.