जिले में 400 करोड के मुआवजे, 3 हजार करोड की लागत से साकार हुआ समृद्धि एक्सप्रेस वे
तीन तहसीलों के 46 गांवों से होकर गुजर रहा रफ्तार वाला रास्ता
* 2,636 किसानों की 1,065 हेक्टेअर जमीन की गई अधिग्रहित
अमरावती/दि.14 – वर्ष 2016 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्बारा नागपुर से मुंबई के बीच समृद्धि एक्सप्रेस हाईवे बनाए जाने की घोषणा की गई थी. ताकि नागपुर से मुंबई के बीच यात्रा हेतु लगने वाले समय को कम करने के साथ ही इंधन की भी बचत की जा सके. 701 किमी की लंबाई वाले इस एक्सप्रेस वे का काम जनवरी 2019 में शुरु हुआ और अब हाल ही में इस एक्सप्रेस वे के नागपुर से शिर्डी के बीच पूरी तरह से बनकर तैयार हो चुके हिस्से को पीएम मोदी के हाथों देश के नाम लोकार्पित कर दिया गया. विशेष उल्लेखनीय है कि, स्पीडी व स्मूथ ट्रान्सपोर्ट व एक्सेस कंट्रोल को लेकर कडे मापदंड व मानकों का पालन करते हुए बनाया गया यह एक्सप्रेस वे अमरावती जिले की सीमा से होकर भी गुजर रहा है और चांदूर रेल्वे, धामणगांव रेल्वे व नांदगांव खंडेश्वर इन तीन तहसीलों के 46 गांवों से होकर गुजरने वाले इस एक्सप्रेस वे की अमरावती जिले में लंबाई 73.3 किमी है. ऐसे में इन तीनों तहसीलों के 46 गांवों में रहने वाले 2 हजार 636 किसानों से उनकी जमीनें अधिग्रहित की गई. जिन्हें करीब 400 करोड रुपए का मुआवजा प्रदान किया गया. जिसके बाद जिले में करीब 3 हजार करोड रुपए की लागत से इस एक्सप्रेस वे का काम पूरा हुआ.
इस संदर्भ में दैनिक अमरातवी मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए निवासी उपजिलाधीश विवेक घोडके ने बताया कि, आम महामार्गों की तुलना में एक्सप्रेस वे काफी हद तक अलग होता है. आम महामार्गों के साथ कहीं से भी जोड रास्तें जुडे होते है और मुख्य सडक पर आने-जाने को लेकर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रहता. परंतु एक्सप्रेस वे पर प्रवेश करने या एक्सप्रेस वे से बाहर निकलने हेतु कुछ निश्चित स्थान होते है, जिन्हेें इंटरचेंज प्वॉईंट कहा जाता है. अमरावती जिले में धामणगांव रेल्वे तहसील के आसेगांव सावला फाटे तथा नांदगांव खंडेश्वर तहसील के शिवणी रसुलापुर में कुल 2 इंटरचेंज प्वॉईंट बनाए गए है. इन्हीं दोनों स्थानों से अमरावती जिले में एक्सप्रेस वे पर जाया अथवा आया जा सकता है. इसके साथ ही एक्सप्रेस वे पर रास्तें के दोनों ओर कम्पाउंड वॉल की तरह सुरक्षा दीवार बनाई गई है. ताकि इस रास्ते से तेज रफ्तार के साथ गुजरने वाले वाहनों के सामने कोई भी जानवर या रास्ता पार करने वाला व्यक्ति न आ पाए. ऐसे में कहा जा सकता है कि, 700 किमी लंबे इस रास्ते के दोनों ओर 700 प्लस 700 ऐसे कुल 1400 किमी लंबी दीवार बनाई गई है. जो हकीकत में ग्रेट वॉल ऑफ चाईना से भी अधिक लंबी है.
* रफ्तार के साथ सतर्कता व सावधानी भी जरुरी
एक्सप्रेस हाईवे के प्रयोग को लेकर जानकारी देते हुए आरडीसी विवेक घोडके ने बताया कि, इस रास्ते पर डिझाइन स्पीड 150 किमी तय की गई है. यानि अधिकतम 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ एक्सप्रेस वे पर बडे आराम के साथ वाहन चलाया जा सकता है. साथ ही जहां पर रास्ता थोडा घुमावदार है, वहां रफ्तार 120 किमी प्रति घंटा रखने का नियम है. ऐसे में यह जरुरी है कि, एक्सप्रेस वे पर जो वाहन ले जाया जा रहा है, उसकी कंडिशन बिल्कूल फीट हो और उसके टायरों में हवा का प्रेशर भी सही हो, जरुरी यह भी है कि, वाहनों के टायर में सामान्य हवा की बजाय नॉयट्रोजन भरा जाए, ताकि तेज रफ्तार की वजह से टायरों का सडक पर होने वाले घर्षण के चलते टायर न फूटे. क्योंकि यदि ऐसा होता है, तो 150 किमी की रफ्तार के साथ गुजरने वाले उस वाहन के साथ-साथ पीछे से भी तेज रफ्तार से आ रहे अन्य वाहनों के साथ हादसा घटित होने की संभावना बन सकती है. ऐसे में एक्सप्रेस वे का प्रयोग करते समय वाहन चालकों में स्वअनुशासन का रहना भी बेहद जरुरी है. ताकि उनकी यात्रा सुखद व सुरक्षित रहे.
* जर्मन टेक्नॉलॉजी से किया एनसीसी कंपनी ने निर्माण
इस बातचीत में आरडीसी विवेक घोडके ने बताया कि, समृद्धि महामार्ग के पूरे काम को एमएसआरडीसी ने कुल 16 हिस्सों ने विभाजित किया था और हर हिस्से के लिए ग्लोबल टेंडरिंग प्रक्रिया चलाई थी. जिसके तहत पैकेज नं. 3 में शामिल अमरावती जिले के हिस्से वाले काम का ठेका हैदराबाद के एनसीसी कंपनी को दिया गया. किसी भी कंपनी को काम का ठेका देते समय यह देखा गया कि, कंपनी के पास काम करने का अनुभव और क्षमता कितनी है. साथ ही कंपनियों को वर्क ऑर्डर देते समय काम पूरा करने हेतु कुल 30 माह का समय दिया गया और काम में देरी होने पर सिक्युरिटी अमाउंट को जब्त करने के साथ ही हर दिन की देरी हेतु आर्थिक जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया था. जिसके चलते तय समय के भीतर काम पूरा करने हेतु हैदराबाद की एनसीसी कंपनी ने जगह-जगह पर जनरेटर के साथ ही पेट्रोल व डीजल की व्यवस्था करते हुए दिन-रात काम करना शुरु किया. इस काम में कम मैन पॉवर और ज्यादा मशीन पॉवर के सिद्धांत का पालन किया गया और एक्सप्रेस वे का निर्माण करने में जर्मन टेक्नॉलॉजी का प्रयोग किया गया. जिसके चलते अपने निर्धारित समय के आसपास करीब 1 वर्ष पूर्व ही अमरावती जिले के हिस्से में रहने वाला एक्सप्रेस वे पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया था और इस काम पर करीब 3 हजार करोड रुपयों का खर्च हुआ.
* चुनौतीपूर्ण था एक्सप्रेस वे के लिए जमीन हासिल करना
आरडीसी विवेक घोडके के मुताबिक जिस समय एक्सप्रेस वे का खाता तैयार किया गया, तब सबसे चुनौतीपूर्ण काम था इस महामार्ग के लिए किसानों से उनकी जमीनों को अधिग्रहित करना. क्योंकि यह एक्सप्रेस जिले के तीन तहसीलों में स्थित 46 गांवों से होकर गुजरने वाला था और इसके लिए 73.3 किलो मिटर लंबे इलाकों में एक से लगी हुई एक जमीन हासिल करनी थी. ऐसे में सभी भूमिधारकों को इसके लिए तैयार करना भी अपने आप में काफी चुनौतीपूर्ण था. खास बात यह थी कि, अमूमन किसी भी विकासकार्य के लिए सरकार द्बारा अनिवार्य तौर पर निजी जमीनों को अधिग्रहित कर लिया जाता है तथा भूमि मालिकों को सरकारी नियमानुसार उनकी जमीनों का मुआवजा दे दिया जाता है. लेकिन इस मामले में सरकार ने जबरन व अनिवार्य भूमि अधिग्रहण करने की बजाय किसानों से संवाद साधकर उन्हें इस विकास कार्य मेें भागिदार बनाने का निर्णय लिया था. जिसके तहत सबसे पहले लैंड पुलिंग मॉडल को सामने रखा गया. जिसके तहत किसानों को उनकी कृषि भूमि के बदले एनयूटी (मक्ता) तथा अकुशक जमीन पर विकसित प्लॉट देने की बात कहीं गई. इस प्रस्ताव के तहत आगे चलकर किसानों को काफी बडा फायदा हो सकता था. लेकिन विदर्भ क्षेत्र में अगले 7-8 माह तक लैंड पुलिंग मॉडल को किसी भी तरह का प्रतिसाद नहीं मिला. वैसे भी यह मॉडल एच्छीक तौर पर लागू किया जाना था. ऐसे में इसके नाकाम रहने पर एमएसआरडीसी ने जमीन की सीधी खरीदी करने का निर्णय लेते हुए ऐलान किया कि, जो लोग स्वयंस्फूर्त रुप से अपनी जमीन एमएसआरडीसी को बेचेंगे. उन्हें भूसंपादन के नियमों व दरों से 25 फीसद अधिक भूगतान दिया जाएगा. यह तरीका काम कर गया और करीब 86 फीसद भूधारकों ने स्वयंस्फूर्त रुप से आगे आकर अपनी जमीनों की खरीदी एमएसआरडीसी को दी. वहीं कुछ जमीनों को लेकर पारिवारिक व अदालती मामले चल रहे थे एवं कुछ भूधारक ज्यादा मुआवजा मिलने के चक्कर में अपनी जमीन अडाकर बैठे थे. ऐसी सभी जमीनों को आगे चलकर भूसंपादन अधिनियम के तहत एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहित कर दिया गया और उन्हें सरकारी नियमानुसार मुआवजा दिया गया.
* भूसंपादन के ज्यादातर मामले गांवस्तर पर ही निपटे
समृद्धि एक्सप्रेस वे के निर्माण को लेकर यादे ताजा करते हुए आरडीसी विवेक घोडके ने बताया कि, अमूमन किसी भी विकास कार्य हेतु जमीनों के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरु रहते समय संबंधित भूधारकों को अनेकों बार संबंधित तहसील कार्यालय अथवा जिलाधीश कार्यालय के चक्कर काटने पडते है. साथ ही विकास कार्य के समर्थन और विरोध को लेकर काफी हद तक दिक्कते पैदा होती है. इन तमाम बातों के मद्देनजर एमएसआरडीसी तथा जिला प्रशासन ने बेहद अनूठा रास्ता निकाला. जिसके तहत सभी संबंधित गांवों के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं व बीमा अभिकर्ताओं को गांववासियों से संवाद साधने हेतु तैयार किया गया. ऐसे करीब 60 लोगों को तमाम आवश्यक प्रशिक्षण दिए गए और उनके जरिए प्रशासन ने विभिन्न गांवों में रहने वाले भूधारकों तक अपनी बात पहुंचाते हुए उन्हें एक्सप्रेस वे के लिए अपनी जमीनें देने हेतु तैयार किया. साथ ही जमीन की ऐवज मेें उन्हें कितने रुपए का भूगतान प्राप्त होगा. इसका गणित भी समझाया गया. यह तरीका काफी हद तक कारगर रहा. जिसके बाद कई लोग अपनी जमीने देने हेतु तैयार हुए, तो उनसे सहमति पत्र लिखवाकर लिए गए और सेल डिड तैयार करते हुए तहसील कार्यालय में खरीदी व पंजीयन की प्रक्रिया हेतु तारीखे तय की गई. साथ ही तहसील कार्यालयों के पास स्थित होटल में भूधारकों के चाय-नाश्ते व भोजन का प्रबंध करने के साथ ही उन्हें गांव से तहसील कार्यालय तक लाने-ले जाने हेतु मीनी बसों की व्यवस्था भी की गई. खास बात यह रही कि, जिस दिन पहले से तय तारीख पर भूधारक तहसील कार्यालय आकर अपनी जमीन की खरीदी दिया करते थे, उसी दिन चेकर्स एण्ड मेकर्स प्रणाली के तहत उनके बैंक खाते में जमीन के भूगतान की रकम जमा हो जाती थी. जिसके चलते अन्य भूधारकों में भी इस सीधी खरीदी प्रक्रिया को लेकर विश्वास बढने लगा और फिर धीरे-धीरे इस प्रकल्प हेतु जितनी जमीन की जरुरत थी, उतनी जमीन अधिग्रहित कर ली गई. इस तरह से किसी को भी अपनी जमीन के मुआवजे या भुगतान संबंधित समस्या के लिए जिलाधीश कार्यालय तक नहीं आना पडा.
* केवल आवाजाही का ही नहीं, बल्कि विकास और समृद्धि का रास्ता
इस बातचीत में आरडीसी विवेक घोडके ने बताया कि, समृद्धि एक्सप्रेस वे के जरिए अमरावती जिले व संभाग में केवल तेज रफ्तार से गुजरने वाला रास्ता ही उपलब्ध नहीं हुआ है, बल्कि इस रास्ते की वजह से क्षेत्र के विकास को भी नई रफ्तार मिलने वाली है और बहोत जल्द इसके अनेकों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिणाम भी दिखाई देंगे.