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संक्रमण फैलने पर जवाबदारी किसकी?
अमरावती प्रतिनिधि/दि.२३ – जिले के माध्यमिक शिक्षा विभाग के अंतर्गत आनेवाली जिला परिषद सहित निजी व्यवस्थापन की ५१७ शालाएं है. जिन्हें सरकार की ओर से सोमवार २३ नवंबर से कक्षा ९ वीं से १२ वीं की कक्षाओं को शुरू करने की अनुमति दी गई है. इन शालाओं में करीब डेढ लाख छात्र-छात्राएं पढते है. qकतु उनकी कोरोना टेस्टिंग को लेकर कौनसे कदम उठाये जा रहे है, इसे लेकर संभ्रम दिखाई दे रहा है. साथ ही फिलहाल इस बारे में सरकार की ओर से कोई स्पष्ट दिशानिर्देश भी जारी नहीं किया गया है. ऐसे में फिलहाल यह सबसे बडा सवाल है कि, यदि विद्यार्थियों में कोरोना का संक्रमण फैलता है तो इसकी जवाबदेही किसकी होगी. ऐसे तमाम हालात की वजह से इन दिनों जिले के शिक्षा क्षेत्रों में काफी संभ्रमवाली स्थिति देखी जा रही है. बता दें कि, राज्य के शालेय शिक्षा विभाग द्वारा सोमवार २३ नवंबर से शालाओं को खोलने का निर्णय लिया गया था. पश्चात कोरोना संक्रमण की दुबारा बढती रफ्तार को देखते हुए सरकार ने इस संदर्भ में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार जिला प्रशासन को सौंपा. साथ ही प्रशासन ने इस बारे में शाला व्यवस्थापन समिती व पालक समिति को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार दे दिया, लेकिन कोरोना संकट की वजह से लॉकडाउन काल के दौरान करीब आठ माह तक बंद रहनेवाली शालाओं में साफ-सफाई व सैनिटाईजेशन करने सहित कोविड प्रतिबंध हेतु जारी किये गये उपाय योजनाओं पर होनेवाले खर्च को लेकर निजी शाला व्यवस्थापन व शिक्षा विभाग ने कुछ हद तक रस्साकशी चल रही है. इस पूरे हंगामे के दौरान सरकार ने शिक्षकों की सुरक्षितता के लिए उनकी नि:शुल्क कोविड टेस्ट करवाने की व्यवस्था की, लेकिन शिक्षा व्यवस्था के केंद्र qबदू में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक रहनेवाले विद्यार्थियों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. बता दें कि, जिले के माध्यमिक विभाग से संबंधित निजी व सरकारी शालाओं में १ लाख ४६ हजार विद्यार्थी है. जिनकी सुरक्षा के संदर्भ में फिलहाल सरकार द्वारा कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किया गया है. इससे यह साबित होता है कि, विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए शिक्षा विभाग किस हद तक लापरवाह है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, यदि किसी विद्यार्थी की वजह से यह संक्रमण अन्य विद्यार्थियों में फैलता है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार रहेगा.
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शिक्षा विभाग में केवल ‘लेटरबाजी‘
शालेय शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव वंदना कृष्णा ने एक परिपत्रक जारी कर कोरोना प्रतिबंधात्मक उपाय सुझाये. पश्चात जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय स्तर की हकीकत को ध्यान में रखते हुए उसमें नाविन्यपूर्ण संशोधन कर स्थिति को संभालने हेतु युध्दस्तर पर नियोजन किया जाना अपेक्षित था. qकतु जिला प्रशासन ने शाला खोलने का निर्णय व्यवस्थापन समिती की ओर ढकेलते हुए एक तरह से अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड लिया. राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया पत्र जिला स्तर से सीधे अधिनस्थ प्रशासन को भेज दिया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, इस समय शिक्षा विभाग में केवल लेटरबाजी ही चल रही है.
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क्रॉस वेरीफाय करने की व्यवस्था ही नहीं
निजी शाला व्यवस्थापन द्वारा अपने यहां पढनेवाले बच्चों के अभिभावकों से हर बात के लिए अनाप-शनाप शुल्क वसूले जाते है. कोरोना उपाययोजनाओं के नाम पर भी निजी शालाओं द्वारा अभिभावकों से भारीभरकम शुल्क वसूले जाने की पूरी संभावना है. qकतु सरकार द्वारा सुरक्षा मानकों को लेकर तय की गई सुविधाएं इन सभी निजी शालाओं में उपलब्ध करायी गयी है, अथवा नहीं, इसका क्रॉस वेरिफिकेशन करनेवाली कोई व्यवस्था शिक्षा विभाग द्वारा विकसित नहीं की गई है.
विद्यार्थियों की कोरोना टेस्ट करने के संदर्भ में अब तक कोई निर्देश नहीं आये है. हमसे केवल इतना ही कहा गया है कि, जो विद्यार्थी बीमार है, वे फिलहाल खुद ही शालाओें में न आये. हम भी इस बात की ओर ध्यान दे रहे है.