अमरावतीविदर्भ

नई राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति का पूर्ण रूप से विचार करे

म.रा. प्राथमिक शिक्षा समिति की ओर से जिलाधिकारी को निवेदन

अमरावती/दि. ७ – महाराष्ट्र राज्य शिक्षा समिति की ओर से नई शिक्षा नीति के विचार के संबंध में जिलाधिकारी द्वारा मुख्यमंत्री को निवेदन दिया है. जिसमें कहा गया है कि १९८६ के राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति के पश्चात लगभग ३६ वर्ष के बाद आनेवाले शैक्षणिक नीति खंडप्राय रहनेवाले भारत के लिए संवैधानिक मूल्य अधिक मजबूत करनेवाले सभी को अभिप्रेत है. इसके साथ ही सर्वसामान्य जरूरतमंदों, शोषित, किसान-खेत मजदूर, अल्पसंख्यांक ऐसे बहुविध घटको का गंभीरता से विचार कर सभी की सेवा के लिए सहज और प्रभावी शिक्षा देनेवाले होने चाहिए.

इस नीति ने डिजीटल शिक्षा का अनाकलनीय आग्रह किया हैे देश में हाल ही में २० प्रतिशत लोगों के पास स्मार्टफोन है. सामान्य जन शैक्षणिक प्रवाह से दूर जाने का भय इस नीति में दिखाई देता है. पदवी स्तर तक नि:शुल्क और कडी शिक्षा की जिम्मेदारी सरकार नहीं ले रही है. जिसके कारण बहुजन, अल्पसंख्यांक समाज के लडके, अच्छी शिक्षा के लिए मुकर जायेंगे. संविधान द्वारा स्वीकारे गये व १९८६ की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गंभीरता से घटक के रूप में विशेषता से उल्लेख किया है. जिसमें भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन का इतिहास,भारतीय संविधानात्मक जिम्मेदारिया,राष्ट्रीय अस्मिता सुरक्षा के लिए आवश्यक आशय, भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक वारसा, समानतावाद, धर्मनिरपेक्षता व लोकशाही, स्त्री पुरूष समानता, पर्यावरण की सुरक्षा, सामाजिक अंडसर के निर्मूलन, परिवार के प्रमाण का पालन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का परिपोष ऐसे जीवनलक्ष्यी मूल्य से विसंगत ऐसी यह नीति है. शिक्षा के बाजारीकरण को प्रोत्साहन देने के परिणामस्वरूप देशभर की शासकीय और स्थानीय स्वराज्य संस्था की अनेक शाला बंद करने का निर्णय है. आरंभ में कम पटसंख्या के नाम पर देशभर के १ लाख १९ हजार एक शिक्षकी शाला बंद होगी. शिक्षा सेवा, ठेकेदार शिक्षक ऐसी वेठबिकारी प्रणाली बंद करने के विषय में तथा सम्मानजनक वेतन और सभी को निवृत्तिवेतन, परिवार निवृत्तिवेतन संबंध में कोई भी भूमिका शिक्षको के संबंध में पध्दति में नहीं है.

आत्मनिर्भर भारत इस प्रकार का प्रचार एक ओर किया जाता है उसका विसंगत विदेशी विद्यापीठ को शिक्षा में निवेश करने के लिए व उनकी दुकाने खोलने के लिए खुली छूट दी है. इस प्रकार धनदांडग्या कॉर्पोरेट घराना को भी शिक्षा क्षेत्र में खुली छूट देने की नीति स्पष्ट दिख रही है. नई शैक्षणिक नीति मुठभर कॉर्पोरेट घटको के हित की है तथा कम मुआवजे में मंजूर कर उपलब्ध करनेवाली है.उसी प्रकार विद्यार्थियों को अर्धशिक्षित, अर्धकुशल, श्रमिक बनाकर अभिजनों को सुरक्षित करनेवाली है. अमीरों को अंग्रेजी में और गरीबों को मातृभाषा से सीखने को प्रोत्साहन देकर वर्गभेद निर्माण करनेवाली है.हम महाराष्ट्र राज्य प्राथमिक शिक्षा समिति के रूप में नई राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति का विरोध कर रहे है इस नीति का सर्वकक्ष पुनर्विचार करे, ऐसी मांग की जा रही है. संसद में और समाज में इस शैक्षणिक नीति संबंध में सर्वव्यापारी चर्चा करके संपूर्ण देश के व्यापक सहमति ने संविधान के मूल तत्व को अभिप्रेत रहनेवाले एक राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति हो. इसके लिए आल इंडिया फेडरेशन ऑफ एलीमेंट्री टीचर असो. के साथ संलग्न रहनेवाले महाराष्ट्र राज्य प्राथमिक शिक्षा समिति की ओर निवेदन के माध्यम से राज्याध्यक्ष उदय शिंदे, जिलाध्यक्ष गोकुलदास राऊत, जिला कार्याध्यक्ष मनीष काले,रविन्द्र निंघोट, राजेश सावरकर, महासचिव संभाजी रेवाले आदि कर रहे है.

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