अमरावतीमहाराष्ट्र

सतत धूल व धुएं से सीओपीडी बीमारी का खतरा

सर्दियों में फुफ्फुसों की कार्यक्षमता हो सकती है कम

* विश्व में तीसरी बडी बीमारी है सीओपीडी
अमरावती/दि.2– इन दिनों सडकों की बदहाली और चहूंओर फैली गंदगी के चलते हर ओर धूल का सामाज्य है. साथ ही खुले में कचरा जलाये जाने की वजह से धुएं का प्रमाण भी बढ रहा है. जिसके चलते हवा में प्रदूषण का स्तर काफी हद तक बढ गया है. ऐसे में सीओपीडी के मरीजों की संख्या में भी तेजी के साथ वृद्धि हो रही है. जिससे सर्दियों के मौसम में फुफ्फुसों के काम करने की क्षमता घट जाती है. खास बात यह भी है कि, इस समय सीओपीडी को दुनिया की तीसरी बडी खतरनाक बीमारियों में शामिल किया गया है, जो काफी हद तक जानलेवा भी साबित हो रहा है.
बता दें कि, इससे पहले सभी घरों में मिट्टी के चूल्हे हुआ करते थे. जिनमें इंधन के तौर पर लकडी व कोयले को जलाया जाता था. परंतु अब लगभग सभी घरों में एलपीजी गैस सिलेंडर पर जलने वाले सिगडी चूल्हे आ गये है. जिससे घरेलू वायु प्रदूषण का खतरा कम हो गया है. लेकिन वहीं दूसरी ओर हवा को प्रदूषित करने वाली अन्य कई वजहें है. जिससे हवा के प्रदूषित होने का प्रमाण काफी अधिक बढ गया है. जिसके चलते सीओपीडी नामक बीमारी का खतरा पहले की तुलना में काफी अधिक है और कई मरीजों में इस बीमारी का निदान विलंब से होने के चलते फुफ्फुस का अटैक आने का प्रमाण भी बढ गया है.
ज्ञात रहे कि, इन दिनों सडकों पर बडे पैमाने में धूल पसरी पडी रहती है. जिसके चलते हवा में दिनोंदिन धुलकनों का प्रमाण बढ रहा है. सडकों व महामार्ग की समय पर साफ-सफाई नहीं होने तथा खुदाई कार्य का प्रमाण बढ जाने के चलते धूल वाली स्थिति बढ रही है. इसी तरह खेतों व खुले स्थानों पर जलाये जाने वाले कचरे तथा आतिशबाजी के चलते होने वाले धुएं की वजह से भी वायू प्रदूषण की स्थिति गंभीर हो रही है.

* क्या है सीओपीडी?
इस समय दुनिया में कई लोग क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव्ह पल्मोनरी डिसिज यानि सीओपीडी की बीमारी से त्रस्त है और पूरी दुनिया इस बीमारी से हैरान परेशान है.

* कैसे होती है सीओपीडी की बीमारी?
लगातार हवा के प्रदूषण में काम करने वाले अथवा प्रदूषित हवा में रहने वाले लोगों को सीओपीडी की बीमारी होने की संभावना रहती है.

* मास्क का प्रयोग जरुरी
हवा में प्रदूषण रहने वाले स्थान पर काम करना जरुरी व मजबूरी रहने पर एन-95 मास्क का प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि धूल व धुएं के कन श्वास के जरीएं शरीर में न पहुंचे.

* सिगरेट पीने के बराबर खतरा
सिगरेट का सेवन करने के चलते फुफ्फुस में कफ तैयार होता है, जो काफी खतरनाक रहता है. लगभग वहीं स्थिति सीओपीडी नामक बीमारी में भी होती है. जिसके चलते इस बीमारी से समय रहते सावधान रहना ही बेहतर है. क्योंकि बीमारी की तीव्रता बढने पर इससे मुक्ति मिलना काफी मुश्किल होता है. साथ ही इस बीमारी की वजह से मरीज का दम भी घुटता है.

* दुकानदारों व वाहन चालकों को खतरा
शहर में कई दुकानें सडकों के बिल्कुल बगल में ही होती है. ऐसे में सडकों से उडने वाली धूल की तकलीफ उन दुकानदारों को होती है. इसके साथ ही सडकों से वाहन लेकर गुजरने वाले वाहन चालकों को भी पूरा समय धूल व धुएं का सामना करना पडता है. इसके चलते ऐसे लोगों के लिए सीओपीडी की बीमारी का खतरा अधिक रहता है.

* 40 की उम्र के बाद फुफ्फुसों की जांच जरुरी
40 वर्ष की आयु के बाद सीओपीडी की बीमारी होने की सर्वाधिक संभावना रहती है. ऐसे में 40 वर्ष की आयु पश्चात समय-समय पर फुफ्फुसों की जांच करवाना बेहद आवश्यक है.

* इन दिनों सीओपीडी की बीमारी का प्रमाण काफी अधिक बढ गया है. ऐसे में नागरिकों द्वारा समय रहते सावधानी बरतना बेहद जरुरी है. प्रदूषित स्थान से होकर यात्रा करते समय अथवा प्रदूषित स्थान पर रहते समय मास्क का प्रयोग करना चाहिए. साथ ही समय-समय पर स्वास्थ्य जांच करवाते हुए आवश्यक इलाज भी करवाना चाहिए.
– डॉ. प्रीति मोरे,
फिजिशियन, जिला सामान्य अस्पताल.

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