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58 वर्षो से सतत एक ही स्वाद

रामेश्वर पांडेय की तीसरी पीढी ने संभाल रखा है दुग्धपूर्णा

* अमरावती में मिल्कशेक लाने वाले और सभी की जीभ पर स्वाद चढानेवाले
अमरावती/दि.1- अंबा नगरी में गत 58 वर्षो से काफी कुछ बदल गया है. हमारे वरिष्ठजनों की माने तो सबसे अधिक जमाना बदल गया है. शहर का राजकमल चौक से लेकर अमूमन प्रत्येक प्रमुख चौराहा और क्षेत्र की शक्लोसूरत में आमूलचूल परिवर्तन आया है. स्वयं दुग्धपूर्णा इस पांडेय परिवार व्दारा संचालित प्रतिष्ठान की भी कायापलट हो गई है. नहीं बदला है तो राजकमल चौक के दुग्धपूर्णा के पाइनैपल मिल्कशेक का स्वाद. बुजुगार्ें का मानना है कि, करीब छह दशकों से इसका स्वाद एक जैसा बना हुआ है. यही इसकी सबसे बडी विशेषता है. इस खासियत का श्रेय नि:संदेह दुग्धपूर्णा के संचालक बालकिसन पांडेय को जाता है. पांडेय को यह व्यवसाय अपने पिता रामेश्वरजी बद्रीनारायणजी पांडेय से विरासत में मिला. जिसे अपनी मेहनत और लगन के बूते उन्होंने सतत आगे बढाया है. आज दुग्धपूर्णा के पाइनैपल सहित सभी मिल्कशेक मैगो, चीकू, अंजीर, ड्रायफ्रुट आदि न सिर्फ बहुत लजीज बल्कि अमरावती की पहचान बने हुए हैं.
* श्रेय अमरावती के लोगों को
अमरावती के मिल्कशेक किंग कहे जा सकते बालकिसन पांडेय ने दुग्धपूर्णा की सफलता का श्रेय अमरावती के लोगों को विनम्रतापूर्वक दिया. उन्होंने कहा कि, अमरावतीवासियों की खूबी है वह अच्छी खान-पान की चीज पसंद करते है इसके लिए मुंह मांगे दाम देने तैयार रहते हैं. इसी से बेहतर से और बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है. स्वाद कायम रखने के पीछे का राज भी बालकिसनजी सहर्ष शेयर करते हैं कि हम तो अपने इष्ट का नाम लेकर कार्य आरंभ करते हैं. स्वयं शेक वगैरह बनाते हैं. जिससे भगवान उसमें स्वाद स्वयं उंडेल देता हैं. अमरावती के लोगों ने दशको से या कह लीजिए पीढियों से इसे पसंद किया है. दुग्धपूर्णा में आज पांडेय परिवार की भी तीसरी पीढी वीरेंद्र, सुभेश, लाभेश, योगेश, नीतेश कार्यरत है.
* अधिक दूध पीयो पखवाडा
बालकिसनजी ने बताया कि, 1960-65 में शुरुआत हुई. उनके पिता रामेश्वरजी ने खारा नाश्ता का काम शुरु किया था. कचोरी, समोसा, इडली, वडा, सांभार, डोसा आदि बनाते और विक्री करते. उसी समय उनके ध्यान में दूध का व्यवसाय भी आया. कढाई में दूध गर्म कर उसे गिलास में देने की शुरुआत की. एक आना, दो आना ग्लास दूध देते थे. इतना ही नहीं तो स्वाधीनता सेनानी रहे रामेश्वरजी ने यहां के लोगों में दूध पीने का प्रचलन बढाने के लिए अधिक दूध पीयो पखवाडा शुरु किया. जिससे अमरावती के लोगों को दूध पीने की आदत पडी. कालांतर में लगभग 1965 के दौर में उनकी खपत रोजाना 150 लीटर तक हो गई थी और इसी दौरान मिल्कशेक की शुरुआत हुई. जो आज करीब 6 दशक से निरंतर है. अमरावती के लोगों की जिव्हा पर पांडेयजी के मिल्कशेक का स्वाद चढा है.
* पीढियां रही है ग्राहक
जिस तरह पांडेय परिवार की तीसरी पीढी मिल्कशेक के व्यवसाय को आगे बढा रही है, वैसे ही अमरावती के अनेक परिवारों की भी तीसरी पीढी वहां मिल्कशेक पीने आती हैं. पांडेयजी उसी दिन का किस्सा बता रहे थे जब एक महिला अपनी 15-16 साल की बेटी को लेकर आई और उसे बता रही थी कि वह भी छोटी थी तो यहां मिल्कशेक पीने आती थी. ऐसे बहुतेरे उदाहरण है. सराफा का मेघराज सोनी का परिवार भी ऐसे ही पारिवारिक कस्टमर दुग्धपूर्णा का है. स्वाद कायम है.
* रेंज बढी, स्वाद बरकरार
पांडेय ने बताया कि, आइस्क्रीम के इस दौर में भी पाइनैपल शेक का रुतबा कायम है. इसके पीछे स्वाद तो है ही वैरायटी भी बढाई गई है. मगो, अंजीर, काजू, चीकू, ड्रायफ्रुट शेक दुग्धपूर्णा की विशेषताएं है. रेंज बढी है. आइस्क्रीम लस्सी भी वे देते हैं. क्वालिटी में कोई समझौता नहीं. शुगर फ्री और बगैर बरफ के शेक एस्ट्रा चार्ज बिना उपलब्ध है. यहां उल्लेखनीय है कि स्वयं बालकिसनजी लगभग पांच दशको तक खडे रहकर विविध मिल्कशेक बनाते आए हैं. आज बेटा लाभेश, भतीजा वीरेंद्र जिम्मा संभालता हैं. घंटो एक जैसा खडे रहकर शेक बनाना होता है. आज भी दुग्धपूर्णा में बाहरी कारीगर नहीं है. जिसे सबसे बडी खूबी कह सकते हैं.
* धार्मिक आयोजनों में योगदान
पांडेय परिवार स्वाधीनता आंदोलन से जुडा रहा. रामेश्वरजी ने ताउम्र गेट के भीतर प्रभातफेरी का चलन जारी रखा. ऐसे ही दुग्धपूर्णा पर 15 अगस्त और 26 जनवरी को तीरंगा ध्वज सहर्ष वितरित होता है. नगर के धार्मिक आयोजनों में भी पांडेय परिवार का योगदान अग्रणी रहता आया है. सामाजिक सरोकार रखने वाले बालकिसन पांडेय गौड ब्राह्मण संगठन, रोटरी क्लब, राजस्थानी ब्राह्मण संगठन, अ.भा. ब्राह्मण परिषद, गणेश गायत्री मंदिर से जुडे हैं. परिवार में पत्नी सौ राधा देवी, पुत्र सुभेश, लाभेश, पुत्रवधु शुभांगी और स्नेहा सहित नाती-पोते हैं. तीन भतीजे वीरेंद्र, योगेश और नीतेश भी अनूठे संयुक्त परिवार का अभिन्न अंग हैं.

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