प्रतिनिधि/दि.२८
अमरावती-बारिश का मौसम शुरू होते ही नर्सरी पर खरीदी करनेवालों की अच्छी खासी भीड़ लगा करती थी. हर साल पेड़ पौधों व कलमों का लाखों करोड़ का व्यवसाय होता था. लोग अपने घरों में नर्सरी से कलम व पौधे खरीदी कर गमलों में, घरों के सामने स्थित गार्डन में पौधे लगाते थे. नर्सरी व्यवसाय के साथ-साथ इसके पूरक व्यवसाय करने वालों पर भी कोरोना का असर दिखाई पड़ रहा है. नर्सरी के पास गमलों की दुकानें तो लगी है. किंतु ग्राहक नदारद है.
शहर के पर्यावरण प्रेमी प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर पान, क्रिसमस ट्री, आम, अमरूद, नीबू पौधों के साथ ही सजावट के पौधों की भी बड़े प्रमाण में मांग की जाती है. बारिश खत्म होते ही शेवंती, गुलाब, रातरानी, चमेली, मोगरा, मधुमालती व पेट्रॉस सहित अन्य नस्ल के फूलों की भी मांग बढ़ जाती है. जिसमें नर्सरी व्यवसायियों के साथ मिट्टी के गमले बनानेवाले खाद व्यवसायी, कटला चालक, कारागिर इन सभी के व्यवसाय पर भी असर पड़ा है.
नर्सरी में केवल सन्नाटा है. अधिकांश नर्सरी संचालको ने कर्मचारियों की संख्या भी घटा दी है. नर्सरी संचालक कम दाम में माल बेच रहे है. शहर में आंध्रप्रदेश के राजमुंद्री गांव से सजावट व फलों के पौधे आते थे. साथ ही हैद्रराबाद, कोलकता बैंग्लूर, पुणे से भी विशेष प्रजातियो के फूलों के पौधों की आवक होती हैे. प्रति पौधा ४० रूपये से लेकर १ हजार २०० रूपये तक बेचा जाता था. किंतु इस बार कोरोना के चलते बाहर से माल तो आया है. किंतु डिमांड नहीं है.