अमरावती/दि.15 – कोरोना के दौर में लगातार तनाव और भय बना हुआ है. कोरोना से निर्मित विपदा को कोई धार्मिक, राजनीतिक तो कोई आर्थिक रंग देने का प्रयास कर रहा है. यह विचार मानसिक उपचार विशेषज्ञों ने व्यक्त किये है. यहां बता दें कि कोरोना विपदा वापस लौटने के बाद भीषण रुप धारण कर रही है. जिसके चलते नागरिकों को फिर से लॉकडाऊन का सामना करना पड़ रहा है. इस कारण अनगिनत समस्याएं उत्पन्न हो रही है. 100 से 200 वर्षों में किसी भी पीढ़ी ने इतनी बड़ी चुनौती का सामना नहीं किया है. इसलिए आज केवल कोरोना के परिणाम को लेकर चर्चाएं व्याप्त है.
विदर्भ सहित राज्य के अनेक जिलों में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. वहीं मृतकों का आंकड़ा भी बढ़ते जा रहा है. जिससे हालात और गंभीर होते जा रहे हैं. इसमें ही अब मानसिक बीमारियों का प्रमाण भी बढ़ गया है. खास बात यह है कि जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर है, वे कम से कम मानसिक उपचार विशेषज्ञ के पास जाकर अपना उपचार करवा सकते हैं, लेकिन मेहनती और दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के हालत काफी बुरी है.
प्रशासन प्रबंधन की ओर से यह हालात हम पर लादे गये हैं. इसलिए इसमें मध्यमवर्गीयों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. शिक्षा क्षेत्र भी पूरी तरह से प्रभावित हो चुका है. शैक्षणिक वर्ष चाहिए या फिर शिक्षा. इसी चक्कर में पूरी पढ़ाई ठप हो गई. वहीं शैक्षणिक वर्ष भी खत्म हो गया. जिससे अभिभावकों की चिंताएं बढ़ गई है.छात्रों की मानसिकता पर भी इसका असर दिखाई दे रहा है.
- हाल की स्थिति तनावपूर्ण होने के बावजूद भी हरएक ने अपने मन को काबू में रखना जरुरी है. कोरोना के चलते हालातों का तनाव स्वाभाविक है. लेकिन ज्यादा तनाव लेना भी उचित नहीं है. इसलिए प्रत्येक को तनावमुक्त होना चाहिए.
– डॉ. अमोल गुल्हाने, मानसिक उपचार विशेषज्ञ - इतनी बड़ी चुनौती से निपटने की हमें आदत नहीं है. हर कोई अपना-अपना अनुमान जता रहा है. इसलिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
– पंकज वसाडकर, मानसिक उपचार विशेषज्ञ