अमरावतीमहाराष्ट्रविदर्भ

मधुकरराव अभ्यंकर ग्रामोद्धार के उपाध्यक्ष और विश्वस्त पद पर कायम

धर्मोदाय आयुक्त व अचलपुर न्यायालय का फैसला रद्द उच्च न्यायालय ने सुनाया फैसला

प्रतिनिधि/ दि.१५

दर्यापुर- मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने दर्यापुर तहसील के टोंगलाबाद स्थित ग्रामोद्धार शिक्षा संस्था के विवाद पर हाल ही में फैसला सुनाया. याचिकाकर्ता मधुकरराव अभ्यंकर इस संस्था के विश्वस्त व उपाध्यक्ष पद पर कायम रहेंगे, ऐसा उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाकर धर्मदाय आयुक्त व अचलपुर न्यायालय का फैसला रद्द कर दिया. इस संस्था की स्थापना वर्ष १९८१ में की गई थी. संस्था के सदस्य याचिकाकर्ता मधुकर अभ्यंकर ने वर्ष १९८२ में नियमानुसार आवेदन व प्रवेश शुल्क भरकर वे सदस्य बने तब से अभ्यंकर ने संस्था के सदस्य, उपाध्यक्ष व जीवन विकास विद्यालय गोपाल नगर अमरावती के अध्यक्ष के रुप में करीब १९ वर्ष काम किया. इतना लंबा समय बीतने के बाद उस संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष एकनाथ गावंडे व सचिव गिरधर बोरखडे ने मधुकर अभ्यंकर यह उपरोक्त संस्था में सदस्य तथा उपाध्यक्ष होने की बात नकार दी. १८-१९ वर्ष का संस्था का पूरा रिकॉर्ड बदलकर वह रिकॉर्ड धर्मदाय आयुक्त अमरावती के समक्ष प्रस्तुत किया. इसके कारण मधुकर अभ्यंकर ने इस अन्याय के खिलाफ करीब २१ वर्ष कानूनी लडाई लडी. संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष एकनाथ गावंडे व सचिव गिरधर बोरखडे ने अब तक कानून का उल्लंघन किया, ऐसा आरोप मधुकर अभ्यंकर ने लगाते हुए धर्मदाय आयुक्त के समक्ष याचिका दायर की. इसमें १८ से १९ वर्ष संस्था के कार्यकारिणी के चुनाव न लेते हुए धर्मदाय आयुक्त के पास संस्था का हिसाब किताब पेश न करने, संस्था में अन्य लोगों के लोन के लिए धर्मदाय आयुक्त से अनुमति न लेना, प्रापर्टी दर्ज न कराने, इतना ही नहीं तो शासन के अनुमति के बगैर डीएड कॉलेज चलाने और उसके लिए किसानों के बच्चों से रुपए वसूल करने, ऐसी शिकायत याचिकाकर्ता ने धर्मदाय आयुक्त से की. बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट कानून १९५० की धारा ४१ ड के अनुसार याचिका दायर की थी. उसका फैसला २४ जुलाई २००७ में सुनाते हुए धर्मदाय आयुक्त ने एकनाथ गावंडे व गिरधर बोरखडे को कायम रुप से निष्कासित किया गया और बकाया सदस्यों को आगामी ५ वर्ष चुनाव में शामिल नहीं होने का फैसला सुनाया और मधुकर अभ्यंकर संस्था के पदाधिकारी या विश्वस्त नहीं ऐसा फैसले में उल्लेख किया. उपरोक्त निर्णय के खिलाफ मधुकर अभ्यंकर ने अचलपुर जिला न्यायालय में अपील दायर की थी. मगर न्यायालय ने धर्मदाय आयुक्त के फैसले को कायम रखा. उसके कारण उन्होंने इस फैसले के खिलाफ मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में अपील दायर की थी. न्यायमूर्ति अनिल किल्लोर की एकल सदस्य खंडपीठ के सामने इस अपील पर सुनवाई ली गई. याचिकाकर्ता की ओर से एड.अंजन डे ने पैरवी की. अपीलकर्ता मधुकर अभ्यंकर के साथ प्रतिवादी गिरधर बोरखडे ने संयुक्त रुप से याचिका दायर की थी. जिसमें प्रतिवादी गिरधर बोरखडे ने मधुकर अभ्यंकर यह संस्था के उपाध्यक्ष होने की बात मान्य की. इस मुद्दे की ओर एड.अंजन डे ने अदालत का ध्यान केंद्रीत कर मधुकर अभ्यंकर संस्था के हितसंबंधी होने की दलीले प्रस्तुत की. दोनों ओर की दलिले सुनते हुए अदालत ने अचलपुर न्यायालय व धर्मदाय आयुक्त का फैसला रद्द करते हुए मधुकर अभ्यंकर यह ग्रामोध्दार संस्था के उपाध्यक्ष व विश्वस्त है, ऐसा फैसला सुनाया. बॉ्नस २१ वर्ष की कानूनी लडाई सफल इस शिक्षा संस्था की स्थापना से संस्था के हित में मैंने काम किया. परंतु संस्था के कुछ पदाधिकारियों ने मेरे ही खिलाफ षडयंत्र रचना शुरु किया. इसके कारण मैेंने कानूनी लडाई शुुरु की. आखिर २१ वर्ष बाद मुझे आखिर न्याय मिल ही गया.

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