अमरावती

गाय की शोभायात्रा, गधों का पोला

गाय की शोभायात्रा, गधों का पोला

पथ्रोट-/दि.30 पिठोरी अमावस्या के दूसरे दिन कर को पथ्रोट में द्वारका के नंदी बैल की यात्रा शोभायात्रा निकाली जाती है. रासेगांव में गधों को सजाकर उनकी पूजा करत समय ही बेलज गांव में बैलों की बजाय गाय की शोभायात्रा गांव से गाजे बाजे के साथ निकलती है व मांसाहारी भोजन पूरी तरह से वर्ज्य रहता है.
संपूर्ण विदर्भ में पोले का दूसरा दिन खाने-पीने यानि कर मनाने के लिए जाना जाता है. मांसाहारी खवय्ये मुर्गी, बकरे पर ताव मारते समय बेलज गांव में गोमाता की गांव में गाजे बाजे एवं भजन मंडल की दिंडी सहित शोभायात्रा निकालकर शीतला माता मंदिर परिसर में सामूहिक भोजन कार्यक्रम शुरु रहते जानकार वृद्ध के कहे अनुसार पहले प्लेग के संसर्ग रोग से गांववासियों की मृत्यु होती थी. शीतला माता के दृष्टांत पर से कर क ेदिन गोमाता के पूजन का कार्यक्रम शुरु करने का आदेश होने से कर मनाने की बजाय गाय का पूजन किया जाता है. परिणामस्वरुप गांव में किसी के भी घर मांसाहारी भोजन नहीं होने की जानकारी है.
बैल के साथ गधों को भी तोरण के नीचे खड़े कर उनका भी सम्मान करने की अनोखी प्रथा रासेगांव में है. स्थानीय भोई बंधुओं की उपजीविका गधों पर निर्भर रहने के कारण सालभर बोझ ढोने वाले गधों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गधों का भी पोला मनाया जाता है. संपूर्ण विदर्भ में यह एकमात्र गधों का पोला भरने के कारण आश्चर्य व्यक्त किया जाता है.
बैल की तरह ही गधों का भी साज श्रृंगार कर पुरणपोली का नैवेद्य किया जाता है. माहुरे परिवार ने 25 वर्षों से यह प्रथा शुरु किये जाने की जानकारी श्याम माहुरे व उनकी माता सरस्वती माहुरे ने दी.

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