अमरावती

घरेलू की बजाए बाजारी खाद्य पदार्थ का बढा क्रेज

अधिकांश परिवार कर रहे बाजार से खरीददारी

* मां के हाथों से बनने वाले स्वादिष्ट व्यंजन भूल रहे परिवार के सदस्य
अमरावती/दि.2– दीपावली पर्व को वर्ष के सबसे बड़े पर्व के रूप में मान्यता प्राप्त है. अन्य पर्वों की तरह इस पर्व के स्वरूप में पहले की तुलना में बहुत बदलाव हुआ है. पहले दीपावली पर बनने वाले मिठान्न तथा अन्य सामग्रियां घर में ही दादी-मां के हाथों से बनायी जाती थीं, लेकिन आज के आधुनिक समाज में होम मेड दीपावली के खाद्यान्न की थाली मार्केट मेड बन गई है. चूंकि महंगाई चरम पर है, इसलिए हर घर में पति-पत्नी दोनों को ही काम पर जाना पड़ता है, इसलिए आज की गृहिणियों के पास दीपावली का फराल बनाने के लिए वक्त ही नहीं होता. दीपावली के मौके पर घर आने वाले अतिथियों के सामने विभिन्न खाद्य पदार्थों की थाली तो पिछले कुछ वर्षों की तरह इस बार भी आएगी, लेकिन उस थाली में बनी सामग्रियां होम मेड न होकर रेडिमेट (या मार्केट मेड) ही रहेगी. पति-पत्नी दोनों के काम पर जाने की वजह से होम मेड फराल की जगह मार्केट मेड फराल ने ले ली है.

पिछले कुछ वर्षों से राज्य के अन्य क्षेत्रों की तरह अमरावती में रेडिमेड फराल खरीदने का चलन बहुत बढ़ गया है. दीपावली के लिए ऑर्डर देने की प्रक्रिया इस बार नवरात्रि समाप्त होने के साथ से ही शुरू हो गई थी. पहले के दौर में 100 में से 95 घरों में दीपावली में अतिथियों के लिए मिष्ठान्न तथा अन्य वस्तुएं बनायी जाती थी. धनतेरस के दिन से ही घर के लोगों को ये सभी पदार्थ खाने के लिए मिलते लगते थे. पुराने दौर में आज जैसी मंहगाई नहीं थी, इसलिए बाजार से कच्चा माल लाकर घर पर ही दीपावली के लिए सामाग्रियां बनाई जाती थीं. संयुक्त परिवार के दौर में जो भी बनता था, वह पर्याप्त मात्रा में बनता था लेकिन जैसे-जैसे संयुक्त परिवार विभक्त हुए और मंहगाई बढ़ी पति-पत्नी दोनों नौकरी करने लगे, उसके बाद से ही घर पर बनने वाले मीठे तथा नमकीन सभी पदार्थों पर विराम लग गया और उसके स्थान पर रेडिमेट (बाजार के पैकेट बंद) पदार्थों की मांग बढ़ने लगी और आज आलम यह है कि कुछ घरों में ही दीपावली के खाद्यान्न बनते हैं. ज्यादातर घरों में अब बाजार से बने मीठे पदार्थ, चकली- चिवड़ा आर्डर देकर खरीदा जाने लगा है. एक ऐसा दौर था, जब घर की महिलाएं बड़े चाव से चिवड़ा, चकली, बेसन के लड्डू, सूजी (रवा) के लड्डू , बूंदी के लड्डू, मीठे तथा नमकीन शंकरपाड़े, बेसन की सेंव, अनारसे, गुझिया, खाजा, बालूशाही जैसे पदार्थ बनाती थीं, ये सभी सामग्रियां बनाते समय वे इस बात का भी ध्यान रखती थीं कि जो भी सामग्री बनायी जाए, वो पर्याप्त हो.

दीपावली के मौके पर घर पर आने वाले हर व्यक्ति को बनायी गई सामग्री खाने को मिले और खाने वाला कहे कि क्या खूब बनाया है आपने. दीपावली के कुछ दिन पहले से ही फराल बनाने के लिए जरूरी सामान लाकर रख दिया जाता था. सामान लाने की जिम्मेदारी घर के पुरुषों की होती थी, जबकि खाद्यान्न बनाने की जिम्मेदारी घर की महिलाओं की होती थी. दोनों अपनी-अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते थे, लेकिन आज की दौड़ भाग तथा महंगाई वाले दौर में घर में चकली चिवड़ा बनाने का किसी के पास वक्त नहीं रह गया है. घर में दीपावली के फराल बनाने का वक्त न निकाल पाने वाली महिलाओं के कारण बचत गट तथा ग्रामोद्योग के माध्यम से चिवड़ा, चकली समेत अन्य पदार्थ बनाने का ऑर्डर दिया जाने लगा है. इस तरह देखा जाए तो जो वस्तुएं पहले बड़े चाव से बनायी जाती थी, उसे अब बाजार, बचत गट, ग्रामोद्योग के माध्यम से बनवाया जाने लगा है. आने वाले दौर में तो इस बात की भी आशंका व्यक्त की जाने लगी है कि दीपावली का शत-प्रतिशत फलाहार बाजार या बाहर के लोगों पर ही निर्भर हो जाएगा और घर पर दादी- मां- पत्नी, भाभी-बहन के हाथों से बनी वस्तुओं के स्वाद से परिवार के लोग पूरी तरह से वंचित हो जाएंगे.

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