फिल्मों की तर्ज पर डॉयलॉग और रिल्स का निर्माण
सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार की जमकर धूम, कोई नियंत्रण नहीं
*चुनाव अधिकारी और कार्यालय को ध्यान देने की जरुरत
*पुराने बयान और आरोप प्रत्यारोप के विडियों भी बाहर निकाले जा रहे
अमरावती/दि.01– तत्कालीन चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने जब देश में आम चुनावों के लिए कडी आचार संहिता का निर्माण किया था. तो सोचा भी नहीं होगा की एक दिन ऐसा भी आएगा जब चुनाव प्रचार हिंदी फिल्मों के डॉयलॉग और सीन (दृश्य) के आधार पर किया जाएगा. बदलते दौर और समय ने अब चुनाव प्रचार का रंग और ढंग भी इतना बदल दिया है कि लोकसभा चुनाव 2024 में हर घंटे फिल्मों की तर्ज पर डॉयलॉग और नई-नई शॉर्ट रिल्स का निर्माण किया जा रहा है. इसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ढंग हावी है. दुनिया की सबसे बडी पार्टी भाजपा भी अछुती नहीं रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर विकासात्मक कामों की रील बना कर भाजपा अपलोड करती है.
अमरावती लोकसभा चुनाव क्षेत्र में इन दिनों अलग- अलग पार्टियों के उम्मीदवारों के समर्थकों व्दारा अलग अलग सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कई रिल्स बना कर डाली जा रही है. हाल ही में पुष्पा फिल्म के सबसे हिट फिल्मी दृश्य की तर्ज पर एक रील बनाई गई है, जिसमें रील के किरदार के रुप में देवेन्द्र फडणवीस, बच्चू कडू और रवी राणा को बताया गया है. यह रील काफी आपत्ती जनक है. लेकिन किसने बनाई और कहां बनी इसका कोई सोर्स पता चले बगैर लोग बाग बडे पैमाने पर इस रील को फारवर्ड कर चुनावी प्रचार के बदलते स्वरुप के चटकारे ले रहे है.
हम चुनाव आयोग के स्थानीय अधिकारियों को अलर्ट करने की दृष्टी से यह खबर प्रकाशित कर रहे है. इस खबर के साथ संबंधित रील के कुछ फोटो हमने प्रकाशित किए है. इसके अलावा नवनीत राणा के 2019 के चुनाव में दिए गए नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वाले बयान को भी इन दिनों काफी वायरल किया जा रहा है. रील बनाने वाले के फेवरेट नेता बच्चू कडू दिखाई दे रहे है. बच्चू कडू पर कई मिम्स और रिल्स आ चुके है.
सबके है वॉर रुम
गौरतलब है कि अमरावती लोकसभा में भाजपा की नवनीत राणा, कॉग्रेस के बलवंत वानखडे और प्रहार के दिनेश बूब यह तीन प्रमुख उम्मीदवार है. मिली जानकारी के अनुसार इन तिनों प्रमुख उम्मीदवारों के सोशल मिडिया के लिए अलग अलग वॉर रुम बनाए गए है. इनमें से कितने वॉर रुम की जानकारी चुनाव विभाग को है. यह बता पाना मुश्किल है. क्योंकि यहां का चुनाव विभाग और उसके अधिकारी पत्रकारों से नियमित प्रेस कॉफ्रेंस के अलावा कोई बात करने तैयार नहीं रहते है. यदि चुनाव प्रचार का स्तर ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में आदर्श आचार संहिता तथा चुनावों में धानंधली का कारण भी यह प्रचार प्रसार हो सकता है. अखबारों में एक छोटा सा विज्ञापन देने के लिए चुनाव आयोग के ढेरों नियम है, लेकिन सोशल मिडिया पर उसका कोई नियंत्रण नहीं. चुनाव आयोग की यह दोहरी निती समझ से परे है.