26 वर्षों से सडक किनारे क्रॉकरी का धंधा
नसीम बेग को हारी बीमारी में बेचना पडा प्लॉट
* माता-पिता की सुख-सुविधा का रखते ध्यान
अमरावती/दि.26– 1998 से सडक किनारे ठेला लगाकर चीनी मिट्टी के बर्तन अर्थात क्रॉकरी बेचने का धंधा नसीम बेग कर रहे हैं. वे बताते हैं कि, मनपा के अतिक्रमण विभाग वाले उन लोगों को एक जगह टिकने नहीं देते. नहीं तो आज उनकी भी जमीजमायी ग्राहकी होती और वे किसी जगह ठिया लगाकर अपना धंधा करते. नसीम बताते है कि, गांधी चौक से उन्हें मनपा के दस्ते ने खदेड दिया. वे सुबह से लेकर दोहपर 2 बजे तक गल्ली मोहल्लों में फेरी लगाकर क्रॉकरी बेचते हैं.
* माता-पिता रहते साथ
नसीम बेग के माता-पिता जयबुन्निसा और हफीज बेग उनके साथ रहते है. हालांकि नसीम को 5 भाई है. कक्षा छठवीं तक पढने के बाद आज से 26 साल पहले नसीम ने क्रॉकरी का धंधा अपना लिया था. वे लगातार यहीं धंधा कर रहे हैं. नसीम ने बताया कि, उनके परिवार में पत्नी हीना कौसर, दो बेटिया आलिया खातून और अफशा कौसर एवं एक पुत्र हसनैन है. हसनैन और अफशा प्रियदर्शनी स्कूल जाकीर कालोनी में पढते है. आलिया का विवाह हो चुका है.
* 120 रुपए दर्जन क्रॉकरी
नसीम ने बताया कि, क्रॉकरी में महंगे से महंगे आइटम होते है. ग्राहकों की पसंद का सवाल है. फिलहाल तो वे 120 रुपए से लेकर 300 रुपए दर्जन तक क्रॉकरी रखते है और यही माल अधिक सेल होता है. बहुत महंगा हमारे पास से लोग नहीं खरीदते. तथापि रोज 400-500 रुपए की मजूरी हो जाती है.
* कागज के कप का चलन
नसीम बेग ने बताया कि, पहले अनेक टी-स्टॉल और सडक किनारे चाय-कॉफी बेचने वाले लोग उनसे क्रॉकरी खासकर मग और ग्लास खरीदते थे. अब कागज के कपों का चलन हो चला है. जिससे स्टॉल संचालक यूज एण्ड थ्रो मग का उपयोग करते हैं. जिससे उनकी विक्री कम हो गई है. सामान्य घरों के लोग जरुर उनसे नियमित रुप से मग, कप, सॉसर खरीदते है. सामान्यजनों के घरों में ऐसे ही कप प्लेट उपयोग में लाये जाते हैं. नसीम बेग हफीज बेग सर्दी-गर्मी, बरसात में रोज सबेरे अपना थेला लेकर निकल पडते हैं. जुम्मे के रोज किसी मस्जिद में जाकर प्राथर्ना जरुर करते है. नमाज अदा करते हैं. उनका ईश्वर में बडा विश्वास है.