अमरावती मंडल में विराजे दगडू हलवाई गणपति
पुणे से विशेष तौर पर मंगवाई गई मनमोहक मूर्ति
* मंडल कार्यालय में साकार हुआ दगडू शेठ मंदिर
* रोजाना गणमान्य दे रहे दर्शन हेतु भेंट, सुबह-शाम हो रही पूजा-अर्चना
अमरावती/दि.22 – प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी दैनिक अमरावती मंडल के खापर्डे बगीचा स्थित कार्यालय में गणेशोत्सव निमित्त विघ्नहर्ता विनायक श्री गणेश की स्थापना की गई है. इस वर्ष मंडल कार्यालय में दगडू शेठ हलवाई गणपति की प्रतिकृति को स्थापित किया गया है. जिसके लिए विशेष तौर पर पुणे से दगडू शेठ हलवाई गणपति की प्रतिमा तैयार करवाकर मंगवाई गई. जिसे अमरावती मंडल कार्यालय में तैयार किए गए दगडू शेठ हलवाई मंदिर की प्रतिकृति वाले आकर्षित व सुसज्जित मंडप में विधि विधानपूर्वक स्थापित व प्रतिष्ठित किया गया. विगत 19 सितंबर को अमरावती मंडल कार्यालय में श्री गणेश स्थापना होने के उपरान्त रोजाना सुबह-शाम बडे श्रद्धा-भाव के साथ श्री गणेश की पूजा, अर्चना व आरती की जा रही है. जिसमें रोजाना ही शहर के कई गणमान्यों द्बारा उपस्थित रहकर दगडू शेठ हलवाई श्री गणेश के दर्शन लिए जा रहे है.
विशेष उल्लेखनीय है कि, अमरावती शहर सहित जिले के इतिहास में पहली बार किसी कॉर्पोरेट ऑफिस अथवा अखबार के कार्यालय द्बारा 700 किमी दूर स्थित पुणे से विशेष तौर पर गणेश प्रतिमा तैयार कर अमरावती मंगवाई गई और उसे 10 दिवसीय गणेशोत्सव हेतु अपने कार्यालय में स्थापित किया गया. मूर्ति निर्माण के क्षेत्र में पुणे सहित समूचे राज्य एवं देश-विदेश में लब्ध प्रतिष्ठित रहने वाले पुणे निवासी देशमुख बंधुओं द्बारा संचालित नटराज आर्ट्स द्बारा अमरावती मंडल प्रबंधन के निवेदन पर यह गणेश प्रतिमा विशेष तौर पर तैयार की गई. जिसे लाने के लिए अमरावती से एक वाहन खास तौर पर पुणे भेजा गया था और वहां से काफी सावधानी व जतन के साथ इस प्रतिमा को गणेश चतुर्थी वाले दिन अमरावती लाया गया. जिसके उपरान्त इस प्रतिमा को अमरावती मंडल के मुख्य कार्यालय में पहले से तैयार किए गए सुसज्जित मंदिरनुमा मंडप में स्थापित व प्रतिष्ठित किया गया.
* ऐसे हुआ संकल्प
बता दें कि, भगवान श्री गणेश के प्रति अटूट व अगाध श्रद्धा रखने वाले दैनिक अमरावती मंडल के प्रबंध संपादक अनिल अग्रवाल एवं प्रबंध संचालक राजेश अग्रवाल सहित अग्रवाल परिवार के सभी सदस्यों ने इस वर्ष मंडल कार्यालय में दगडू शेठ हलवाई गणपति की प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प लिया था. जिसके तहत अग्रवाल बंधुओं द्बारा पुणे स्थित दगडू शेठ हलवाई मंदिर ट्रस्ट से संपर्क करते हुए उन्हें अपनी इच्छा व संकल्प के बारे में बताया गया. साथ ही दगडू शेठ हलवाई गणपति की हूबहू प्रतिमा मिलने के बारे में जानकारी प्राप्त की गई. तब दगडू शेठ हलवाई गणपति ट्रस्ट की ओर से पुणे स्थित नटराज आर्ट्स के बारे में बताया गया. विशेष उल्लेखनीय है कि, विगत दिनों जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पुणे दौरे के तहत दगडू शेठ हलवाई गणपति मंदिर में दर्शन करने हेतु पहुंचे थे, तो उन्हें मंदिर ट्रस्ट की ओर से नटराज आर्ट्स द्बारा बनाई गई दगडू शेठ हलवाई गणपति की मूर्ति भेंट स्वरुप प्रदान की गई थी. इस बात से अवगत होते ही अग्रवाल बंधुओं ने तुरंत ही नटराज आर्ट्स के संचालक भालचंद्र उर्फ लालासाहेब देशमुख तथा राजेंद्र उर्फ बाबासाहेब देशमुख से संपर्क किया और उन्हें अपने बारे में जानकारी देते हुए अपने लिए दगडू शेठ हलवाई गणपति की प्रतिकृति मूर्ति तैयार करके देने का निवेदन किया. पुणे से 700 किमी दूर अमरावती शहर के नाम से भी अनजान रहने वाले देशमुख बंधुओं ने इस निवेदन को यह कहते हुए सहर्ष स्वीकार किया कि, उन्होंने अब तक देश के कई शहरों सहित विदेशों में अपने द्बारा निर्मित मूर्तियों को भेजा है. परंतु अमरावती शहर से उनके पास पहली बार गणेश प्रतिमा और उसमें भी दगडू शेठ हलवाई गणपति की प्रतिमा तैयार करके देने का निवेदन आया है. जिसे वे अवश्य पूरा करेंगे.
* …और ऐसे हुई इच्छापूर्ति
इसके उपरान्त देशमुख बंधुओं ने दैनिक अमरावती मंडल के कार्यालय में स्थापित करने हेतु दगडू शेठ हलवाई गणपति की बेहद आकर्षक व मनमोहक प्रतिमा तैयार की. जिसे लेने के लिए अमरावती से अग्रवाल परिवार व अमरावती मंडल कार्यालय के 4 लोगों की टीम अपने निजी वाहन से विशेष तौर पर पुणे पहुंची. जहां पर देशमुख बंधुओं ने मूर्ति को 700 किमी दूर ले जाने के लिहाज से बडे शानदार तरीके के साथ पैकिंग करते हुए वाहन में रखवाया, ताकि यात्रा के दौरान मूर्ति को किसी तरह का कोई नुकसान अथवा क्षति न हो, इसके पश्चात यह टीम पुणे से निकलकर गणेश प्रतिमा के साथ अमरावती पहुंची और गणेश चतुर्थी वाले दिन इस मूर्ति को वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच अमरावती मंडल कार्यालय में तैयार किए गए दगडू शेठ हलवाई गणपति मंदिर की तर्ज वाले मंदिरनुमा मंडप में स्थापित किया गया.
* मंडल कार्यालय में साकार किया गया आकर्षक रोशनाई वाला मंदिर
10 दिवसीय गणेशोत्सव हेतु दैनिक अमरावती मंडल के कार्यालय में कई दिन पहले से तैयारियां करनी शुरु कर दी गई थी. जिसके तहत श्रीकृष्ण पेठ गणेशोत्सव मंडल एवं नमूना सार्वजनिक गणेशोत्सव मंंडल जैसे बडे-बडे मंडलों के लिए पंडाल व मंडप साकार करने वाले अकोला निवासी मंगेश गीते को दैनिक अमरावती मंडल के कार्यालय में दगडू शेठ हलवाई गणपति मंदिर के गर्भगृह की प्रतिकृति साकार करने का जिम्मा सौंपा गया. इस हेतु दैनिक अमरावती मंडल कार्यालय के एक हिस्से को पूरी तरह से खाली करते हुए जगह उपलब्ध कराई गई. जहां पर मंगेश गीते के नेतृत्व में गीते डेकोरेशन की टीम ने थर्माकोल के जरिए ऐसा आकर्षक मंडप तैयार किया, जिसे देखकर लगता है मानो काले पाषाण से नक्काशीदार मंदिर बना हुआ है. इसके साथ ही इस मंदिर में अमरावती निवासी फिरोज भाई व राजा भाई द्बारा संचालित राजा लाइट एण्ड जनरेटर द्बारा बेहद आकर्षक व रंगबिरंगी रोशनाई की गई. जिसके चलते यह मंदिर और मंदिर में स्थापित दगडू शेठ हलवाई गणपति की प्रतिमा जगमगाने के साथ ही मानों सजीव हो उठे.
* रोजाना सुबह-शाम पूजा-अर्चना व अलग-अलग भोग नैवैद्य
– पं. संजय पांडे के पौरोहित्य में होता है पूजन
दैनिक अमरावती मंडल कार्यालय में प्रतिवर्ष ही बडे श्रद्धाभाव के साथ 10 दिवसीय गणेशोत्सव मनाया जाता है. जिसके तहत इस वर्ष दगडू शेठ हलवाई गणपति की मूर्ति स्थापित करते हुए रोजाना सुबह-शाम राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं. संजय पांडे के पौरोहित्य में पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही इस काम में पं. प्रमोद पाण्डेय व पं. करण शर्मा भी सहयोग करते है. विशेष उल्लेखनीय है कि, रोजाना सुबह-शाम की आरती पश्चात भगवान श्री गणेश को अलग-अलग मिष्ठान्नों का भोग व नैवैद्य अर्पित किया जाता है. जिसके लिए स्थानीय रघुवीर मिठाईयां को 10 दिनों के दौरान 20 अलग-अलग तरह के मिष्ठान्न पदार्थ उपलब्ध कराने का जिम्मा सौपा गया है. इस जरिए हर दिन मोदक प्रिय रहने वाले श्री गणेश को सुबह-शाम अलग-अलग तरह के मोदक व मिष्ठान्न अर्पित होते है. जिन्हें आरती व पूजन तथा दर्शन हेतु उपस्थित होने वाले सभी गणमान्यों के बीच प्रसाद स्वरुप वितरित किया जाता है.
* 50 वर्षों से मूर्ति निर्माण कर रहे देशमुख बंधु
– 6 अलग-अलग देशों में जाती हैं नटराज आर्ट्स की मूर्तियां
पुणे निवासी भालचंद्र उर्फ लालासाहेब देशमुख तथा राजेंद्र उर्फ बाबासाहेब देशमुख इन दो भाईयों द्बारा विगत 50 वर्षों से गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है तथा नटराज आर्ट्स देश-विदेश में दगडू शेठ हलवाई गणपति की हूबहू प्रतिकृति रहने वाली गणेश मूर्ति साकार करने हेतु विख्यात है. साथ ही साथ देशमुख बंधुओं द्बारा नटराज आर्ट्स के जरिए विभिन्न आकार-प्रकार वाली गणेश प्रतिमाएं बनाई जाती है. इन गणेश प्रतिमाओं की पुणे व आसपास के परिसर सहित हॉलैंड, इंग्लैंड, अमरीका, कनाडा, ऑस्टेलिया व फ्रान्स जैसे विदेशों के कई शहरों में अच्छी खासी मांग रहती है. जहां पर रहने वाले बाप्पा का भक्त नटराज आर्ट्स द्बारा बनाई जाने वाली गणेश प्रतिमाओं को गणेशोत्सव के लिए विशेष तौर पर पुणे से मंगवाते है और इन गणेश प्रतिमाओं की विधि विधानपूर्वक स्थापना करते हुए उनकी पूजा-अर्चना करते है. प्रतिवर्ष साढे 4 हजार से 5 हजार गणेश प्रतिमाएं बनाने वाले देशमुख बंधुओं द्बारा विगत 50 वर्षों के दौरान लगभग साढे 3 लाख से 4 लाख गणेश प्रतिमाएं बनाई जा चुकी है और वे प्रतिवर्ष 1200 से 1500 गणेश प्रतिमाएं विदेशों में भेजते है. भालचंद्र उर्फ लालासाहेब देशमुख द्बारा दी गई जानकारी के मुताबिक प्रतिवर्ष विदेश भेजी जाने वाली गणेश प्रतिमाओं में करीब 600 मूर्तियां दगडू शेठ हलवाई गणपति की होती है.
* कभी मजबूरी में शुरु किया था मूर्ति निर्माण का काम, आज उसी काम की बदौलत मिली सफलता व प्रसिद्धि
सबसे रोचक बात यह है कि, 50 वर्ष पूर्व देशमुख बंधुओं ने गणेश मूर्ति तैयार करने का काम बेहद मजबूरी में शुरु किया था. देशमुख बंधुओं के पिता श्यामराव गणपतराव देशमुख भारतीय सेना की मराठा लाइट इंफ्रेंट्री में सुबेदार थे और किसी समय राष्ट्रपति के अंगरक्षक भी हुआ करते थे. भारतीय सेना से अपनी सेवा से निवृत्त होने के उपरान्त श्यामराव देशमुख ने पुणे में रहकर ट्रान्सपोर्ट का व्यवसाय शुरु किया था. जिसमें उन्हें काफी नुकसान उठाना पडा. जीवन में कभी भी मांस व शराब का सेवन नहीं करने वाले श्यामराव देशमुख की भगवान श्री गणेश पर अगाध श्रद्धा हुआ करती थी. ऐसे में उन्होंने अपने दोनो बच्चों के साथ मिलकर घर चलाने के लिए गणेश मूर्ति तैयार करने का काम शुरु किया. उस समय देशमुख परिवार एक अपार्टमेंट के पार्किंग वाले स्थान पर रहा करता था. जहां पर तैयार की गई गणेश प्रतिमाओं को सडक किनारे स्टॉल लगाकर गणेश उत्सव के दौरान बेचा जाता था. धीरे-धीरे इस व्यवसाय में देशमुख परिवार को उम्मीद से कही अधिक सफलता मिली. जिसकी बदौलत भालचंद्र उर्फ लालासाहेब देशमुख ने एम. कॉम तथा राजेंद्र उर्फ बाबासाहेब देशमुख ने फार्मा की पदवी प्राप्त करते हुए अन्य कुछ व्यवसायों में भी हाथ आजमाया और देशमुख बंधुओं ने प्रॉपर्टी डिलिंग व इंटेरियल डिझाइनिंग के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करनी शुरु की. जिसकी बदौलत कभी पार्किंग में रहने वाले देशमुख परिवार की आज पुणे में अपनी खुद की एक से अधिक संपत्तियां है. विशेष उल्लेखनीय यह है कि, गणेश भक्ति के प्रति समर्पित श्यामराव देशमुख के दोनों बेटे और उनका परिवार भी मांस व मदिरा से कोसो दूर है तथा उच्च शिक्षित व आर्थिक तौर पर बेहद साधन संपन्न एवं सक्षम हो जाने के बावजूद भी देशमुख परिवार द्बारा प्रतिवर्ष साढे 4 से 5 हजार गणेश प्रतिमाएं तैयार करने का काम किया जाता है. सबसे खास बात यह है कि, आज नटराज आर्ट्स में दर्जनों मूर्तिकार व शिल्पकार काम करते है. लेकिन इसके बावजूद देशमुख बंधुओं द्बारा अपने हाथों से मूर्ति तैयार करने का काम किया जाता है. जिसके तहत जहां राजेंद्र उर्फ बाबासाहेब देशमुख द्बारा मूर्ति के शिल्प पर ध्यान दिया जाता है, वहीं भालचंद्र उर्फ लालासाहेब देशमुख द्बारा मूर्ति के रंगरोगन पर ध्यान देते हुए उनमें जीवंतता लाने का काम किया जाता है. विशेष तौर पर भालचंद्र देशमुख द्बारा प्रत्येक मूर्ति की आंखों को आकर्षक ढंग से कुछ इस तरह तैयार किया जाता है कि, प्रत्येक मूर्ति की आंखें सजीव दिखाई देने लगती है.
* देशमुख परिवार की तीसरी पीढी भी मूर्ति निर्माण हेतु समर्पित
50 वर्ष पूर्व आर्मी सुबेदार श्यामराव देशमुख द्बारा शुुरु किए गए मूर्ति निर्माण के इस काम में भालचंद्र एवं राजेंद्र देशमुख के साथ ही देशमुख परिवार की तीसरी पीढी भी अपना योगदान देती है. देशमुख परिवार की तीसरी पीढी से वास्ता रखने वाले धीरजसिंह राजेंद्र देशमुख आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में कार्यरत है. वहीं डॉ. श्रृतिका राजेंद्र देशमुख (पाटिल) ने बिजनेस मैनेजमेंट स्टडीज में पीएचडी प्राप्त की है. वहीं डॉ. भक्ति भालचंद्र देशमुख पेशे से निष्णात चिकित्सक है और श्रद्धा भालचंद्र देशमुख ने स्पोर्ट्स सायंस में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के साथ ही ऑस्ट्रेलिया के एक विद्यापीठ में अपनी अगली पढाई के लिए प्रवेश भी हासिल किया है. यानि कुल मिलाकर पूरा देशमुख परिवार आर्थिक रुप से साधन संपन्न होने के साथ-साथ उच्च विद्या विभूषित भी है. लेकिन इसके बावजूद अपनी जडों और संस्कारों से जुडे रहने हेतु देशमुख परिवार द्बारा किसी समय मजबूरी में शुरु किए गए मूर्ति निर्माण के कार्यों को आज भी किया जा रहा है. इस संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल के साथ बातचीत करते हुए भालचंद्र देशमुख ने बताया कि, किसी समय आर्थिक विपदा और विपरित हालात में फंसे उनके परिवार को भक्तवत्सल कहे जाते गणपति बाप्पा ने ही कृपा करते हुए उबारा और समाज में प्रतिष्ठित स्थान दिलाया. खुद गणपति बाप्पा ने ही उन्हें भक्ति मार्ग पर चलने हेतु गणेश मूर्ति निर्माण का रास्ता दिखाया. ऐसे में उनका पूरा परिवार मूर्ति निर्माण को ही गणेश भक्ति का रास्ता मानता है और विगत 50 वर्षों से इस काम को ही भक्ति मानकर करता आ रहा है. भालचंद्र देशमुख ने बताया कि, उनके परिवार सहित उनकी कार्यशाला में काम करने वाला प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह से शाकाहारी एवं निर्व्यसनी है. उनके यहां काम करने वाले व्यक्ति को काम पर नियुक्त होने के लिए सबसे पहली शर्त यहीं होती है कि, वह विशुद्ध रुप से शाकाहारी हो तथा उसे तंबाखू, बीडी-सिगरेट अथवा शराब जैसा कोई व्यसन न हो. उनकी कार्यशाला में किसी मंदिर की तरह पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाता है तथा कार्यशाला का प्रत्येक मूर्तिकार व कर्मचारी उनके लिए परिवार के सदस्य की तरह होता है. संभवत: इसी भाव के चलते उन पर भगवान श्री गणेश की विशेष कृपा व अनुकंपा रही. जिसकी बदौलत मूर्ति निर्माण के साथ-साथ अन्य सभी क्षेत्रों में सफलता व प्रसिद्धि प्राप्त हुई. मूर्ति निर्माण को लेकर जानकारी देते हुए भालचंद्र देशमुख ने यह भी बताया कि, प्रतिवर्ष गणेशोत्सव निपट जाने के बाद उनकी कार्यशाला में दशहरे के पर्व से अगले गणेशोत्सव हेतु मूर्ति निर्माण का काम शुरु किया जाता है और गणेशोत्सव से करीब 3 माह पहले काम में इतनी अधिक तेजी आ जाती है कि, रोजाना अन्य सभी कामधाम छोडकर 20 से 21 घंटे तक वे और उनके भाई राजेंद्र देशमुख पुणे की सुभाष नगर कालोनी एवं वडगांव दाहिरी स्थित अपनी कार्यशाला में ही रहकर मूर्ति बनाने का काम करते है. उनके पास गणेशोत्सव से 3-4 महिने पहले ही देश व विदेश के विभिन्न शहरों से गणेश प्रतिमाओं के ऑर्डर आने शुरु हो जाते है. जिन्हें समय पर पहुंचाने हेतु एक माह पहले से आवश्यक नियोजन किया जाता है.