अमरावती

जीवन में रोजाना स्वरुप के विवाद क्रुरता नहीं

उच्च न्यायालय का फैसला

* पति की तलाक विनंती खारिज
अमरावती/ दि.8 – जीवन में रोजाना स्वरुप के होने वाले विवाद को क्रुरता नहीं कहा जा सकता. क्रुरता बहुत ही गंभीर स्वरुप का कृत्य होता है, ऐसा मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक मामले का फैसला सुनाते समय ऐसा उल्लेख किया. पति व्दारा दायर तलाक की विनंती को अदालत ने खारिज कर दिया.
क्रुरता शारीरिक व मानसिक हो सकती है. इसके कारण जान व स्वास्थ्य खतरे में आता है. इसी तरह शारीरिक हानि पहुंचानी की होती है, जिसके कारण पति व पत्नी में से कोई भी क्रुरतापूर्वक रवैय्या करता है तो वे लंबे समय तक एकसाथ नहीं रह सकते, ऐसा अदालत ने आगे स्पष्ट किया. न्यायमूर्तिव्दय अतुल चांदूरकर व उर्मिला जोशी की अदालत ने यह फैसला सुनाया. इस मामले में पति नासिर और पत्नी नागपुर की रहने वाली है. पारिवारिक अदालत ने तलाक याचिका खारिज करने के बाद पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी, परंतु पति उसकी पत्नी की क्रुरता सिध्द नहीं कर पाया, इसके कारण उसकी अपील खारिज कर दी. हिंदू संस्कृति में विवाह को संस्कार माना गया है. विवाह के कारण दो आत्माओं का मिलन होता है, दो व्यक्ति में प्यार और आकर्षण का रिश्ता निर्माण होता हैै, ऐसा मत भी अदालत ने फैसला सुनाते हुए व्यक्त किया.

तलाक आसान नहीं
– उच्च न्यायालय के एड. अनुप ढोरे के पति व पत्नी इनमें से कोई को भी दैनिक स्वरुप के विवाद के कारण तलाक नहीं मिलेगा. इस बारे में हिंदू विवाह कानून में उल्लेख किया गया है.
– अदालत भी मामूली विवाद को महत्व नहीं देते, इसके कारण विवाह का महत्व कायम रहता है. धारा 14 के अनुसार विवाह को एक वर्ष पूरे हुए बगैर तलाक की याचिका दायर नहीं सकते, ऐसा करने के लिए पीडित पक्ष के साथ बहुत ही विवादित षडयंत्र होना जरुरी है, ऐसा भी एड. ढोरे ने बताया.

ऐसे थे आरोप-प्रत्यारोप
– इस दम्पति का 1 मई 2009 को विवाह हुआ. वे 2014 तक एक साथ रहे. इस बीच उन्हें दो बच्चे हुए. इसके बाद पत्नी मायके निकल गई. पति लगातार विवाद करता है, गालिगलौच करता, मारपीट करता, ऐसा पत्नी का कहना था.
– दूसरी ओर से पत्नी मनमिलाऊ स्वभाव की नहीं है, वह परिवार के सदस्यों के साथ अच्छा रवैय्या नहीं करती. मामूली बातों पर विवाद करती है, भोजन नहीं पकाती, परिवार की जिम्मेदारी नहीं निभाती, ऐसा पति का आरोप था.

 

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