अमरावती

तीन हजार वर्षों तक भगवान को पाने दक्ष प्रजापति ने साधना की

कथावाचक नरेशभाई राज्यगुरु का प्रतिपादन

मंगलवार को भक्तिधाम मंदिर में शिवकथा का तीसरा दिन
अमरावती -दि.24 बडनेरा रोड स्थित भक्तिधाम मंदिर में शिवकथा का आयोजन किया गया. जिसमें मंगलवार को तीसरे दिन कथावाचक नरेशभाई राज्यगुरु ने पार्वती मां की जन्म की कहाणी सुनाई कि, उन्हें क्यों शिव की शक्ति बनकर अवतरित होना पडा. वे कैसे अवतरीत हुई. शिवजी को पाने के लिए उन्होंने किस प्रकार 11 हजार वषोर्र्ं की कठिन तपस्या की कथा सती प्रागट्य उत्सव पर आधारित थी. गुरुजी ने कहा कि, वह परमात्मा और शक्ति तो व्याप्त है ही. लेकिन बलिहारी जिनके घर द्बार पर परमात्मा अवतरित होते है, वे कितने भाग्यशाली होंगे. दक्ष प्रजापिता ने 3 हजार वर्षों तक भगवान को पाने के लिए साधना की थी. उसी साधना के बल पर भगवती सती बेटी कन्या बनकर आ सकी, इसलिए साधना बहुत जरुरी है.
शास्त्र कहते हैं कि, जीवन के 40 वर्षे पूरे होते ही चलते बनो, 40 साल पूरे हो जाने पर 10 साल यानि 50 वर्षों तक प्रैक्टीस करों, 50 साल पूरे हो जाये तो, 51-52 और आगे का जीवन वन में रहने जैसा व्यथित करों, वन जैसा जीवन जीने के लिए साधू बनने की या भगवे कपडे धारण करने की आवश्यकता नहीं है, बस सफेद कपडे धारण करना ही पर्याय है. जलाराम महाराज ने भगवे कपडे नहीं पहने, वे तो सफेद वस्त्र में ही संत बन गये. मैं घर में रहूं लेकिन वन जैसा सात्विक जीवन जीवू, ऐसा संकल्प लेना आवश्यक है. 50 साल तक हम जैसा कहेंगे, वैसा हमारा शरीर करेंगा, लेकिन 50 वर्ष की आयु के बाद शरीर जैसा कहे, हमें वैसा ही करना जरुरी है, इसे आप एक प्रकार से नियम ही कह लिजीए.
परमात्मा ने बडी ही अच्छी व्यवस्था करी है की जब बच्चा पैदा होता है, तो उसके सीर पर काले बाल होते है और 50 साल के बाद जरासंध यानि वृद्धावस्था में बाल सफेद हो जाते है. जैसे खाने के पात्र में चावल आखिर में परोसा जाता है. चावल सफेद रंग का होता है. वैसे ही वृद्धावस्था जब आती है, तब हमारे पात्ररुपी शरीर में सफेद रंग का चावल यानि सिर पर सफेद बाल आने लगते है. जब तक सफेद बाल नहीं आते इस शरीर में 50 की आयु तक जितना मिठा खाना हो, खा लो क्योंकि चावल पूरा खत्म करने पर हम खाना पूरा हो गया, ऐसा मान लेते है. वैसे ही जब सफेद बाल आये तो, जान लो कि, जीवन भी थोडा ही बाकी रह गया है. भोजनरुपी जीवन जल्द ही खत्म हो जाएगा.
इसीलिए अब थोडी सी बची जिंदगी में तो भगवान का भजन करों, इतने सालों तक मैंने परिवार और समाज के लिए बहुत कुछ किया लेकिन गीता मेें भगवान कहते है कि, हमारा उद्धार हमे खुद ही करना पडेगा. मनुष्य का उद्धार करने वाला जो सार्वाधिक श्रेष्ठ साधन है, वह परमात्मा की कथा है. तेरे बीना जो उम्र बीताई, बीत गई सो बीत गई. लेकिन बाकी जो जिंदगी है, वह अपने नाम है. प्रभु ऐसी भावना जागृत होनी चाहिए, इतने दिनों में मूझसे भजन हो पाया हो, या नहीं इसकी चिंता न करके आगे वाली जिंदगी में संसार के किसी लौकिक विचार में न पडू, केवल जो आत्माधिक और अलौकिक चर्चाए है, मैं उसी का भाग बनु, ऐसा करते-करते जीवन की यात्रा को पूरा करु, ऐसी हमारी सोच होनी चाहिए. हमारी एक सीमा है. जिसके अंदर ही आपको और हमको खेलना है.
शिवकथा के माध्यम से विद्येश्वर संहिता के प्रारंभ में शौनकारी ऋषि सूतजी से कुछ सवाल करते है. क्योंकि गुरुदेव कलिकाल के जीव आसुरी व्यक्ति वाले होगे, तो कलिकाल के आदमी के कल्याण हेतू उसके श्रेय हेतू उसके परमत्व तक पहुंचने हेतू किसकी आराधना करना चाहिए ऐसे प्रश्न उन्होंने किये है, इस प्रश्न में ऋषियों का निजी स्वार्थ नहीं है, यह प्रश्न ऐसे है कि, जिनमें सबका कल्याण छिपा हुआ है और कल्याण आखिर किसको नहीं चाहिए. ऋषियों ने भविष्य का चित्र देखा है और पूरे विश्व के कल्याण की कामना की, ऐसे ऋषियों के लिए एक बार तालिया बजनी चाहिए.
शिवकथा को सुनने के लिए मंगलवार को भक्तिधाम में काफी भीड रही. शहर के 4 हजार से अधिक लोग शिवकक्षा मेें शामिल हुए. भक्तों में उर्जा संचार करते हुए गुरुजी ने ओम नम: शिवाय के जयकारे लगाये. मंगलवार को कथा सती प्रागट्य उत्सव पर आधारित थी. जिसके यजमान शीलाबेन पोपट तथा राजुभाई पोपट परिवार थे. सुबह की पूजा के दैनिक यजमान स्मिताबेन, हर्षदभाई और निरजभाई उपाध्याय रहें, पार्वती माता के जन्मों को और करीब से समझाने के लिए गुरुजी ने मार्गदर्शन में एक छोटी सी नाटीका भी पेश की. कथा समाप्ति के पश्चात महाआरती व प्रसाद का वितरण किया गया.

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