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पांढरी खानमपुर के दलित समाज बंधुओं ने छोडा गांव

बाल-बच्चों व मवेशियों सहित मुंबई लाँग मार्च पर हुए रवाना

* प्रशासन व पुलिस पर लगाया जातियता को बढावा देने का आरोप
* गांव में खुद का सामाजिक बहिष्कार होने की बात भी कही
अमरावती/दि.6- अंजनगांव सुर्जी तहसील अंतर्गत पांढरी खानमपुर गांव के मुख्य प्रवेशद्वार को भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम दिये जाने को लेकर विगत कुछ दिनों से चल रहा विवाद आज उस समय गंभीर मोड पर पहुंच गया, जब गांव में रहने वाले दलित समाज के सैकडों लोग गांव छोडकर अपने परिवार के सदस्यों तथा पालतू मवेशियों एवं घर के साजो-सामान को लेकर मुंबई जाने हेतु पैदल लाँग मार्च पर रवाना हो गये. इस समय इन आंबेडकरवादियों ने आरोप लगाया कि, गांव में रहने वाले सवर्ण समाज के लोगों ने उनका जीना दुभर कर दिया है तथा उनका सामाजिक बहिष्कार भी किया गया है. जिसके तहत अब उन्हें कोई काम नहीं देता. साथ ही उन्हें किसी भी दुकान से कोई सामान भी नहीं मिलता. ऐसे में उन्होंने अपना गांव छोड देने का निर्णय लिया है. साथ ही इन लोगों ने यह आरोप भी लगाया कि, गांव में बंदोबस्त हेतु लगाई गई पुलिस के साथ-साथ प्रशासन द्वारा भी गांव के सवर्ण समूदाय के लोगों का साथ दिया जा रहा है. ऐसे में उन्हें गांव में रहकर न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.
बता दें कि, पांढरी खानमपुर गांव की ग्रामपंचायत ने 26 जनवरी 2020 को आयोजित ग्रामसभा में यह निर्णय लिया था कि, गांव के मुख्य मार्ग पर भव्य प्रवेशद्वार बनाया जाएगा. जिसे भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम दिया जाएगा. परंतु आगे चलकर गांव में रहने वाले कुछ लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था और तब से ही यह मामला अधर में लटका हुआ है. वहीं विगत 26 जनवरी 2024 को गांव में रहने वाले आंबेडकरवादियों ने इस विषय को एक बार फिर उठाया तथा गांव की मुख्य सडक पर अस्थायी प्रवेशद्वार बनाते हुए उसे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम दिया. जिसके चलते गांव में रहने वाले दो अलग-अलग समूदायों के गुट आमने-सामने हो गये थे और गांव में तनाववाली स्थिति बन गई थी. जिसके चलते गांव में कडा पुलिस बंदोबस्त लगाया गया. तब से लेकर अब तक यथावत जारी है. इस दौरान गांववासियों ने कई बार ग्रामीण पुलिस अधीक्षक सहित जिलाधीश कार्यालय पहुंचकर अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा और मामले में हस्तक्षेप करते हुए ग्रामसभा द्वारा लिये गये निर्णयानुसार गांव में स्थायी प्रवेशद्वार बनाकर उसे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम दिये जाने की मांग उठाई. इसके बावजूद भी यह मामला अनिर्णित रहने की वजह से पांढरी खानमपुर गांव में रहने वाले बौद्ध समूदाय के लोगों ने बुधवार 6 मार्च को सामूहिक रुप से गांव छोड देने का ऐलान किया था. जिसे देखते हुए गांव में और भी अधिक कडा पुलिस बंदोबस्त बीती रात से ही लगा दिया गया था. जिसकी वजह से गांव को एक तरह से पुलिस छावनी का स्वरुप प्रदान हो गया था.
वहीं आज सुबह गांव में लगे पुलिस बंदोबस्त की फिक्र किये बिना गांव में रहने वाले बौद्ध समाज के 200 परिवारों के लोग गांव से मुंबई लाँग मार्च पर जाने हेतु निकले, जिसके तहत गांव में रहने वाले बौद्ध समाज के सैकडों महिला व पुरुष अपने साथ अपने बच्चों व साजो-सामान के साथ-साथ गाय-भैस, भेड-बकरी व कुत्ते जैसे पालतू जानवर लेकर अमरावती की ओर पैदल ही आगे बढने लगे. इन लोगों का कहना रहा कि, वे अमरावती पहुंचकर इर्विन चौराहे पर स्थित डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पुतले का अभिवादन करते हुए संभागीय राजस्व आयुक्त को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपेंगे और फिर वहां से अकोला होते हुए मंत्रालय पर जाने हेतु मुंबई के लिए पैदल ही रवाना होंगे.
पांढरी खानमपुर गांव से सामूहिक पलायन करने वाले दलित समाज के लोगों ने आरोप लगाया कि, जब से गांव में प्रवेशद्वार के नामकरण को लेकर विवाद होना शुरु हुआ है, तो अन्य समाज के लोगों ने दलित समाज के लोगों का सामाजिक बहिष्कार कर रखा है. अब गांव का कोई भी व्यक्ति दलित समाज के लोगों से किसी भी तरह का कोई लेना-देना या संबंध नहीं रखता. दलित समाज के लोगों को काम पर नहीं रखा जाता और उन्हें गांव की किसी भी दुकान से कोई सामान भी नहीं दिया जाता. इसी सामाजिक बहिष्कार से तंग आकर उन्होंने अपना गांव छोड देने का निर्णय लिया है और वे न्याय की गुहार लेकर मंत्रालय जा रहे है. जिसके लिए वे पैदल ही अपने बाल-बच्चों व पालतू जानवरों के साथ मुंबई जाने निकले है.

* प्रशासन व पुलिस महकमे में हडकंप
वहीं दूसरी ओर पांढरी खानमपुर गांव में रहने वाले दलित समाजबंधुओं द्वारा आज सबह अचानक ही सामूहिक तौर पर गांव छोड दिये जाने की जानकारी मिलते ही जिला प्रशासन एवं ग्रामीण पुलिस विभाग मेें अच्छा खासा हडकंप व्याप्त हो गया है तथा कई आला अधिकारी मुंबई लाँग मार्च पर जाने हेतु निकले. पांढरी खानमपुर के दलित समाजबंधुओं को समझाने-बुझाने हेतु पांढरी खानमपुर की ओर रवाना हुए. समाचार लिखे जाने पर पांढरी खानमपुर गांव छोडकर अमरावती की ओर रवाना हुए दलित समाजबंधु अपनी भूमिका पर अडे हुए थे. वहीं जिला प्रशासन एवं ग्रामीण पुलिस विभाग द्वारा उन्हें समझाने-बुझाने का प्रयास किया जा रहा था.

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