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ऐन लोकसभा चुनाव के मुहाने पर गरमाई दलित राजनीति

पांढरी खानमपुर गांव की वजह से तपा माहौल

* दलित नेताओं के जिला दौरे हुए तेज
अमरावती/दि.13 – हर चुनाव में राजनेताओं को किसी न किसे मुद्दे की सख्त जरुरत होती है. ताकि उस मुद्दे के जरिए जनभावनाओं को अपने पक्ष में करते हुए उससे चुनावी लाभ उठाया जा सके. इस समय अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित अमरावती संसदीय क्षेत्र में आंबेडकरी विचारधारा को मानने वाले राजनीतिक दलों व नेताओं के हाथ पांढरी खानमपुर गांव के जरिए एक ऐसा ही मुद्दा लग गया है. जिसके जरिए पूरे जिले के बौद्धों व आंबेडकरवादियों को एकजूट किया जा सकता है. यहीं वजह है कि, इस समय सभी आंबेडकरवादी नेताओं के अमरावती जिले में दौरे शुरु हो गये है. जिसके तहत जहां विगत दो दिनों के दौरान वंचित बहुजन आघाडी के मुखिया एड. प्रकाश आंबेडकर सहित रिपब्लिकन सेना के अध्यक्ष आनंदराज आंबेडकर ने अमरावती का दौरा किया. वहीं आज पीपल्स रिपब्लिकन पार्टी यानि पीरिपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जोगेंद्र कवाडे भी अमरावती जिले के दौरे पर आये हुए है. इसके साथ ही विगत लोकसभा चुनाव के बाद से लगभग राजनीतिक हाशिए पर पडे रिपाई (गवई गुट) के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. राजेंद्र गवई भी पांढरी खानमपुर की घटना के बाद काफी हद तक सक्रिय हो गये है. यानि कुल मिलाकर पांढरी खानमपुर की घटना ने ऐन लोकसभा चुनाव से पहले जिले की राजनीति में उबाल ला दिया है तथा अनुसूचित जाति हेतु आरक्षित अमरावती संसदीय क्षेत्र में इस समय पांढरी खानमपुर की घटना की आड लेते हुए दलित एवं पिछले तबके के वोटों को लामबंद किया जा सके.
बता दें कि, अंजनगांव सुर्जी तहसील अंतर्गत पांढरी खानमपुर गांव में मुख्य सडक पर प्रवेशद्वार बनाने और उस प्रवेशद्वार को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम दिये जाने की मांग को लेकर गांव के आंबेडकरी समाजबंधुओं द्वारा गांव से विगत सप्ताह सामूहिक पलायन किया गया था और विगत सोमवार को पांढरी खानमपुर गांव के आंबेडकरी समाजबंधुओं द्वारा संभागीय राजस्व आयुक्त कार्यालय पर उग्र प्रदर्शन करते हुए तोडफोड व पत्थरबाजी की गई थी. जिसके बाद पुलिस ने आंदोलनकारियों पर बलप्रयोग करने के साथ ही आंसू गैस के गोले भी दागे थे. पांढरी खानमपुर गांव में प्रवेशद्वार लगाने और खुदका नामकरण करने का यह मामला वर्ष 2020 से प्रलंबित चल रहा था. जब 26 जनवरी 2020 को पांढरी खानमपुर गावं की ग्रामपंचायत ने ग्रामसभा में इससे संबंधित प्रस्ताव पारित किया था. लेकिन उसी दौरान कोविड संक्रमण एवं लॉकडाउन का दौर शुरु हो जाने के चलते यह विषय प्रलंबित पडा रह गया था. जिसके बाद 26 जनवरी 2024 को एक बार फिर इस विषय पर ग्रामसभा बुलाई थी और ग्रामसभा में इस विषय पर दोबारा प्रस्ताव पारित किया गया. जिसके बाद 31 जनवरी को गांव में रहने वाले आंबेडकरी समाजबंधुओं ने गांव की मुख्य सडक पर लोहे से बना प्रवेश द्वार बनाते हुए उस पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का नाम लिखा हुआ बैनर लगा दिया. यह देखते ही गांव में रहने वाले अन्य समाज के लोगों ने इसका पूर्वजोर विरोध किया. गांववासियों का कहना था कि, ग्रामसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद अब तक आगे की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है और आवश्यक अनुमति भी नहीं मिली है. ऐसे में मनमाने ढंगे से लगाया गया यह प्रवेशद्वार पूरी तरह से गैरकानूनी है. जिसके बाद इस प्रवेशद्वार को हटाने की मांग जोर पकडने लगी और देखते ही देखते गांव में तनावपूर्ण स्थिति बन गई. जिसके बाद गांव में रहने वाले आंबेडकरी समाज के लोगों ने विगत 6 मार्च को गांव से सामूहिक पलायन किया और फिर संभागीय राजस्व आयुक्तालय पर हिंसक व उग्र आंदोलन हुआ. इसके साथ ही कल तक प्रसिद्धि व चर्चा से दूर रहने वाला पांढरी खानमपुर गांव अचानक ही खबरों की सुर्खियों में छा गया. साथ ही अब महज 6-7 हजार की जनसंख्या वाला पांढरी खानमपुर गांव जिले में दलित राजनीति का एक केंद्र बनता जा रहा है और यहां से राजनीतिक दलों के हाथ में एक ऐसा मुद्दा लग गया है. जिसे पूरे जिले भर में घुनाया जा सकता है.

* प्रशासन एवं पुलिस की चुप्पी भी संदेहास्पद
उल्लेखनीय है कि, अगले एक-दो दिनों में चुनावी आचार संहिता भी लगने वाली है. ऐसे में ऐन लोकसभा चुनाव के मुहाने पर हुए आंदोलन के दौरान किये गये लाठीचार्ज व आंसू गैस के गोले दागे जाने की वजह से माहौल कॉफी हद तक गर्माया हुआ है. जिसके चलते स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस विभाग भी कुछ हद तक बैकफुट पर है. शायद यहीं वजह है कि, जिस मामले में पुलिस कर्मियों पर पथराव एवं सरकारी संपत्ति की तोडफोड को लेकर 1 हजार से अधिक लोगों को नामजद किया गया है. उसमें केवल 8-10 लोगों को हिरासत में लिया गया और महज दो लोगों की अधिकारिक तौर पर गिरफ्तारी दर्शायी गई. यानि आंदोलनकारियों द्वारा किये गये पथराव की वजह से पुलिस कर्मियों के सिर फुटने के बावजूद भी पुलिस महकमा हर कदम फूंकफूंक पर उठा रहा है. वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन भी ‘क्या करें, क्या न करें’ की मानसिकता के तहत संभ्रम में दिखाई दे रहा है. ऐसे में गुजरते वक्त को हर दर्द की सबसे बेहतर दवा मानते हुए प्रशासन शायद इस मामले के थोडा पुराना होने का इंतजार कर रहा है. अन्यथा क्या वजह है कि, अब तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि, उस दिन हकीकत में किसके उकसावे पर भीड अचानक भडककर पथराव एवं तोडफोड पर उतारु हुई थी और शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे आंदोलन के हिंसक होने के पीछे कौन ‘मास्टर माइंड था’. जिसका जिक्र उस उग्र आंदोलन के तुरंत बाद जिला प्रशासन एवं पुलिस विभाग की संयुक्त पत्रवार्ता में किया गया था.

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