अमरावतीविदर्भ

डिस्चार्ज के बाद भी संक्रमितों के लिए खतरा

सर्दी, खांसी, बुखार व बदन दर्द की समस्याएं आ रही सामने

  • कई मरीज दोबारा अस्पताल में भरती, सतर्कता बरतना जरूरी

अमरावती/दि.२८ – इस समय तक अमरावती जिले में ९ हजार १६६ कोरोना संक्रमित मरीज संक्रमणमुक्त हो चुके है. जिसमें से कुछ मरीजों को सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द, कमजोरी व सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं का सामना करना पड रहा है. जिसकी वजह से कई मरीज दुबारा अस्पताल में भरती हुए है और कुछ मरीजों का उनके घरों पर इलाज चल रहा है. इन दिनों लगातार हो रही बारिश और मौसम में आये दिन हो रहे बदलाव की वजह से कोरोना संक्रमित मरीजों सहित आम लोगों को भी स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है. ऐसे में जहां एक ओर स्वास्थ्य महकमे पर काम का बोझ लगातार बढ रहा है, वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं व दिक्कते लगातार बढ रही है. ऐसे में सभी को अपने स्वास्थ्य को लेकर सतर्क रहना जरूरी है.
बता दें कि, अमरावती जिले में कोरोना का सबसे पहला मरीज विगत ३ अप्रैल को शहर के हाथीपूरा परिसर में पाया गया था. इसके बाद अगले १७२ दिनों में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढकर १२ हजार पर जा पहुंची. जिसमें से सितंबर माह में ही करीब साढे ६ हजार कोरोना संक्रमित मरीज पाये गये है. दिनों दिन कोरोना संक्रमितों की बढती संख्या को देखते हुए अब शहर सहित जिले के सरकारी व निजी कोविड अस्पतालों में बेड की संख्या कम पडने की पूरी संभावना है. ऐसे में जिला प्रशासन ने दो पर्यायों पर काम करना शुरू किया है. जिसके तहत जहां एक ओर नये अस्पतालों की व्यवस्था उपलब्ध कराते हुए बेड की संख्या बढाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर एसिम्टोमैटिक मरीजों के इलाज की कालावधि कम करने के साथ ही उन्हें होम आयसोलेशन के तहत रखा जा रहा है, लेकिन होम आयसोलेशन के तहत रखे गये मरीजों पर स्वास्थ्य विभाग की कोई नजर रहती और ऐसे मरीज अपने आप को कोविड मुक्त समझकर किसी भी प्रतिबंध का पालन नहीं करते. जिसकी वजह से उनमें कोरोना संक्रमण के लक्षण तीव्र होने की संभावना रहती है. साथ ही उनकी वजह से अन्य लोगों के कोरोना संक्रमित होने का खतरा भी होता है.
अब तक के अनुभव को देखते हुए कहा जा सकता है कि, एसिम्टोमैटिक करार दिये जाने के बाद होम आयसोलेशन के तहत रखे गये कई मरीज दोबारा कोरोना संक्रमित पाये गये है और सर्दी, खांसी, बुखार, बदन दर्द व कमजोरी की तकलीफ होने की वजह से कई लोग अस्पताल में भी भरती हुए है.

होम आयसोलेशनवाले मरीजों की हो रही अनदेखी

जिले में करीब डेढ हजार मरीजों ने होम आयसोलेशन की सुविधा का लाभ लिया है. इन मरीजों को दिनभर के दौरान दो बार फोन करते हुए स्वास्थ्य महकमे द्वारा अपना कर्तव्य पूरा किया जाता है. इसके अलावा होम आयसोलेशन व होम कोरोंटाईन मरीजों की ओर प्रत्यक्ष ध्यान देने की फुरसत स्वास्थ्य महकमे को नहीं है. जिसके चलते ऐसे कई मरीज घर पर रहने की बजाय खुलेआम बाहर घुमते देखे गये है. साथ ही खुद में अब भी कोरोना का संक्रमण है अथवा नहीं, यह देखने के लिए कई मरीजों ने दोबारा अपने थ्रोट स्वैब सैम्पल दिये. जिसके बाद उनकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव आयी है. जिसके चलते ऐसे मरीजों के आयसोलेशन की अवधि को बढाया गया है.

यह है डिस्चार्ज देने का नियम

कोरोना संक्रमण के शुरूआती दौर में सभी मरीजों को पंद्रह दिनों तक अस्पताल में इलाज के लिए भरती रखा जाता था. पश्चात उनकी अगली तीन रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही उन्हें डिस्चार्ज दिया जाता था. इसके पश्चात तीन माह पूर्व इस नियम में कुछ फेरबदल करते हुए कोरोना संक्रमित मरीजों का पांच दिन इलाज करते हुए उन्हें अगले पांच दिनों तक निरीक्षण में रखा जाने लगा और निरीक्षण के दौरान कोई लक्षण दिखाई नहीं देने पर डिस्चार्ज दिया जाने लगा. वहीं इन दिनों मरीजों की संख्या लगातार बढने की वजह से एसिम्टोमैटिक मरीजों को सात से आठ दिन में ठीक महसूस होने और उनमें कोरोना के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देने और डिस्चार्ज दिया जाता है. और अगले १४ दिनों तक होम आईसोलेशन में रखा जाता है.

सतर्कता बरतना महत्वपूर्ण

होम आयसोलेशन के दौरान खून में ऑक्सिजन का प्रमाण तथा हृदयगति की नियमित जांच करना, खून को पतला रखने हेतु डॉक्टरों की सलाह से दवाई लेना, शारीरिक व श्वसन संबंधी व्यायाम करना, दम फुलने व सांस लेने में तकलीफ होने पर डॉक्टरों की सलाह लेना, प्रथिनयुक्त पोषक आहार लेना, समय पर भोजन व निंद लेना, साथ ही जीवनशैली में आवश्यक व सुयोग्य बदलाव करना, पोस्ट कोविड मैनेजमेंट के लिहाज से बेहद जरूरी व महत्वपूर्ण है. इसके अलावा किसी भी तरह की तकलीफ होने और कोरोना सदृश्य लक्षण पाये जाने पर नजदिकी स्वास्थ्य केंद्र या अपने फैमिली डॉक्टर से मिलकर उनकी सलाह लेना बेहद जरूरी है, ऐसी जानकारी स्वास्थ्य महकमे द्वारा दी गई है.

कुछ लोगों के फुफ्फुसों में स्थायी तौर पर बदलाव होते है और फायब्रोसिस की वजह से मानवी अवयवों की इलॅस्टिसिटी खत्म हो जाती है. जिसकी वजह से इन अंगोें तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन नहीं पहुंचता. जिसकी वजह से लंबे समय तक कमजोरी रहती है और सांस लेने में काफी तकलीफ होती है.
– रियाज फारूकी उपसंचालक, स्वास्थ्य सेवा

डिस्चार्ज के बाद भी करीब ३० फीसदी मरीजों में कुछ लक्षण पाये जाते है और उनकी रिपोर्ट दुबारा पॉजीटिव आती है. इसमें डेड वायरस रहने के चलते संक्रमण की संभावना कम होती है. ऐसे में कम से कम १० दिनों के आयसोलेशन व ७ दिनों के कोरोंटाईन की अवधि रहनी चाहिए.
– डॉ. अनिल रोहणकर जिलाध्यक्ष, आयएमए

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