एक-दूसरे पर पटाखे फोड़ने की जानलेवा परंपरा
तिवसा में गाय-भैस के खेल में सैकड़ों साल से चलता आ रहा है यह रोमांच
तिवसा/दि.27- शहर में दिवाली के दूसरे दिन मकाजी बुवा का पूजन कर मुख्य बाजारपेठ वाले परिसर में गाय और भैसों को खिलवाने की सैकड़ों वर्षों की परंपरा है. लेकिन मंगलवार को सूर्यग्रहण रहने से यह खेल बुधवार को आयोजित किया गया. शहर के कुछ उत्साही लोग इस खेल का आयोजन करते हैं. गाय, भैस और नागरिकों की भीड़ में एक-दूसरे पर पटाखे फोड़ने की जानलेवा परंपरा है. इसमें अनेक लोग घायल होते हैं.
चार दिन मनाये जाने वाले इस दिवाली उत्सव में गवलन का नृत्य और गाय, भैसों का औक्षण कर पूजन किया जाता है. चालू वर्ष का महत्व का त्यौहार दिवाली रहने से यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. लेकिन तिवसा शहर में सैकड़ों साल से काफी निर्दयता से गाय-भैसों के खेल का आयोजन कर इस भीड़ में एक-दूसरे के शरीर पर पटाखे फोड़ने की जानलेवा परंपरा आज भी शुरु है. शहर के पुराने नगरपंचायत कार्यालय के सामने स्थित बड़ के पेड़ के नीचे मकाजी बुवा की प्रतिमा है. दिवाली के दूसरे दिन इस प्रतिमा का पूजा कर यहां पर गाय और भैसों की दौड़ स्पर्धा ली जाती है. इस परंपरा को दो वर्ष तक कोरोना के प्रादूर्भाव के चलते पाबंदियों के कारण ब्रेक लगा था और इस वर्ष दिवाली के दूसरे दिन सूर्यग्रहण रहने से बुधवार को तीसरे दिन गाय-भैस के इस खेल में शहर के उत्साही युवक व नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हुए थे. शहर के पुराने नगरपंचायत कार्यालय के सामने मैदान में गांव के पशु पालक अपने पालतु मवेशी यहां लाते हैं और खेल खेलने लगाते हैं. यह खेल देखने के लिए नागरिकों की भारी भीड़ उमड़ती है. पटाखों की आतिषबाजी करने के चक्कर में अनेक युवक जख्मी भी होते हैं और घटनास्थल पर कुछ समय के लिये तनाव भी निर्माण होता है. तिवसा शहर की जानलेवा यह परंपरा बंद हो, ऐसी मांग होने लगी है.
कानून व सुव्यवस्था का प्रश्न होता है निर्माण
गाय-भैसों के इस खेल के दौरान सर्वाधिक पटाखों की बिक्री की जाती है. शहर के अनेक उत्साही युवक यहां इकट्ठा होकर एक-दूसरे पर कुछ दूरी से पटाखें फेंकते हैं. अनेक लोग इसमें घायल भी होते हैं. इसी कारण मामूली विवाद होते हैं और कानून व सुव्यवस्था का प्रश्न भी निर्माण होता है. इस कारण अब धीरे-धीरे यहां होने वाले खेल में गाय और भैसों की संख्या कम होने लगी है.