अमरावती प्रतिनिधि/दि.४ – आनेवाले १७ से २० नवंबर के मध्य आसमान में चार दिनों तक लोगों को दीपोत्सव का नजारा देखने को मिलेगा. यह दीपोत्सव ऐसा रहेगा जिसमें बादल पूरी तरह से आसमानी तारों से जगमगायेंगे और उल्का वर्षाव भी होगा. जिसे सिंह तारका समूह का उल्का वर्षाव कहा जाता है और इस वर्षाव का नाम ‘लिओनिड्स’ है.
अंधेरी रात में आकाश का निरीक्षण करते समय एकातबार कुछ ही क्षण में प्रकाश रेखा चमककर जाते समय दृष्टि ही गिरती है. इस घटना में तारा टूटा, ऐसा कहा जाता है.सही तौर पर प्रकाश रेखा दूसरे तारे की नहीं होती.वह एक आकाश में घटनेवाली खगोलीय घटना है. तारा कभी भी टूटता नहीं है. इस घटना को उल्का वर्षाव ऐसा कहा जाता है.
१७,१८,१९ नवंबर की पहाटे उल्का वर्षाव की संभावना अधिक रहेगी. उल्का वर्षाव की तीव्रता निश्चित तारीख, समय यह बाते विस्तार से बता नहीं सकते. निरीक्षण की तैयारी और सोशिकता रहने से उल्का देखने का प्रयास करे.
धूमकेतू सूर्य की प्रदक्षिणा करते समय वहां का कुछ भाग खुला रहता है. यह धूमकेतु से पीछे डाला गया अवशेष है.
यह उल्का एखाद तारीख समूह से आता है, ऐसा लगता है. घंटे में ६० अथवा उसमें से अधिक उल्का आकाश में एखाद भाग से गिर सकता है. तो उसमें उल्का वर्षाव ऐसा कहा जाता है.
कई बार गतिशील उल्का पृथ्वी के वातावरण से नीचे आते समय घने तौर पर पृथ्वी पर आते है. तब उसे’अशणी’
ऐसा कहा जाता है. उल्का शास्त्र में अशनी का स्थान बहुत बड़ा है.
विशेष यह कि बाह्य अवकाश में वस्तु का नमूना इस अशनी के कारण अपन को मिलते हैे. जिसके कारण वस्तु की जडघडण का अर्थ अपन लगा सकते है.
उल्हा संदर्भ में ऐसी अंधश्रध्दा को खगोलीय शास्त्र में कही आधार नहीं है. सिंह तारका समूह में होनेवाला यह उल्का वर्षाव टेम्पलटटल इस धूमकेतू ३३ वर्ष में सूर्य को भेट देता है. इस खगोलीय घटना की ओर सभी का ध्यान लगा है.
उल्का वर्षाव सीधी आंखों से आधीरात के बाद घर की छत पर से शहर के बाहर से अंधेरे में देखा जा सकता है.सभी खगोल प्रेमी व जिज्ञासू ने उल्का वर्षाव के विलोभनीय दृश्य अवश्य देखे, ऐसा आवाहन मराठी विज्ञान परिषद अमरावती के हौशी खगोल अभ्यासक विजय गिरूलकर व प्रवीण गुल्हाने ने किया है.