लंपी के प्रकोप के कारण बकरे के मटन की मांग बढी
बकरों की संख्या कम रहने से प्रजनन में भी आ रही पशु पालकोें को दुविधा
अमरावती/दि.5- अगस्त माह से महाराष्ट्र राज्य सहित अमरावती जिले में लंपी रोग का प्रकोप जारी हैं. जिस कारण मटन खाने के शौकिनों का झुकाव बकरों के मटन पर बढ गया हैं. जिससे बकरों की संख्या कम हो रही हैं इसका परिणाम प्रजनन पर होता दिखाई दे रहा हैं.
राज्य में लंपी रोग के कारण अगस्त माह से ही सभी पशुओ के बाजार बंद कर दिए गए हैं. जो तीन माह से बंद ही हैं, बाजार बंद रहने के कारण अवैध मार्ग से पशुओं को ले जाना अभी भी जारी हैं. इस दौरान अनेकों पर पुलिस कार्रवाई भी हुई हैं. लेकिन लंपी के प्रकोप के कारण गोमांस खानेवालो का झुकाव बकरे के मटन की तरफ बढ गया हैं. इस कारण जिले में बकरों की संख्या तेजी से कम हो रही है और इसका परिणाम ग्रामीण इलाकों में प्रजनन पर दिखाई देने लगा हैं. मनपा क्षेत्र में आने वाले अमरावती और बडनेरा शहर में हर सप्ताह सैकडों बकरे कट रहें हैं. साथ ही विदर्भ से आंध्र प्रदेश के बाजारों में बकरे भारी मात्रा में बिक्री के लिए ले जाए जाते हैं. विशेषकर हैदराबाद के बाजार में यहां से बकरे बडी संख्या में बिक्री के लिए जाते हैं. लंपी के कारण मटन का स्वाद चखने वाले लोगों का झुकाव बकरे के मटन की तरफ अधिक बढा रहने से जिले में बकरों की संख्या तेजी से कम हो रही हैं. इसी का असर अब प्रजनन पर हो रहा हैं. प्रजनन के लिए लोगों को बकरों की तलाश करनी पड रही हैं.
जिनके पास भेड उन्हीं के पास प्रजननक्षम बकरे उपलब्ध
जिन किसानों के पास भेडों का कारवा रहता है उन्हीं के पास प्रजननक्षम बकरें उपलब्ध रहते हैं. लेकिन उनकी बकरियों की प्रजनन क्षमता पर परिणाम दिखाई दे रहा हैं. अधिक आयु के बकरे प्रजनन के लिए उपयोगी रहते हैं. लेकिन 3-4 माह के बकरों की बडी मांग रहने से किसानों के पास प्रजननक्षम बकरे बचते नहीं हैं. चार माह के आयु के बकरोें का औसत वजन 13 से 14 किलो रहता है उसे 7 हजार बचने पर मिलते हैं. वर्तमान में बकरे का मांस बाजार में 600 रुपए प्रति किलो बिक रहा हैं. हर सप्ताह सैकडों बकरों की कटाई हो रही हैं.
जिले में 2 लाख भेड
अमरावती जिले में करीबन 2 लाख भेड हैं. लंपी रोग के कारण विशेष वर्ग के लोग ही जो गोमांस खाते थे वह पोल्ट्री फार्म जिले मेें कम होने से मुर्गियों की संख्या कम होने और चिकन समय पर न मिलने के कारण बकरे के मटन की तरफ बढने लगे हैं. इस कारण बकरों की मांग बढी हैं. जिले में वैसे देखा जाए तो बकरों की संख्या कम नहीं हैं. बाजार बंद रहने से मटन विक्रेताओं को ग्रामीण क्षेत्र में बकरे खरीदने आना पडता हैं. अनेकों को परेशानी होती होगी इस कारण शहरी इलाकों में इसकी संख्या कम जान पडती हैं.
– संतोष महात्मे, अध्यक्ष मेंढपाल धनगर विकास मंच