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रोज 15 किलो है चांदी वरक की डिमांड

राजस्थानी कारीगर अजीज भाई से बातचीत

* 500 वर्षों से पुश्तैनी धंधा
* अमरावती में सोने से सजा रहे गरुड ध्वज स्तंभ
* बनाने की विधी एक समान
अमरावती/दि.27 – भारत के लोग प्राचीन काल से ही खानपान के शौकीन रहे हैं. मध्यकाल मेें चांदी और सोने की वरक लगे पकवान का प्रचलन हुआ. जो आज तक बदस्तूर है. आज भी अकेले जयपुर हवा महल ऐरिया में हमारे वर्क साज के मोहल्ले से प्रतिदिन 15 किलो चांदी की वरक की विक्री होती है. दिवाली और त्यौहारी सीजन में यह डिमांड बेशक बढ जाती है. ऐसी जानकारी चांदी और सोने की वरक के निष्णांत कारीगर मो. अजीज और इमरान भाई ने दी. यह दोनोंं कारीगर अपने साथियों के संग गत सप्ताह भर से वसंत चौक के पास स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में गरुड ध्वज स्तंभ पर सोने की वरक हेतु काम कर रहे हैं. अमरावती मंडल से खास बातचीत में इन दोनों कारीगरों ने अपने मेहनतकश कारीगरी के बारे में विस्तार से बतलाया.
* बडा श्रमसाध्य है काम
पीढियों से जयपुर के हवा महल के पास राजा मानसिंह द्बारा दी गई मोहल्ले की जमीन पर सोने और चांदी के वरक का काम यह कारीगर कर रहे हैं. मो. अजीज के अनुसार एकदम शुद्ध धातु लेकर काम करना होता है. थोडी भी मिलावट रहने पर वरक नहीं बन पाता. चांदी हो या सोना पहले टिकली बनाकर उसे घंटों खास कागज की बुक में रखकर कूटना पडता है. तब जाकर आधा इंच का वर्ग 4 से 6 इंच बडी मुश्किल से बन पाता है. वर्ग बनाने में घर की महिलाए भी हाथ बंटाती है. मगर जर्मन पेपर की बुक में रखकर उसे और चौडा तथा और चौडा बनाने के लिए लगातार कूटने के लिए सिद्ध हस्त कारीगर ही उपयोगी पडते हैं.
* राजा मानसिंह ने बसाया
मो. अजीज के अनुसार उनके पुरखों को राजा मानसिंह ने सैकडों बरस पहले जयपुर के हवा महल क्षेत्र में बसाया और सोने-चांदी के वरक का काम करने का हुक्म दिया. तब से कोई 8वीं, 10वीं पीढी हो गई, यहीं कारीगरी चल रही है.
* दिवाली पर खपत अधिक
चांदी की वरक का मुख्य रुप से मिठाई को सजाने में उपयोग होता है. दिवाली, होली जैसे त्यौहारों और विवाह प्रसंगों के समय खपत बढ जाती है. वरक 6 बाय 4 इंच, 5 बाय 7 इंच, 3 बाय 5 इंच जैसे अलग-अलग आकार में और ऑडर के हिसाब से तैयार की जाती है.
* 3500 लोगों का रोजगार
इमरान भाई ने बताया कि, हमारे परिवार के सभी लोग अनेक शतकों से यहीं काम कर रहे है. इस काम से उन्हें संतुष्टि मिली है. दूसरे क्षेत्र में जाने की भी नहीं सोची. उन्होंने बताया कि, सोने की वरक के लिए इराक, इरान, यूएई और अन्य देशों से बुलावे आते है. वहां प्रार्थना स्थलों पर कई मन सोने के वरक लगाकर सजाया है. अभी भी 3500 लोगों से अधिक को इस काम में रोजगार मिला है. हालांकि मजदूरी सीमित है. टांका नहीं लगता. खालिस सोने और चांदी का काम होता है. यहीं बडे संतोष की बात है. देश के अन्य भागों कानपुर, कोलकत्ता में भी यह काम होता है.

* बिल्कुल शुद्ध रुप से बनती है वरक
सोना हो या चांदी, इसकी वरक बहुत पवित्र रुप से बनती है. इसके बारे में प्रचलित धारणाओं को खारिज करते हुए इमरान भाई ने कहा कि, शुद्धता के बगैर कीमती धातु आकार नहीं लेती. इसीलिए थोडी महंगी भी मालूम पडती है. चांदी की वरक लगी मिठाई खाने से सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पडता. बल्कि कई मामलों में दवाई में भी चांदी-सोने का उपयोग होता है.

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