रक्त आधान पर कानून की संसद में उठी मांग
रक्तदान समिति के अजय दातेराव ने किया स्वागत
* फिब्डो के सतत प्रयासों का परिणाम
* खून का धंधा करने वालों पर आएगा अंकुश
अमरावती/दि.29- फेडरेशन ऑफ इंडियन ब्लड डोनर्स ऑर्गनाईजेशन (फिब्डो) के सतत प्रयासों से अंततः देश की संसद में राष्ट्रीय रक्त आधान कानून बनाने की मांग सांसद भर्तृहरि महताब ने उठाई लोकसभा में नियम 377 के तहत महताब ने लोकहित का मुद्दा उठाया. यह प्रस्तावित कानून देश में रक्त आधान सेवाओं को संपूर्ण देश में विनियमित और मॉनिटर करने में सहायता मिलने की जानकारी अमरावती रक्तदान समिति के अजय दातेराव ने दी. उन्होंने बताया कि फिब्डों की 6 सदस्यीय कार्यसमिती में वे सदस्य हैं. फिब्डो ने समस्त सांसदों को इस बारे में कानून बनाए जाने के लिए पत्र भेजे थे. अमरावती के सांसद बलवंत वानखडे और राज्यसभा सदस्य डॉ. अनिल बोंडे को भी यह पत्र दिया गया था. जिसमें खून बेचने वाले अथवा प्राईवेट रक्त पेढी की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए देश में कानून की आवश्यकता पर बल दिया गया था.
यह भी उल्लेखनीय है कि फिब्डो लगातार रक्त आधान कानून की आवश्यकता पर बल देता आया है. उसकी कार्यकारी समिती और कार्यकारिणी ने इस दिशा में सांसदों से मिलकर अनुरोध किया. अब जाकर कार्य संचालक प्रक्रिया नियम 377 के तहत सांसद महताब ने सरकार का तुरंत ध्यान आकर्षित करते हुए इस आवश्यक विषय पर ध्यान दिलाया. जिससे इस बारे में कार्यवाही सुनिश्चित हो गई है.
दातेराव ने बताया कि फिब्डो के प्रयासों से स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहन मिलेगा. अनैतिक प्रथाओं पर रोक लगेंगी. फिब्डों ने अपने मिशन को जारी रखने की बात कही. कहा कि यह सफलता अंतरिम है. जब तक प्रस्तावित कानून हकीकत न बन जाए, तब तक प्रयत्न जारी रहेंगे. फिब्डो चाहता है कि ऐसे भविष्य की ओर काम करें. जहां रक्त आधान सेवाएं नैतिक, सुरक्षित और सभी के लिए सुलभ हों.
पाकिस्तान में है ऐसा कानून
रक्तदान समिती के प्रमुख पदाधिकारी अजय दातेराव ने बताया कि भारत में ऐसा कोई कानून अब तक नहीं है. जिसके कारण खून को लेकर कोई बदमाशी करता है, खरीद-फरोख्त करता है तो नियमानुसार उसके लिए सजा का प्रावधान नहीं है. इसलिए कानून की आवश्यकता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि खून चढाने से पहले उसके टेस्ट आदि के नियम बने हैं. किंतु कानून नहीं होने से कोई कल्प्रीट को सजा नहीं मिल पाती थी. उन्होंने बताया कि पाकिस्तान जैसे देश में भी ऐसा कानून है. जबकि भारत में अब तक ऐसे कानून की आवश्यकता रहने पर भी नहीं बना था.