अमरावतीमहाराष्ट्र

घुइखेड से पंढरपुर पैदल यात्रा का प्रस्थान

संत बेंडोजी बाबा पालकी की 135 वर्षो की परंपरा

* 21 जुलाई तक पहुंचेगी पंढरपुर
चांदुररेलवे/दि.7 आषाढी यात्रा एक बडी यात्रा है. आषाढी एकादशी पैदल वारी का आयोजन चांदुर रेलवे तहसील के घुईखेड स्थितश्री बंडोजी बाबा संस्थान की ओर से किया गया है. यह वारी चलते हुए बजाते गूंजते हुए भजन कीर्तन, भारूड करते हुए धूप को शरीर पर फूलों के जैसे झेलते हुए पंढरपुर के लिए सैकडों भाविक भक्तों सहित मंगलवार 4 जून को रवाना हुई. यह दिंडी 21 जुलाई को पंढरपुर पहुंचेगी.
सर्वप्रथम श्री बेंडोजी महाराज की पादुका का जलाभिषेक मंदिर के ट्रस्टी विश्वस्त प्रवीण घुइखेडकर के हाथों किया गया. तलेगांव दशासर के थानेदार रामेश्वर धोंडगे के हाथों पूजन किया गया.
इस समय पुरूषोत्तम महाराज तायडे, सारंग महाराज ढोरे, केशवानंद महाराज चवरे, प्रथमेश महाराज गिरी, तलेगांव पुलिस स्टेशन के कर्मचारी विजयसिंह बघेल, सचिव गायधने, विनोद राठोड,अंकुश पाटिल व महिला पुलिस कालमेघ आदि प्रमुखता से उपस्थित थे.
नित्य नियमानुसार गांव की चंद्रभागा नदी की ओर दिंडी ने प्रस्थान करते हुए आगे मार्गक्रमण किया. लाखों भक्तों के श्रध्दास्थान श्री संत बेंडोजी महाराज (संजीवनी समाधि) की 47 दिन की पैदल दिंडी में घुईखेड सहित आसपास के गांवों के भक्त घर- संसार, सुख- दुख, बीमारियां सभी भुलाकर सहभागी हो गये. सैकडों वारकरी किसी का भी पत्र आमंत्रण की प्रतीक्षा न कर सब कामों को बाजू में रखकर अथवा पूर्ण कर वारी जाने के लिए तैयार हो गये थे. कोई भी चिंता न रखकर, सभी उस माउली पर सौंपकर आषाढ माह में तैयार होकर यात्रा निकली.भक्त मंडली घुईखेड से प्रस्थान से लेकर पंढरी तक चलते हुए लगातार उस माउली का नाम लेते हुए भजन कीर्तन करते हुए वारी में सहभागी हुए.खुली हवाओं में, घाट के मार्ग से, खुले जंगल से, झाडियों से भक्त दिंडी में निकले. निसर्ग का पूरा आनंद वारी में लगातार लेेते है. नये लोग नई पहचान, नई कला अनुभव करने मिलती है. इस वारी से भक्तों के पूरे शरीर की सर्विसिंग हो जाती है.
श्री संत ज्ञानेश्वर माउली पालकी समारोह की श्री ज्ञानेश्वर माउली रथ के पीछे रहनेवाली 21 सम्मान की दिंडियों मेें से श्री संत बेंडोजी महाराज संस्थान, घुईखेड की दिंडी का 17 वां नंबर है और इस रथ के पीछे विदर्भ से जानेवाली घुईखेड की यह एकमात्र दिंडी है. श्री संत बेंडोजी महाराज संस्था वर्ष 1337 की है. यह वस्तु बहुत प्राचीन होने का इतिहास दर्शाती है. इस पैदल दिंडी समारोह की वारकरी संप्रदाय की परंपरा 135 वर्षो से लगातार चली आ रही है. 21 वीं सदी में भी पैदल दिंडी समारोह की प्रथा आज भी अखंड सफलतापूर्वक हा रही है. 4 जून को घुईखेड से निकली हुई दिंडी 17 जून को पैठन पहुंचेगी. 18 जून को श्रीक्षेत्र पैठण से दिंडी का प्रस्थान होगा. 28 जून को आलंदी में पहुंचेगी. 29 जून को आळंदी से दिंडी का प्रस्थान होगा. 21 जुलाई को पढंरपुर पहुंचेगी. इसी दौरान अनेक गांवों में दिंडी के रूकने की नाश्ता, चाय व भोजन की व्यवस्था की गई है.

22 जुलाई को विणेकरों का पंढरपुर काला के बाद दिंडी वापसी की यात्रा में आलंदी की ओर रवाना होगी. इस समारोह में नदंकिशोर काकडे, संजय काकडे, राजाभाउ चौधरी, प्रशांत घुईखेडकर, दादाराव क्षीरसागर, पांडुरंग भोयर, विश्वेश्वर गावंडे, घड्डीनगर महाराज, कुणाल सिंगलवार, प्रतीक येवले, प्रफुल्ल चनेकार, शरद गुल्हाने, लखपती मेश्राम, किशोर येवल, अभिजीत काकडे, मुकुंद काकडे, गजानन फिस्के, उत्तम गावंडे, यशवंत काकडे,अनिल शेंडे, मधु बोबडे, संजय चनेकार, निलेश लाड, कैलास सावनकर, बबन कोठाले, बालू मिर्चापुरे आदि सहित परिसर के सैकडों भक्त सहभागी हुए थे.

* 910 किमी का पैदल सफर
घुईखेड से पंढरपुर तक ऐसा पूरा 910 किमी का पैदल सफर यह वारी करनेवाली है. जबकि विणेकरों के साथ आलंदी का 260 किमी का अलग पैदल सफल भी होनेवाला है.

 

 

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