अमरावती

रंगेहाथ पकडे जाने के बावजूद भी 203 रिश्वतखोर नौकरी में!

राजनेताओं व वरिष्ठों की मर्जी के चलते बचे हुए है निलंबन से

* चोर रास्ता खोजकर सुविधापूर्ण अभिप्राय देने के मामले बढ रहे
अमरावती /दि.29– रिश्वत लेने के मामले में पकडे गए और कार्रवाई का सामना कर रहे सरकारी कर्मचारियों को विभागांतर्गत जांच के बाद सेवा से निलंबित कर दिया जाता है. लेकिन जारी वर्ष के दौरान राज्य सरकार की सेवा में रहने वाले 203 अधिकारी व कर्मचारी भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग की सिफारिश के बाद भी निलंबन की कार्रवाई से सही सलामत छूट गए है. जिसके लिए संबंधित विभागों के लिए सुविधापूर्ण कारण बताए जा रहे है. वहीं राजनीतिक वरदहस्त तथा प्रशासकीय वरिष्ठों की मर्जी के चलते ‘एसीबी’ के जाल में फंसे घुसखोरो को अभय मिल रहा है.
बता दें कि, रिश्वत मांगने वाले सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को ऐसे मामले में पकडने के बाद अपराध दर्ज करते हुए गिरफ्तार किया जाता है. जिसके पश्चात उनके विभाग को रिपोर्ट भेजकर उन्हें निलंबित करने की सिफारिश की जाती है. जिसके पश्चात संबंधित विभाग द्वारा घुसखोर अधिकारी या कर्मचारी को निलंबित करते हुए आगे की जांच करना अपेक्षित होता है. परंतु कई मामलों में ऐसे रिश्वतखोर अधिकारी व कर्मचारियों पर विभागांतर्गत निलंबन की कार्रवाई ही नहीं की गई, ऐसा ‘एसीबी’ के आंकडों से पता चलता है. जारी वर्ष में 1 जनवरी से 6 नवंबर तक भ्रष्टाचार के मामलों में पकडे जाने के बाद निलंबित नहीं किए गए आरोपी लोकसेवकों की संख्या 203 है. जिनमें वर्ग-1 के 16 व वर्ग-2 के 28 अधिकारियों तथा वर्ग-3 के 30 व वर्ग-4 के 7 कर्मचारियों सहित अन्य 72 लोकसेवकों का समावेश है. ऐसे मामलों में ज्यादातर समय अपर्याप्त मनुष्यबल व काम के बोझ के वजहों को आगे करते हुए भ्रष्टाचार के मामलों में पकडे गए अधिकारियों व कर्मचारियों के निलंबन को टाला जाता है. ऐसे घुसखोर लोकसेवकों को निलंबन करने का अधिकार सक्षम अधिकारी के पास रहता है. परंतु पंचनामे में रहने वाले कमजोर मुद्दों के साथ ही पूरे मामले का अध्ययन करने के बाद अपने लिए सुविधाजनक रहने वाली बातों के आधार पर भाग निकलने व बच निकलने के रास्ते खोजे जाते है तथा सुविधाजनक अभिप्राय लिखा जाता है, ताकि निलंबन की कार्रवाई को टाला जा सके. इसके साथ ही संबंधित लोकसेवक के खिलाफ अदालत में दोषारोप पत्र दाखिल करते समय संबंधित विभाग की सक्षम मंजूरी आवश्यक रहती है. परंतु ऐसी मंजूरी नहीं मिलने की वजह से कार्रवाई में विलंब होता है. ऐसा एसीपी के सूत्रों का कहना है.

* भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग द्वारा रिश्वतखोरी के मामलों में कार्रवाई किए जाने के बाद संबंधित विभाग को उसके बारे में जानकारी दी जाती है तथा सरकारी निर्णयानुसार कार्रवाई की जाती है. जिसके साथ भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग का कोई संबंध नहीं होता.
– मनोज नेर्लेकर,
अपर पुलिस अधीक्षक,
भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग

* मर्जी का मामला
घुसखोरों पर योग्य कार्रवाई नहीं होने के पीछे कई बार सक्षम अधिकारियों की मर्जी आगे आ जाती है. आर्थिक व व्यक्तिगत हितसंबंध, मनमाना कामकाज और राजनीतिक वरादहस्त आदि बातों का प्रयोग करते हुए घुसखोर अपने आप को ऐसे मामलों से छूडा लेते है.

* विभाग द्वारा की जाती है टालमटोल
दोषसिद्ध होने के बाद अदालत में सजा सुनाए जाने के बावजूद भी 16 लोगों को सरकार द्वारा बचाने का काम किया गया है और ऐसे लोगों को सेवा से निलंबित व निष्कासित नहीं किया गया है. जिनमें 5 अधिकारियों सहित 11 कर्मचारियों का समावेश है. कार्रवाई टालने के मामले में ग्रामविकास अधिकारी (जिला परिषद व पंचायत समितियां) सबसे आगे है और इस विभाग के 59 भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों पर अब भी निलंबन की कार्रवाई नहीं हुई है. इसके अलावा शिक्षा व क्रीडा क्षेत्र के 49 अधिकारी व कर्मचारी भी अब तक सरकारी सेवा में बने हुए है.

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