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मेलघाट सेल रहने के बावजूद 6 माह के बच्चे को गवानी पडी जान

स्वास्थ्य महकमें की लचर कार्यप्रणाली का एक और उदाहरण सामने

* शव ले जाने के लिए माता-पिता को नहीं मिली सरकारी एम्बुलेंस
* समाज सेवकों व संगठनों ने निजी अस्पताल का चुकाया बिल
अमरावती/दि.13 – आदिवासी बहुल मेलघाट में स्वास्थ्य महकमें के लचर कामकाज और सुस्त रवैये की आए दिन कोई न कोई कहाणी सामने आती रहती है. जिसका खामियाजा क्षेत्र के आदिवासी विशेषकर गर्भवती व नवप्रसूता महिलाओं एवं छोटे बच्चों को भुगतना पडता है. ऐसा ही एक मामला अभी हाल फिलहाल में सामने आया है. जब चिखलदरा तहसील अंतर्गत सोनापुर गांव में रहने वाले प्रमोद धुर्वे नामक महज 6 माह के बच्चे की ऐसी ही लापरवाहियों के चलते मौत हो गई और मौत के बाद भी इस बच्चे के माता-पिता की परेशानियां खत्म नहीं हुई. क्योंकि उन्हें अपने बच्चे का शव गांव ले जाने हेतु सरकारी एम्बुलेंस नहीं मिली. ऐसे में कुछ समाजसेविओं व निजी संस्थाओं ने ऑटो का इंतजाम करते हुए बच्चे के शव को माता-पिता सहित गांव भिजवाया गया.
जानकारी के मुताबिक प्रमोद धुर्वे नामक 6 माह के बच्चे की तबियत खराब रहने के चलते उसे अचलपुर के उपजिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां से उसे 11 फरवरी को इर्विन अस्पताल में रेफर किया गया. लेकिन इर्विन में पीआईसीयू की व्यवस्था नहीं रहने के चलते इस बच्चे को नागपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया. परंतु बच्चा काफी छोटा रहने और अपने पास नागपुर में रहने की कोई व्यवस्था नहीं रहने के चलते बच्चे के माता-पिता उसे नागपुर ले जाने की बजाय पीडीएमसी अस्पताल में इलाज हेतु ले गए. लेकिन वहां पर उसे भर्ती नहीं किया गया, तो एक निजी अस्पताल से होते हुए वे उस ेदोबारा इर्विन लेकर आए. जहां से उसे फिर नागपुर मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया. परंतु नागपुर के मेडिकल कॉलेज में बच्चे के साथ लापरवाही हो रही है, ऐसा आरोप लगाकर बच्चे के माता-पिता उसे किराए की गाडी करते हुए अमरावती लेकर आए तथा उसे शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां पर 8 से 10 घंटे वैंटीलेटर पर रखकर इलाज करने के बावजूद इस बच्चे की मौत हो गई. इस समय बच्चे के माता-पिता के पास अस्पताल व मेडिकल का बिल अदा करने के भी पैसे नहीं थे. यह जानकारी मिलते ही शहर के कुछ समाजसेवी लोग व संस्थाएं सहायता के लिए आगे आए, जिन्होंने अस्पताल व दवाईयों का बिल अदा किया. परंतु बच्चे के शव को गांव ले जाने हेतु सरकारी एम्बुलेंस नहीं मिली. ऐसे में ऑटो की व्यवस्था करते हुए इस परिवार को बच्चे के शव सहित गांव भेजा गया. जिसके लिए बच्चे के माता-पिता ने समाजसेवी सैयद नसीम, अजहर भाई (अंजनगांव सुर्जी), हाफिज तौफिर, छोटू भाई, इमरान भाई, टिकू भाई व मोनु भाई के प्रति आभार ज्ञापित किया.
धुर्वे परिवार को सहायता उपलब्ध कराने के साथ ही समाजसेवी सैयद नसीम ने स्वास्थ्य महकमें को सवालों के कटघरे में खडा करते हुए जानना चाहा कि, आखिर कितने आदिवासी बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य महकमा जागेगा.

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