अमरावती

शिवधारा झूलेलाल चालीहा महोत्सव का श्रद्धालू उठा रहे लाभ

पूज्य संत डॉ.संतोष महाराज कर रहे मार्गदर्शन

अमरावती/दि.20- सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में चल रहे शिवधारा झूलेलाल चालिहा महोत्सव में श्रद्धालू बडी संख्या में आकर लाभ ले रहे है. महोत्सव के चौथे दिन अपने प्रवचन में परम पूज्य डॉ.संतोष देव जी महाराज ने फरमाया कि जैसे संसार में अभाव, आवश्यकता के कारण ही इंसान सोचना, कड़ी मेहनत करना,पूछना प्रारंभ कर देता है और दिल पर ली हुई बात और सफलता तक अथक प्रयास करता रहता है. आवश्यकता ही कर्म कराती है. पूज्य संतोष महाराज ने कथा प्रवचन दौरान कई उदाहरण देकर भक्तों का मार्गदर्शन किया.
उन्होंने कहा कि, जैसे थॉमस एडिसन को विचार आया था की बल्ब का आविष्कार होना चाहिए, फिर उन्होंने मंथन किया होगा और कई बार असफलताएं भी देखी होंगी और अंततः बल्ब का आविष्कार किया. जिससे आज संसार लाभ उठा रहा है. वैसे ही कुछ भी उपलब्धियां, व्यवस्थाएं, सुविधाएं आदि जो भी दिखाई देते हैं, किसी ना किसी को आवश्यकता पड़ने पर, सोचने पर मजबूर किया होगा और किसी न किसी ने उस पर काम करना आरंभ किया होगा, जिसके फल रूप में वह सुविधा बनी होगी, जैसे एरोप्लेन, ट्रेन, कार,मोबाइल जैसी महत्वपूर्ण चीजें. वैसे ही अध्यात्मिकता की उन्नति के लिए जब तक जिसके मन में आवश्यकता उत्पन्न नहीं हुई है, तो सफलता तो संभव नहीं, क्योंकि आवश्यकता, दुख, कमी कारण-माध्यम बनते हैं कुछ सोचने के लिए, फिर सोच कर, रणनीति बनाकर काम शुरू करने पर और अंततः प्राप्ति फल रूप में होती है. यह नियम अध्यात्मिकता के लिए भी है, संसार के लिए भी. जैसे किसी विद्यार्थी को अगर सोच में आ गया कि मुझे डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, वकील आदि बनना है तो वह खुद मेहनत करेगा, आवश्यकता पड़ने पर किसी से पूछेगा और एक दिन वह बन जाएगा, जो वह चाहता है. वैसे ही आध्यात्मिकता का भी नियम है, इसीलिए रोज सत्संग पर जाने से अध्यात्मिकता जब आवश्यक लगने लगती है, तब साधना, सेवा, सत्संग के माध्यम से अच्छी संगति में रहते हुए, संत शरण में जाकर जीवन का सुधार और उद्धार होता है. 1008 सतगुरु स्वामी शिवभजन जी महाराज जब 1951 में पीठाधीश्वर बने थे, तब उनके गुरुदेव 1008 सद्गुरु स्वामी गोविंद भजन जी महाराज ने दो महीने के अंतराल में शरीर त्यागा,तब उनके शरीर की आयु केवल 17 साल थी. तब उनको ऐसे लगा कि मुझे साधना में आगे बढ़ना है, मार्गदर्शक की आवश्यकता पड़ेगी, तो कई कई समय तक ऋषिकेश एवं हरिद्वार के जंगलों में जाकर ऋषि-मुनियों से साधनाएं सीखीं एवं हक्कामत में रुचि होने के कारण एक वैद्य के पास जाते थे और उनसे सीखा, फल रूप में सच्चे सिद्ध योगी बने और अच्छे वैद्य भी बने, जिससे संसार को बहुत लाभ मिला. आज उनकी परंपरा में बड़े-बड़े दवाखाने बने हैं और अध्यात्मिक स्थान भी बने हैं, जिससे संसार को बहुत लाभ मिल रहा है. उसका एक उदाहरण पूज्य शिवधारा आश्रम और उनकी सेवाएं भी हैं, यह सब भी आवश्यकता, पूछना और कड़ी मेहनत का फल है.

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