अमरावतीमहाराष्ट्र

पिपलाज देवी के दर्शन हेतु राजस्थान से आते है भक्तगण

नवरात्रि उत्सव की 400 वर्षों की परंपरा

कुर्हा/दि.10-तिवसा तहसील के कुर्हा गांव में नवरात्रि उत्सव की अनोखी परंपरा का करीब 400 साल से जतन किया जा रहा है. 350 साल पूर्व राजस्थान से आए श्री पिंपलाज देवी मंदिर में और दक्षिण के तेलंगाना से आए श्रीबालाजी मंदिर के परंपरागत समारोह से कुर्हा के इन दोनों मंदिर का अलग महत्व है.
ताजी परिवार के सीतारामसिंह ताजी करीब 350 से 400 साल पहले कुलदेवता के दर्शन के लिए राजस्थान गए थे. उन्होंने वहां से श्री पिपलाज देवी के दो मुखौटे लाए थे. लौटते समय उन्होंने कुर्‍हा गांव में रात में मुक्काम किया. और सुबह तिवसा की ओर से निकलते समय देवी के मुखौटे जिस नीम के पेड के नीचे रखे थे, वहां से वह मुखौटे हिले नहीं. इसलिए ताजी परिवार ने वहां मिट्टी का मंदिर बनवाया. तब से अब तक इस मंदिर में नवरात्रि उत्सव उत्साह से मनाया जाता है. निजाम के काल में 1920 में नवरात्रोत्सव में नवमी के दिन निकलने वाली शोभायात्रा बंद कर दी गई थी. देश को आजादी मिलने के बाद 1951 में पुन: शुरु हुई. यहां श्री पिपलाज देवी यह बडी देवी और दूसरी छोटी देवी ऐसे दो मंदिर है. यह मूर्तियां बुंदेलखंडी राजपूत लाए थे. जिन भक्तों को राजस्थान में पिपलाज देवी के दर्शन हेतु जाना संभव नहीं होता वे सभी राजपूत बंधु कुर्‍हा गांव में देवी दर्शन के लिए आते है. नवरात्रि में दस दिनों तक गांव के बालाजी मंदिर में रखे वाहन की शोभायात्रा निकाली जाती है. पहले दिन शोभायात्रा के लिए बालाजी का वाहन नाग रहता है. इसके बाद चक्र, मोर, बाघ, गरूड, हनुमान, झूला ऐसे वाहन से हर दिन रात 9 बजे शोभायात्रा निकाली जाती है. दशहरे को बालाजी की पालकी गांव के बाहर सीमोल्लंघन करके आती है. बालाजी मंदिर में लौटने के बाद उन्हें सोना अर्पण करने के बाद ग्रामवासी दशहरा मनाते है. दशहरे के अगले दिन सुबह बालाजी की शोभायात्रा प्रतीकात्मक हाथी पर निकाली जाती है. इस दौरान बालाजी का वाहन रहने वाले हाथी पर गुलाल उडाया जाता है तथा नारियल, पोहा, लड्डू, अनारसा, ऐसा प्रसाद ग्रामवासियों को बांटा जाता है. नवरात्रि निमित्त गांव में भक्तिमय वातावरण निर्माण हुआ है.

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