अमरावतीमहाराष्ट्र

भक्ति तो मां के गर्भ से ही प्रारंभ होती है

संगीतमय श्रीमद भागवत महापुराण कथा का आरंभ

परतवाडा/दि.17– स्थानीय पोस्ट ऑफिस कैंप में गत 14 अक्तूबर से सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद भागवत महापुराण कथा का आरंभ हो चुका है. आज तीसरे दिन की कथा में कथा व्यास परम पूज्य संत श्री डॉ संतोष देव जी महाराज जी ने उदाहरण देते हुए प्रहलाद भगत की कथा भाव से सुनाई, जिससे कथा श्रवण करने के लाभ के साथ-साथ सु शिक्षा भी प्राप्त हुई. उदाहरण देते हुए महाराज श्री ने कहा कि हरणाकश्यप का विवाह कयादू नाम की कन्या से हुआ था. विवाह के उपरांत कयादू को जब कहा जाता था कि गर्भधारण संस्कार के संदर्भ में तुम्हें सोचना चाहिए. तब कयादू जी कहती थीं,जब तक मेरे पति के मुख से हरि नाम नहीं निकलेगा, मै यह कार्य नहीं करूंगी. जब कुछ दिनों के बाद हरणाकश्यप घर से बाहर जाने लगे तब अपनी पत्नी को कहा की मैं 6 महीने की तपस्या के लिए जा रहा हूं (पिछले युगों में असुर भी इसीलिए शक्तिशाली होते थे, वह तपस्या खूब करते थे, तभी तो ऐसे असुरों के वध के लिए भगवान खुद अवतार धारण करते थे) जब तपस्या हेतु हरणाकश्यप एक वृक्ष के नीचे बैठे, तब वृक्ष पर बैठे एक तोते ने नारायण नारायण नारायण कहा, हरणाकश्यप की मान्यता के अनुसार तोते ने मेरे शत्रु का नाम लिया है अभी मैं तपस्या नहीं करूंगा. वापस घर लौट के आए. जब उसकी पत्नी कयादू ने उनसे वापस आने का कारण पूछा, तो उसने कहा वृक्ष पर बैठे तोते ने नारायण नारायण कहा, इसीलिए मेरा मूड खराब हो गया. लेकिन पत्नी को पहली बार अपने पति के मुख्य से नारायण नारायण शब्द सुनकर खुशी हुई, फिर गर्भधारण किया. हरणाकश्यप जब तपस्या हेतु गए, तब कयादू ऋषि आश्रम में गई और देवर्षि नारद जी से दीक्षा मंत्र लिया और उनके गर्भ में जो बालक यानी प्रहलाद भगत उसको भी दीक्षा मंत्र दिलवाया. 9 महीने तक ऋषि आश्रम में ही रहकर साधना सेवा सत्संग कथा करके, खुद के साथ बच्चों की भी संस्कार वृत्ति बनीं और उसके फल रूप में ही एक अच्छा ऊंचा बालक प्रहलाद जन्मा, जिसकी रक्षा हेतु भगवान श्री नारायण नरसिंह रूप में प्रकट हुए, यह सब फल है जो गर्भ से ही माता अपने बच्चों को हरी से जोड़ती है और हम सबके लिए भी यही संदेश है. कोजागिरी पूर्णिमा के पावन अवसर पर विशेष तौर पर खीर प्रसाद बनाकर वितरण किया गया और विशेष तौर पर झांकियो के माध्यम से भी भक्तों ने खूब आनंद प्राप्त किया. शिवधारा परिवार ने इस भागवत कार्य में भाव से सेवा की.

 

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